सिक्किम से दिल्ली तक थर्राती धरती का संकेत
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सिक्किम से दिल्ली तक थर्राती धरती का संकेत

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Sep 29, 2011, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 29 Sep 2011 10:26:43

आलोक गोस्वामी

निमलामू शेरपा सदमे में है। न कुछ बोल पाती है, न कोई हरकत करती है। गुमसुम सी …बस अस्पताल के कमरे की छत ताकती रहती है। रह-रहकर उसके चेहरे पर ऐसा भाव तिरता है मानो अभी फूट-फूटकर रो देगी… एक बेजान शरीर भर रह गई है निमलामू। ऊपरी गंगतोक (सिक्किम) के चोंग्ये गांव की रहने वाली 24 साल की इस युवती की अभी सालभर पहले ही तो ऊंदी शेरपा से शादी हुई थी… कि रविवार, 18 सितम्बर की शाम उसकी आंखों के सामने उसका पति, उसके पिता फुलवा, मां सुखमाया और नन्ही सी बहन कुंजन… सब तीस्ता नदी की तेज धारा में बह गए। जिस जीप में सवार होकर वे सब कालिम्पोंग से अपने गांव लौट रहे थे वह भूकंप की थर्राहट की चपेट में आकर नदी की तरफ बने खड्ड में लुढ़कने लगी और फिर तीस्ता के पानी में… हादसे में बची निमलामू उस कहर से तबाह होने वालों में अकेली नहीं है।…

सिक्किम की राजधानी गंगतोक से 68 किमी. उत्तर पश्चिम में धरती के गर्भ में हुई थरर्#ाहट से भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र ही नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल, बिहार, हरियाणा और दिल्ली तक में जमीन हिल गई। 6.9… रिक्टर पैमाने पर नापी गई भूकंप की तेजी असाधारण थी। करीब आधा मिनट तक जमीन की हलचल लोगों को कंपकपाती रही। कंपन थमने के काफी देर बाद तक लोग जमीन डोलती महसूस करते रहे थे, ऐसी भीषण थी वह थरर्#ाहट। हालांकि दिल्ली, हरियाणा और उत्तरी भारत के ज्यादातर क्षेत्रों में कंपन की तीव्रता घटती चली गई थी, लेकिन भूकंप के उद्गम या केन्द्र उत्तरी सिक्किम और सटे हुए नेपाल में बर्बादी का आलम यह था कि सिक्किम में 70 फीसदी इमारतें ढह गई थीं अथवा बुरी तरह हिल गई थीं, काठमाण्डू में भारी तादाद में लोग प्रभावित हुए थे। डर ऐसा समा गया था कि धरती का हिलना रुकने के बाद भी लोगों ने कई रातें बाहर खुले में या किसी बेहद सुरक्षित इमारत में बितार्इं। शुरू में 10, फिर 15, फिर 20 लोगों की जान जाने की खबरें मिलीं, लेकिन तबाही की व्यापकता और खबरों के छनकर आने के बाद संख्या बढ़ती गई। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इस भूकंप से मरने वालों की संख्या 115 से ऊपर जा पहुंची थी। इसमें सिक्किम में 73, प. बंगाल में 15, बिहार में 9, पड़ोसी नेपाल में 11 और 7 अन्य तिब्बत में असमय मृत्यु को प्राप्त हुए हैं।

 तीस्ता से सटे सिक्किम के गांव- दीकचू, रांग्पो, मत्तन, सिंगतम, चुंगतान, लाचुंग, लाचने, यमतांग घाटी भारी तबाही का मंजर बने हैं, तो प. बंगाल के सिलिगुड़ी, जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग, कुर्सियांग, कालिम्पोंग और बालुरघाट में भारी नुकसान हुआ है। परिवार के परिवार बेघर हुए हैं, जो घायल हैं उनकी पीड़ा शब्दों में नहीं बताई जा सकती। राहत पहुंची पर भीषण बारिश के चलते देर से। राशन, दवा, कपड़े वगैरह लेकर थलसेना के 5500, आई.टी.बी.पी. के 2200 और राआप्रब के 200 जवान प्रभावित इलाकों तक पहुंचे। 6 मालवाहक हवाईजहाज और 15 हेलीकाप्टर दिन-रात उड़ान भरकर राहत सामग्री पहुंचाते रहे। सिक्किम जाने वाला राजमार्ग 12 जगहों पर भूस्खलन के कारण क्षतिग्रस्त था, सो सड़क से जाना बेहद कठिन था। सड़कों की मरम्मत की गई, मलबे को हटाया गया, घायलों को अस्पताल लाया गया, राआप्रप्रा के अधिकारी और कर्मी जुट गए… पर निमलामू… अब भी पथराई सी… गुमसुम।

