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एक तरफ तो देशभर में महिला सशक्तिकरण और जगह-जगह उन्हें आरक्षण देने की बात की जा रही है। वहीं दूसरी तरफ देश के प्रसिद्ध अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के महिला कालेज की छात्राओं को विश्वविद्यालय के मुख्य और एशिया के सर्वश्रेष्ठ मौलाना आजाद पुस्तकालय में जाने तक की अनुमति नहीं है। जिसके चलते छात्राएं अपने आपको अन्य छात्रों के मुकाबले उपेक्षित महसूस कर रही हैं। इस संबंध में कालेज की छात्राओं और शिक्षकों ने कई बार आवाज उठाई, लेकिन आज तक विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से इस बारे में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के महिला कालेज में करीब 3 हजार छात्राएं स्नातक स्तर के विभिन्न पाठयक्रमों में हैं, जोकि पढ़ाई के लिए स्वयं खरीदी हुई तथा कालेज के पुस्तकालय की पुस्तकों पर निर्भर हैं। कालेज के पुस्तकालय के संबंध में छात्राआंे तथा शिक्षक दोनों का एक ही मत है कि यहां के पुस्तकालय में पुस्तकों की संख्या तो कम है ही, नई पुस्तकों की भी कमी है। इसी समस्या के चलते कालेज की छात्राओं ने अनेक बार विश्वविद्यालय प्रशासन से मुख्य पुस्तकालय का उपयोग करने की अनुमति देने की मांग की, परन्तु प्रशासन ने छात्राओं की इस मांग को कभी गंभीरता से नहीं लिया। करीब 1 साल पहले इसी मांग से संबंधित सैकड़ों छात्राओं तथा शिक्षकों द्वारा हस्ताक्षरित एक ज्ञापन भी कुलपति को भेजा गया था, परन्तु प्रशासन ने छात्राओं की इस मांग को कोई अहमियत नहीं दी। हालांकि स्नातकोत्तर एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की छात्राओं के लिए ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है।
कालेज की छात्राओं में इस समस्या को लेकर रोष तो व्याप्त है, लेकिन कोई भी इसके विरोध में खुलकर सामने आने को तैयार नहीं है। नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कालेज की एक छात्रा ने कहा कि कालेज के पुस्तकालय में पुस्तकों के बहुत पुराने संस्करण हैं, जब तक यहां नई पुस्तक आती है, तब तक बाजार में कोई और नई पुस्तक आ चुकी होती है। वहीं विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में पुस्तकों के नए-नए संस्करण तो होते ही हैं, पुस्तकें संख्या में भी ज्यादा होती हैं। परन्तु हमें वहां जाने की अनुमति नहीं है, जिसके कारण हमें बहुत दिक्कत होती है। छात्रा का तो यहां तक कहना है कि विश्वविद्यालय हमारे साथ भेदभाव कर रहा है। छात्रा का कहना है कि कुछ लोग कहते हैं कि शायद हमें स्नातक का छात्र तथा कालेज का अपना पुस्तकालय होने की वजह से अनुमति नहीं मिल रही, लेकिन मुख्य पुस्तकालय में अन्य कालेज के स्नातक के पुरुष छात्रों को जाने की अनुमति है। यह भेदभाव नहीं, तो क्या है? एक अन्य छात्रा सोनम (बदला हुआ नाम) का कहना कि पिछले साल जब हमने कुलपति को मुख्य पुस्तकालय में जाने की अनुमति के संबंध में ज्ञापन दिया था तो उन्होंने कहा था कि इस बारे में विचार किया जाएगा, लेकिन इस संबंध में आज तक उनका कोई जवाब नहीं आया। छात्रा का कहना है कि विश्वविद्यालय हमें पूरे दिन के लिए अनुमति न देना चाहे तो न दे, लेकिन कुछ घंटे के लिए तो छूट दे ही सकता है, ताकि हम वहां जाकर अपने जरूरत की सामग्री ढूंढ सकें।
कॉलेज के प्राध्यापक डा. सनाउल्लाह नदवी का कहना है कि यहां के पुस्तकालय में पुस्तकें तो हैं, लेकिन नई पुस्तकों का अभाव है। किसी छात्रा को पाठ्यक्रम से संबंधित कोई विशेष्ा कार्य देकर कहा जाए कि जाओ पुस्तकालय में जाकर ढूंढो तो उसे वहां निराशा हाथ लगती है। उन्होंने कहा कि शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए हर कार्य किया जाना चाहिए। इसके साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए। जहां तक मुख्य पुस्तकालय के इस्तेमाल की बात है तो प्रशासन अड़े न और जो अड़चनें छात्राओं को अनुमति देने में आ रही हैं, उन्हें दूर करे। कालेज की ही एक अन्य प्राध्यापिका सुश्री नाजिया हसन का कहना है कि अगर कालेज की छात्राओं को मुख्य पुस्तकालय में जाने की अनुमति मिल जाए तो यह उनके विकास के लिए अच्छा रहेगा। प्रश्न यह भी उठता है कि आखिर यह अधिकार उन्हें क्यों न मिले?
छात्राओं की मांग का समर्थन विश्वविद्यालय छात्रसंघ तथा छात्र संगठनों द्वारा भी किया जा रहा है। छात्रसंघ सचिव आमिर कुतुब का कहना है कि लगभग 2 महीने पहले ही हमने इस विष्ाय से संबंधित एक ज्ञापन विश्वविद्यालय कुलपति को दिया है। हम उनके जवाब का इंतजार कर रहे हैं। हमें विश्वास है कि प्रशासन इसका कोई न कोई हल जरूर निकालेगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम इसके लिए आंदोलन भी करेंगे। वहीं अभाविप, पश्चिम उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष डा. मानवेन्द्र प्रताप सिंह का कहना है कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जहां महिला एक राष्ट्रपति हो, वहां छात्राओं के साथ इस तरह का भेदभावपूर्ण रवैया समानता के अधिकार का खुला उल्लंघन है। हम इस संबंध में जिला अधिकारी के जरिए माननीय राष्ट्रपति महोदया को ज्ञापन भेजकर मांग करेंगे कि वे इस विषय में हस्तक्षेप कर छात्राओं को उनका अधिकार दिलाएं।
छात्राओं की मांग का प्राध्यापक, छात्रसंघ तथा छात्र संगठनों द्वारा समर्थन करने के बावजूद प्रशासन को छात्राओं की मांग अनुचित लग रही है। इस संबंध विश्वविद्यालय कुलपति से बात करने की कोशिश की गई, परन्तु उनसे बात नहीं हो सकी। विश्वविद्यालय के जनसम्पर्क अधिकारी राहत अबरार तथा डीन छात्र कल्याण एनुल हक दोनों का ही कहना है कि जब उनका अपना पुस्तकालय है तो वे यहां क्यों आना चाहती हैं। दोनों को ही छात्राओं की मांग बेवजह लगती है।
इस सबके बीच प्रश्न उठता है कि क्या छात्राओं के साथ यह भेदभाव होता रहेगा? क्यांेकि विश्वविद्यालय प्रश्ाासन को तो इनकी मांग बेवजह लगती है या फिर देश की कोई उच्च संस्था हस्तक्षेप करके इन्हें इनका अधिकार दिलाएगी, जोकि जायज है!
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