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जनजातियों ने की संस्कृति बचाने की मांग
तरुण सिसोदिया
….तुम लोग हिन्दू हो, तुम्हारा इस रास्ते से जाना मना है। इस रास्ते पर दोबारा आओगे तो अच्छा नहीं होगा।व् उड़ीसा के कंधमाल में ईसाइयों द्वारा वनवासी बंधुओं से किए जा रहे दुव्र्यवहार को बताते हुए नंदिनी प्रधान ने यह बातें कहीं। उड़ीया भाषा में बोलते हुए नंदिनी ने कहा कि व्हम पक्के रास्ते से जाते हैं तो ईसाई मना करते हैं, कहते हैं यह रास्ता हिन्दुओं के लिए नहीं है। वे हमसे झगड़ा करते हैं, मारपीट करते हैं। जंगल के रास्ते शहर जाने पर बहुत समय लगता है। अगर हम शहर नहीं जाएंगे तो बच्चों के लिए राशन कैसे आएगा? ऐसे तो हमारे बच्चे भूखे ही मर जाएंगेव्। नंदिनी ने अपनी यह व्यथा गत दिनों नई दिल्ली में व्फोरम फॉर सोशल जस्टिसव् द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में निर्णायक मंडल के समक्ष कही। व्ईसाईकरण: भारत की जनजातियों की आस्था, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और जीवन पर प्रभावव् विषय पर 5-6 सितम्बर को चली कार्यशाला में देशभर के विभिन्न राज्यों से आए वनवासी बंधुओं ने ईसाइयों द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कार्यशाला में छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, गुजरात, मध्य प्रदेश सहित 14 राज्यों के कुल 105 वनवासी बंधुओं ने भाग लिया। रा.स्व.संघ के अ.भा. कार्यकारी मंडल के सदस्य श्री राममाधव भी कार्यशाला में उपस्थित रहे।
कार्यशाला का शुभारम्भ 5 सितम्बर की सुबह निर्णायक मंडल के सदस्यों- श्री के.पी.एस. गिल (पूर्व पुलिस महानिदेशक, पंजाब), स्वामी शांतात्मानंद (प्रमुख, रामकृष्ण मठ, दिल्ली) आदि द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। तत्पश्चात श्री गिल ने अपने उद्बोधन में कहा कि अंग्रेज देश छोड़कर जाने से पहले हम पर कुछ ऐसी शर्तें थोपकर गए, ताकि उन्हें वापस बुलाया जा सके। मतांतरण के संबंध में बोलते हुए उन्होंने कहा कि मतांतरण का कारण जनजातियों की आर्थिक स्थिति ठीक न होना, लालच, धोखाधड़ी, बल प्रयोग तथा मैकाले की शिक्षा पद्धति है। वहीं स्वामी शांतात्मानंद ने जनजातीय क्षेत्रों में विकास के न पहुंचने को मतांतरण का कारण बताया। उन्होंने कहा कि ईसाई मिशनरी जनजातीय संस्कृति को तहस-नहस कर रहे हैं। स्वामी शांतात्मानंद ने आह्वान करते हुए कहा कि सक्षम लोग जनजातीय क्षेत्रों में जाकर सेवा कार्य करें।
उद्घाटन सत्र के बाद वनवासियों ने निर्णायक मंडल के समक्ष अपनी पीड़ा व्यक्त की। निर्णायक मंडल में श्री के.पी.एस. गिल तथा स्वामी शांतात्मानंद के अलावा श्री पी.सी. डोगरा, न्यायमूति डी.एस. तेवतिया, न्यायमूर्ति वी.के.गुप्ता, श्री जे.के.बजाज, एयर मार्शल आर.एस.बेदी, श्री विनोद बवारी, श्री भवदीप कंग, सुश्री ऊषा गोयल, श्री शौर्य डोवल और कर्नल पी.के.पंडा थे। अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए वनवासी बंधुओं ने कहा कि उनके क्षेत्र में ईसाई मिशनरी जनजातियों को मतांतरित करने का हर संभव प्रयास कर रही हैं।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले से आई 20 वर्षीय अर्चना भार्गव ने जो बात बताई उसने निर्णायक मंडल सहित कार्यशाला में उपस्थित सभी लोगों को अंदर तक झकझोर दिया। अर्चना ने कहा कि व्मेरे पति को ईसाइयों ने मार दिया क्योंकि वे ईसाई नहीं बने।व् अर्चना ने कहा कि हमारे गांव परसापन में ईसाइयों के डर के कारण आज लगभग दो-तिहाई आबादी मतांतरित हो गई है। गुजरात के दाहोद जिले के बुंदिया ने बताया कि एक महिला प्रसव पीड़ा के कारण तड़प रही थी, वह बार-बार अस्पताल जाने के लिए कह रही थी। लेकिन वहां के ईसाई उसे अस्पताल न ले जाकर पास के चर्च ले गए, जहां चर्च के पादरी ने उसे एक शीशी में कुछ पदार्थ यह कहकर दिया कि इसमें यीशु का खून है इसे पीकर तुम्हें मुक्ति मिल जाएगी। इस तरह इलाज के अभाव में उस महिला की मृत्यु हो गई।
दो दिवसीय कार्यशाला के समापन के बाद सभी वनवासी बंधुओं ने जंतर-मंतर जाकर विरोध प्रदर्शन किया। वनवासियों ने मांग की कि ईसाई मिशनरियों से हमारी संस्कृति की रक्षा की जाए। इस अवसर पर मध्य प्रदेश के सांसद श्री ज्योति डरबे, छत्तीसगढ़ के श्री मुरारी लाल, गुजरात के श्री कंजीभाई पटेल तथा झारखंड के श्री सुरेन्द्र भगत भी उपस्थित थे। सांसदों ने वनवासियों को आश्वस्त करते हुए कहा कि वे इस मुद्दे को संसद तथा अन्य महत्वपूर्ण मंचों पर जोर-शोर से उठाएंगे।
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