सम्पादकीय
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वह शिक्षा किस काम की जो दूसरों के शोषण में, अपने स्वार्थ-साधन में ही अपनी चरम सार्थकता समझती हो।
-हजारी प्रसाद द्विवेदी (विचार-वितर्क, पृ.-60)
केन्द्रीय वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी के कार्यालय से जारी हुए पत्र ने न केवल सरकार में घमासान मचा दिया है, बल्कि डा.मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में व्याप्त अंतद्र्वंद्व को भी उजागर किया है। गृहमंत्री पी.चिदम्बरम पर तो कई मामलों को लेकर पहले ही उंगलियां उठ चुकी हैं, लेकिन दस जनपथ की व्कृपाव् के चलते वह सुरक्षित हैं। आखिर बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी! अंतत: 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में वित्तमंत्री के रूप में चिदम्बरम की भूमिका और व्सब कुछ ठीक चल रहा हैव् वाली राय उनके गले की फांस बन रही है। गत 25 मार्च 2011 को वित्त मंत्रालय की ओर से प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा गया पत्र, जिसमें कहा गया है कि चिदम्बरम चाहते तो घोटाला रोका जा सकता था, चिदम्बरम की भूमिका पर गंभीर प्रश्न खड़ा करता है। 2 जी स्पेक्ट्रम का मूल्य तय होने के दौरान उनकी तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए.राजा से चार बार भेंट भी यह स्पष्ट संकेत देती है कि स्पेक्ट्रम का मूल्य कम तय कराने में उनकी भी भूमिका रही है। राजा तो अदालत में अपने बचाव में पहले ही कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री व वित्तमंत्री (तत्कालीन यानी चिदम्बरम) की जानकारी में सब कुछ था। फिर उस घोटाले में अपनी भूमिका से चिदम्बरम कैसे बच सकते हैं?
दरअसल पी.चिदम्बरम दस जनपथ के कृपापात्र होने से अपना कद बनाए हुए हैं, अन्यथा वित्तमंत्री और गृहमंत्री जैसे प्रमुख दायित्वों पर उनकी विफलता जगजाहिर है। गृहमंत्री रहते हुए न केवल उनकी कार्यशैली, बल्कि उनके बयान भी उन्हें विवादों के कटघरे में ला खड़े करते रहे हैं। माओवादी नक्सलवाद हो या जिहादी आतंकवाद, हर मोर्चे पर उनकी विफलता सामने आती रही है। इस विफलता को छिपाने के लिए उन्होंने व्भगवा आतंकवादव् की व्थ्योरीव् गढ़ी, जिसका पूरे देश में जबर्दस्त विरोध हुआ तो उन्हें सफाई देनी पड़ी। दस जनपथ के इशारे पर उनके द्वारा जांच एजेंसियों को कथित व्हिन्दू आतंकवादव् की पड़ताल में लगा दिया गया, और जिहादी आतंकवादी बेखौफ होकर अपने षड्यंत्रों को अंजाम देते रहे। हाल में मुम्बई व दिल्ली उच्च न्यायालय परिसर में हुर्इं विस्फोटों की घटनाएं व नरसंहार इसी का परिणाम हैं। पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल को उनकी विफलता व कार्यशैली के कारण पद छोड़ना पड़ा था, लेकिन उनसे भी ज्यादा देश की दुर्गति कर देने वाले चिदम्बरम शान से गृहमंत्री बने हुए हैं, कितने आश्चर्य की बात है!
करीब पौने दो लाख रु. के 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले ने देश को हतप्रभ कर दिया था। इसे सरकार लगातार नकारती रही, यहां तक कि केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने तो व्कैगव् पर ही सवाल उठा दिए थे। उधर सीबीआई व व्ट्राईव् ने घोटाला महब 30 हजार करोड़ का ही आंका, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद सरकार चेती और जब जांच की परतें खुलनी शुरू हुर्इं तो यह महाघोटाला साबित हुआ। मामला संयुक्त संसदीय समिति में ले जाने की मांग पर संसद ठप्प रही, लगभग पूरा सत्र ही इसकी भेंट चढ़ गया, लेकिन सरकार अपनी खाल बचाने के लिए विपक्ष की मांग को नकारती रही और मामला लोक लेखा समिति को दे दिया गया। लेकिन जब डा.मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में समिति ने पूरी छानबीन कर रपट तैयार की और उसमें प्रधानमंत्री कार्यालय पर भी उंगली उठाई गई तो कांग्रेस की शह पर जबर्दस्त हंगामा मचाया गया और वह रपट ही अस्वीकार कर दी गई। परंतु डा.जोशी अपनी बात पर अडिग हैं। यदि सरकार की नीयत साफ होती तो इस रपट को गंभीरता से लेती और दूध का दूध, पानी का पानी करती, लेकिन सरकार जानती है कि दाल में काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली है। और सच्चाई सामने आई तो न जाने किस-किस के मुंह पर कालिख पुतेगी। सारे मामलों में प्रधानमंत्री का मूकदर्शक बने रहना सामने आ चुका है। अब चिदम्बरम के बारे में वित्त मंत्रालय की चिट्ठी ने रही-सही कसर पूरी कर दी है। इस आधार पर संप्रग सरकार की सहयोगी द्रमुक के मुखिया करुणानिधि ने सरकार पर हमला बोल दिया है और उनका आशय है कि राजा को तो फंसाया गया, असली गुनाहगार तो प्रधानमंत्री व चिदम्बरम हैं, जब इनकी जानकारी में सब कुछ था तो घोटाला होने क्यों दिया गया? अब सीबीआई और प्रधानमंत्री भले ही चिदम्बरम को व्क्लीन चिट दे रहे हों, लेकिन उन्हें एक क्षण के लिए भी पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है, वे यदि पद न छोड़ें तो उन्हें बर्खास्त करके ही सरकार अपनी साख बचा सकती है।
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