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जीत कर भी हारे पड़े हैं कांग्रेसी

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Sep 28, 2011, 12:00 am IST
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राज्यों से

दिंनाक: 28 Sep 2011 20:29:29

केरल

प्रदीप कृष्णन 

मुस्लिम लीग के सहयोग से सोनिया पार्टी (यानी कांग्रेस) ने केरल में सत्ता तो हथिया ली, पर इन दिनों यह पार्टी इस प्रदेश में इतिहास के अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। आपसी गुटबाजी, संगठनात्मक कार्यों के लिए प्रत्येक स्तर के नेताओं-कार्यकर्ताओं में उत्साह का अभाव तथा पद पाने की होड़ ने पार्टी को इस स्तर पर ला दिया है कि अनेक वरिष्ठ नेता भी यह स्वीकारने लगे हैं कि संभावित विनाश को देखते हुए और इस प्रदेश में पार्टी के डूबते जहाज को उबारने के लिए त्वरित और कड़ी कार्रवाई आवश्यक है। पार्टी के ही एक वरिष्ठ नेता ए.सी. जोश ने भी सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि, व्ऊपर से नीचे तक कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा बेढंगी चाल से चल रहा है।व् जोश उस तीन सदस्यीय समिति के सदस्य हैं जो विधानसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता न मिलने की समीक्षा कर रही है। उनके अनुसार 14 में से 8 जिलों की समीक्षा के बाद हमें यही अनुभव आ रहा है कि केरल में कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा लचर स्थिति में है।

 

केरल में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता स्व. के. कुरुणाकरण के पुत्र व वर्तमान विधायक के. मुरलीधरन भी मानते हैं कि एकता के झूठे दावों के बावजूद पार्टी में गुटबाजी अनियंत्रित हो चली है। उनके अनुसार केरल में कांग्रेस के कुछ गिने-चुने ही नेता और कार्यकर्ता ऐसे हैं जो किसी गुट में शामिल नहीं हैं। केरल में कांग्रेस की गुटबाजी का आलम यह है कि इसके सबसे मजबूत गढ़ कहे जाने वाले त्रिशूर जिले में हाल ही में कांग्रेस के दो धड़ों में हाथापाई और मारपीट तक की नौबत आ गई। राज्य के पूर्व वन मंत्री के.पी. विश्वनाथन के नेतृत्व में कांग्रेस के एक गुट के लोगों ने त्रिशूर के कांग्रेसी जिला सचिव के घर पर धावा बोलकर उसे तहस-नहस कर दिया। ये लोग आरोप लगा रहे थे कि विधानसभा चुनावों में जिला सचिव ने विश्वनाथन के साथ धोखा किया। प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष वी. पुरुषोत्तमन के नेतृत्व में गठित चुनाव समीक्षा समिति के सदस्य ए.सी. जोश ने स्वीकार किया है कि जिन लोगों की चुनावों में हार हुई है उनकी शिकायत है कि सहयोगियों और पार्टी के प्रमुख कार्यकर्ताओं ने ही पीछे से टांग खींची और उन्हें हराने का काम किया। उनका कहना है कि समिति ने अपनी रपट प्रदेश कांग्रेस कमेटी को दे दी है, अब उसे ही किसी भी तरह की कार्रवाई करने का अधिकार है। उल्लेखनीय है कि अप्रैल, 2011 में हुए विधानसभा चुनावों में 140 सदस्यीय केरल विधानसभा में कांग्रेस नेतृत्व वाले संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यू.डी.एफ.) को 72 सीटें मिलीं थीं, बहुमत से सिर्फ 1 ज्यादा। व्यापक विरोध होने के बावजूद सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एल.डी.एफ.) 68 सीटें झटक ले गया और बस सत्ता उससे मामूली अंतर से छिटक गई। यदि कांग्रेस का अकेले का प्रदर्शन देखें तो उसके आधे से ज्यादा प्रत्याशी पराजित हुए। कांग्रेस ने अपने 81 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जिनमें से 38 ही जीत सके। वहीं उसके सहयोगी दल मुस्लिम लीग ने 24 स्थानों से चुनाव लड़ा और 20 में जीत हासिल की। त्रिशूर के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता का कहना है कि अगर कांग्रेस को मुस्लिम लीग का सहयोग न मिलता तो वह अपने दम पर 10 सीटें भी नहीं जीत सकती थी। 

कांग्रेस की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि मुख्यमंत्री ओमेन चांडी और प्रदेश अध्यक्ष रमेश चेनीथल्ला के बीच किसी भी प्रकार का संवाद तक नहीं होता। चेनीथल्ला भी मुख्यमंत्री बनना चाहते थे पर बन गए चांडी, और तब से दोनों में बोलचाल तक बंद है। चेनीथल्ला ने चुनावों के दौरान आसानी से जीती जाने वाली विधानसभा सीटों पर अपने चहेतों का प्रत्याशी घोषित कर दिया। हालांकि उनमें से अधिकांश असफल रहे और बाजी ओमेन चांडी के हाथ लगी। और तभी से पार्टी और सरकार अलग-अलग रास्ते पर चल रही है। इस सबकी जानकारी पाने के बाद कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व ने मन बनाया था कि वह गुटबाजी समाप्त करने के लिए हस्तक्षेप करेगा। पर केन्द्र स्वयं कमजोर है। प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है, व्कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन और आपसी मतभेदों से पहले ही जूझ रहा है। सरकार और पार्टी में तालमेल पहले जैसा नहीं है। ऐसे में उसके पास केरल जैसे सुदूर राज्य में पार्टी की दशा सुधारने के लिए समय ही कहां है।

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