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संरक्षित मस्जिदों में अनधिकृत नमाज
अरुण कुमार सिंह
क्या इस देश में सभी मत-पंथ के लोगों के लिए नियम-कानून एक हैं? कागजी रूप में भले ही सबके लिए एक जैसे कानून हों, किन्तु व्यवहार में सबके लिए एक जैसे कानून नहीं हैं। धार्मिक मामलों में हिन्दुओं पर एक क्षण में कानून का डण्डा चलाया जाता है, किन्तु मुस्लिमों के मजहबी मामलों में कानून का डण्डा न चले, इसकी हरसंभव कोशिश की जाती है।
राजधानी दिल्ली में तो यह चलन कुछ ज्यादा ही बढ़ता जा रहा है। पिछले दिनों मुस्लिम समाज के कुछ लोग न्यायालय के आदेश से गिराई गई एक अवैध मस्जिद के पुनर्निर्माण के लिए सड़कों पर उतर आए। सरकार ने तुरन्त कहा शान्त रहें, वही जमीन खरीदकर मस्जिद के लिए दी जाएगी। किन्तु किसी मन्दिर के मामले में ऐसा नहीं किया जाता है। कुछ कट्टरवादी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) द्वारा संरक्षित मस्जिदों में जबरदस्ती नमाज पढ़ रहे हैं, इस मामले में भी सरकार चुप है। सरकार कानून तोड़ने वाले कट्टरपंथियों को पकड़ना भी नहीं चाहती है, उन्हें दण्डित करने की बात तो दूर है। कट्टरवादियों की इस हरकत पर वे तथाकथित सेकुलर नेता, बुद्धिजीवी और समाजसेवी भी मौन हैं, जो चिल्लाते रहते हैं कि देश में कानून का राज स्थापित होना चाहिए।
व्सूचना का अधिकारव् के तहत मांगी गई जानकारी के बाद ए.एस.आई. के दिल्ली मण्डल ने पाचजन्य को बताया है कि दिल्ली मण्डल में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन 174 संरक्षित स्मारक हैं। इनमें से कोई मन्दिर नहीं है, जबकि 30 मस्जिदें हैं। उप अधीक्षण पुरातत्वविद् एवं केन्द्रीय जनसूचना अधिकारी ए.के. पाण्डे ने पत्रांक (डी.एल.एच.-265/2010- स्मा.-408) में साफ लिखा है, व्केवल 3 मस्जिदों में संरक्षित स्मारक सूची में आने से पहले से ही नमाज पढ़ी जाती थी और 9 मस्जिदों में अनधिकृत नमाज पढ़ी जाती है, जो नियम के विरुद्ध है।व्
पालम मस्जिद, नीली मस्जिद और सुनहरी मस्जिद- ये तीन ही ऐसी मस्जिदें हैं, जहां वैध रूप से नमाज पढ़ी जाती है। उल्लेखनीय है कि ए.एस.आई. ने पालम मस्जिद को 26 जून, 1983, नीली मस्जिद को 12 जनवरी, 1921 और सुनहरी मस्जिद को 6 अगस्त, 1919 को अपने अधीन लेकर संरक्षित घोषित किया हुआ है। चूंकि ए.एस.आई. की अधिसूचना के समय इन तीनों मस्जिदों में नमाज पढ़ी जाती थी, इसलिए बाद में भी इनमें पढ़ी जाने वाली नमाज पर रोक नहीं लगाई गई। किन्तु शेष 27 मस्जिदों को ए.एस.आई. ने जब संरक्षण सूची में शामिल किया था, उस समय उनमें नमाज नहीं पढ़ी जाती थी। इसलिए बाद में भी नमाज पढ़ने की इजाजत नहीं दी गई। परन्तु पिछले कुछ सालों से हर शुक्रवार को नमाजियों की भीड़ संरक्षित मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए उमड़ पड़ती है। उन्हें रोकने का प्रयास किया जाता है तो हंगामा शुरू हो जाता है। इसी हंगामे के बल पर कुतब मस्जिद, सराय शाहजी मस्जिद, लाल गुम्बद/मस्जिद (चिराग दिल्ली), जामी मस्जिद (कोटला फिरोजशाह), रजिया सुल्तान मकबरा, कुदुसिया मस्जिद, सफदरजंग मस्जिद, अफसर वाला की मस्जिद और खैरूल मंजिल मस्जिद में जबरदस्ती नमाज पढ़ी जा रही है। जबकि ये मस्जिदें 75-80 साल से संरक्षित सूची में शामिल हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (दिल्ली मण्डल) के अधीक्षण पुरातत्वविद् मुहम्मद के.के. से जब यह पूछा गया कि अनधिकृत रूप से नमाज पढ़ने वालों को रोका क्यों नहीं जाता है? उन्होंने उत्तर दिया, व्यह अनधिकृत नमाज मेरे द्वारा कार्यभार संभालने से पूर्व ही शुरू हो गई थी। फिर भी मैं इस अनधिकृत नमाज को रोकने का प्रयास कर रहा हूं।व्
दूसरी ओर मुस्लिमों का एक वर्ग पूरी तैयारी के साथ किसी संरक्षित मस्जिद पर कब्जा करने की तैयारी करता रहता है। यह वर्ग प्राय: हर साल किसी मस्जिद पर कब्जा कर लेता है। पिछले साल कुतुबमीनार परिसर स्थित मस्जिद में जबरदस्ती नमाज पढ़ने की कोशिश की गई और अब वहां हर शुक्रवार को नमाज होती है, जो कि नियमत: गलत है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यदि मुस्लिमों का एक वर्ग इसी तरह किसी संरक्षित मस्जिद पर कब्जा करता रहा और वहां नमाज पढ़ी जाती रही, तो हिन्दू भी प्रतिक्रिया में संरक्षित मन्दिरों में पूजा-पाठ के लिए सड़कों पर आ सकते हैं। तब फिर स्थिति गंभीर हो सकती है। नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने यह भी बताया कि मुस्लिमों का एक वर्ग कुछ मुस्लिम नेताओं और इमामों की शह पर ए.एस.आई. द्वारा संरक्षित मस्जिदों और इस्लामी स्मारकों पर कब्जा करना चाहता है। इसके लिए बाकायदा एक रणनीति बनाई गई है। इस रणनीति को सरकारी नीतियों से भी प्रोत्साहन मिलता है।
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