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अपनों के ही रोष से घिरी हुड्डा सरकार
डा. गणेश दत्त वत्स
हरियाणा में हुड्डा सरकार द्वारा विकास की योजनाओं का ढिंढोरा सब जगह पीटा जा रहा है। हरियाणा की नीतियों का हवाला देकर कांग्रेस देश में लोगों को गुमराह कर रही है। हकीकत में तो मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के दूसरे कार्यकाल में उनकी नीतियों की जमकर आलोचना हो रही है। विपक्षी दलों ने हर स्तर पर सरकार को आईना दिखाया है। कई मुद्दों पर तो न्यायालय ने भी फटकार लगाई है और भूमि अधिग्रहण को लेकर कई स्थानों पर किसान अभी तक धरने पर बैठे हुए हैं। इनमें से दो किसान अपनी जान भी गंवा बैठे हैं, जिसका किसानों ने सीधा आरोप सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति पर मढ़ा है। किसान मानते हैं कि मौजूदा कांग्रेस सरकार अपने निजी स्वार्थ के लिए किसानों की कोई सुनवाई नहीं कर रही है। ऐसे में प्रदेश के लोग सरकार से नाखुश हैं और बदलाव चाहते हैं।
प्रदेश में हुड्डा सरकार जोड़-तोड़ की बैसाखियों पर टिकी हुई है जिसके कारण सरकार को समर्थन दे रहे हरियाणा जन कांग्रेस (हजकां) के विधायक लाल बत्ती की गाड़ी में घूम रहे है। बैशाखी देने वाले सभी विधायकों को सरकार ने मुख्य सचिव पद भी दिया है, जिससे कांग्रेस के समर्पित विधायकों में रोष पनप रहा है। बेबसी में वे सामने नहीं तो आगे-पीछे सरकार की आलोचना करते हैं। कई बार सरकार के मंत्री व मुख्यमंत्री के बीच आपसी टकराव जनता के बीच आया और उन्होंने एक-दूसरे पर जमकर भड़ास निकाली। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी उ.प्र. में हरियाणा की जिस भूमि अधिग्रहण नीति को आदर्श बताकर जनता को लुभाने की नाकाम कोशिश करते रहे हैं, उसी हरियाणा सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति की आलोचना पूरे प्रदेश में हुई। यही नहीं अम्बाला, रोहतक, रेवाड़ी, पलवल, फरीदाबाद, फतेहाबाद, हिसार में किसानों ने आन्दोलन किया और फतेहाबाद में तो अभी भी किसान आंदोलन कर रहे हैं।
हरियाणा सरकार की शिक्षा नीति भी लोगों के गले नहीं उतर रही है। प्रदेश की जनता मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से एक ही सवाल पूछती है कि जिस हरियाणा को शिक्षा का केन्द्र बताया जा रहा है, वहां करीब 25 हजार शिक्षकों के पद रिक्त क्यों पड़े हैं? इसको लेकर न तो सरकार गंभीर नजर आती है और न ही रिक्त पदों को भरने के लिए कदम उठाए गए हैं। यही नहीं, शिक्षा की नई नीति को पूरे देश में सबसे बाद में हरियाणा में लागू किया गया है। न्यायालय ने प्रशासनिक अधिकारियों व पुलिस अधिकारियों की भर्ती में भी अनियमितता एवं घोटाले को भांपते हुए फटकार लगाई है। सरकार इस पर कोई भी सफाई नहीं दे सकी। बेशक न्यायालय ने खनन पर रोक लगाई लेकिन जिन कारणों को लेकर यह कदम उठाना पड़ा उसके पीछे भी प्रदेश सरकार की कमजोर व अस्पष्ट नीति ही नजर आती है। हालात यह हैं कि खनन पर रोक होने के कारण कई मुख्य परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग पर भी तेज गति से चल रहा निर्माण कार्य अधर में लटक गया है।
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