सिक्किम केन्द्रित धरती के गर्भ में यह थर्राहट, भूगर्भ विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय और यूरेशियाई भूगर्भीय प्लेटों के घर्षण से पैदा हुई थी। हिमालय की गोद में बसे भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र से लेकर उत्तराखंड, प. बंगाल, बिहार, दिल्ली और हरियाणा तक के इलाके ठीक खतरे के मुहाने पर बैठे हैं। यहां धरती के नीचे की चट्टानों में भारी उथल-पुथल चल रही है। विज्ञानियों की भाषा में- व्अर्थक्वेक प्रोन जोन्सव्। खतरा मुंहबाए खड़ा है। कब, किस मात्रा का, कैसा, कितना व्यापक भूकंप आएगा, कहना मुश्किल है। अभी 7 सितम्बर को ही रात 11.28 बजे हरियाणा और दिल्ली वालों के दिल धक्क से रह गए थे। धड़धड़ाता हुआ भूकंप 2 सैकेंड में ही चूलें हिला गया था। गनीमत थी यह 4.2 की तेजी का था। ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। लोगों ने राहत की सांस ली।

 लेकिन, एक के बाद एक, बढ़ती निरंतरता से होने वाली धरती की इस थरर्#ाहट का संकेत समझना होगा। आपदा प्रबंधन में मुस्तैदी लाते हुए आम भारतवासियों को मुश्किल घड़ी में जरूरी उपायों को गंभीरता से जानना होगा। घरों को ऐसा बनाना होगा जो तेज कंपन को झेल सकें। और सबसे बढ़कर… कुदरत को सम्मान देना होगा। उसके कायदे-कानूनों को ठेंगे पर रखने की मानसिकता को त्यागना होगा। धरती को गहरा… और गहरा खोदकर, खोखलाकर व्बेसमेंटोंव् को बनाकर दौलतमंद होने की सोच छोड़नी होगी, जंगल कटने से बचाने होंगे और पहाड़ों को काटकर अपार्टमेंट और होटल खड़े करने से बाज आना होगा… क्योंकि कुदरत की ताकत की कोई थाह नहीं पा सकता। पलक झपकते शहर के शहर मटियामेट कर देती है धरती की थरर्#ाहट। अपनों को आंखों के सामने छीन ले जाती है कुदरत। निमलामू ने यह देखा है, भोगा है और इसीलिए… अब भी खामोश है निमलामू!

 ये हैं राआप्रप्रा और राआप्रब

 आपदा प्रबंधन को राष्ट्रीय महत्व का विषय मानते हुए केन्द्र सरकार ने 1999 में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था। समिति को आपदा प्रबंधन की योजनाएं तैयार करने की सलाह देने का काम सौंपा गया था। 23 दिसम्बर 2005 को भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन कानून क्रियान्वित किया था। इसमें प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (राआप्रप्रा) और राज्यों में मुख्यमंत्रियों की अध्यक्षता में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों का गठन करने की बात की गई थी।

 इसी कानून के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (राआप्रब) बनाया गया है जो आपदा की संभावनाओं अथवा आपदा होने पर तेजी से हरकत में आता है। इसका नियंत्रण, निर्देशन और आम पर्यवेक्षण राआप्रप्रा में निहित है। इसमें 8 बटालियनें हैं, जिसमें दो-दो बटालियनें सीमा सुरक्षा बल, केरिपु बल, केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस की हैं। हर बटालियन खोज और बचाव में माहिर 45 कर्मियों के 18 दलों में बंटी है और हर दल में इंजीनियर, तकनीशियन, बिजली विशेषज्ञ, व्डॉग स्क्वाडव् और चिकित्सक/अद्र्धचिकित्सक शामिल हैं। एक बटालियन में तकरीबन 1,160 कर्मी हैं।

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