बात बेलाग
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समदर्शी
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी लंबे विदेश प्रवास से लौट आयीं। हालांकि उनकी अचानक सपरिवार विदेश यात्रा पर राजनीतिक गलियारों से लेकर गली-मौहल्लों तक तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं, लेकिन कांग्रेस का कहना है कि वह अपने डाक्टरों की सलाह पर एक व्जरूरी ऑपरेशनव् कराने गयी थीं। वह बीमारी क्या थी और ऑपरेशन अमरीका में कहां हुआ.. इस पर कांग्रेस मौन है। कांग्रेस का भावनात्मक तर्क है कि सार्वजनिक हस्तियों को भी निजता का अधिकार है। पर इस स्वाभाविक सवाल का कोई जवाब नहीं मिलता कि आखिर किसी बीमारी और उसके ऑपरेशन में निजता जैसा क्या है? याद नहीं पड़ता कि इससे पहले, कम से कम आजाद भारत में, कभी किसी बड़े नेता की बीमारी और ऑपरेशन के बारे में ऐसी गोपनीयता बरती गयी हो। असल में तो इसके उलट ही होता रहा है। सार्वजनिक हस्तियों से जनसाधारण के जुड़ाव के मद्देनजर उनके स्वास्थ्य की बाबत बाकायदा मेडिकल बुलेटिन जारी किए जाते रहे हैं। कहना न होगा कि इस अवांछित गोपनीयता ने, काले धन के विरोध में बाबा रामदेव के सत्याग्रह और भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए जन लोकपाल की मांग को लेकर अण्णा हजारे के अनशन के बीच, सोनिया की सपरिवार विदेश यात्रा को और भी संदेहास्पद बना दिया।
दोषारोपण का खेल
सोनिया के इस गोपनीय विदेश प्रवास के दौरान देश में जो हुआ, उसने मनमोहन सरकार और कांग्रेस, दोनों की ही विश्वसनीयता को रसातल में पहुंचा दिया। भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए कारगर लोकपाल यानी जन लोकपाल की मांग को लेकर अनशन करने वाले बुजुर्ग गांधीवादी समाजसेवी अण्णा हजारे और उनके साथियों के साथ मनमोहन सिंह सरकार जैसा छल-बल का खेल खेलती रही तथा दिग्विजय सिंह, मनीष तिवारी, कपिल सिब्बल सरीखे कांग्रेसी जिस भाषा का इस्तेमाल करते रहे, उससे सरकार और कांग्रेस भी कठघरे में खड़ी हुई। इस दौरान अनशन स्थल रामलीला मैदान समेत देश भर में कांग्रेस विरोधी जन भावनाओं से भी यह साबित हो गया है। अब जब सोनिया स्वदेश लौट आयी हैं, तो दरबारी संस्कृति वाली कांग्रेस में दोषारोपण का खेल शुरू हो गया है। सोनिया जाने से पहले चार लोगों की एक टीम बना गयी थीं कांग्रेस के संचालन के लिए। उसमें एक तो उनके बेटे राहुल गांधी ही थे। दूसरे थे राजनीतिक सचिव अहमद पटेल। बाकी दो नाम चौंकानेवाले थे, ए.के. एंटनी और जनार्दन द्विवेदी। एंटनी अरसे से सोनिया के भरोसेमंद हैं। करीब जनार्दन द्विवेदी भी माने जाते हैं, पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी से उनका कद अचानक ही बहुत बढ़ गया, जबकि संकटमोचक कहे जाने वाले प्रणव मुखर्जी से लेकर दिग्विजय सिंह तक अनेक कांग्रेसी टापते रह गए। सो, सोनिया की अनुपस्थिति में हुई सरकार, खासकर कांग्रेस की फजीहत का ठीकरा इस चौकड़ी के सिर फोड़ने का खेल शुरू हो गया है। राहुल तो अमरीका और भारत के बीच आना-जाना कर रहे थे और अहमद पटेल के विरुद्ध बोलने की हिम्मत किसी कांग्रेसी में है नहीं, इसलिए अब असंतुष्ट दरबारियों के निशाने पर जनार्दन और एंटनी हैं।
कांग्रेस का कुटिल चरित्र
वाई. एस.आर. याद हैं आपको? जी हां, आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाई.एस.राजशेखर रेड्डी, जो कभी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सबसे लाड़ले मुख्यमंत्री माने जाते थे। बेशक उनकी लोकप्रियता भी असंदिग्ध थी। उसी के परिणामस्वरूप वर्ष 2009 में कांग्रेस आंध्र प्रदेश में न सिर्फ लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब रही, बल्कि उसे राज्य विधानसभा में भी लगातार दूसरी बार जनादेश मिला। पर कुछ समय बाद वाईएसआर की एक हेलिकाप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। फिर जैसी कांग्रेस की वंशवादी परम्परा है, वाईएसआर समर्थकों ने उनके बेटे जगन मोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की, जो उस समय सांसद थे। जो कांग्रेस नेहरू परिवार के परिवारवाद को अपने लिए गर्व का विषय मानती है, उसी ने जगन को उत्तराधिकार नहीं सौंपा। पहले बुजुर्ग रोसैया को मुख्यमंत्री बनाया और फिर क्रिकेटर से राजनेता बने किरण रेड्डी को, पर जगन की बगावत से हिलता कांग्रेसी तंबू संभल नहीं पा रहा। सो अब कांग्रेस ने व्कांग्रेस ब्यूरो ऑफ करप्शनव् कही जाने वाली सीबीआई का सहारा लिया है। सीबीआई को अचनाक जगन की आय से अधिक संपत्ति, जो उनके पिता ने कांग्रेस मुख्यमंत्री रहते हुए ही बनायी थी, की याद आ गयी है तो उनके करीबी बताए जाने वाले कर्नाटक के रेड्डी बंधुओं पर भी शिकंजा कसा जा रहा है। कोशिश एक तीर से कई शिकार करने की है। वाईएसआर परिवार के करीबी माने जाने वाले ये रेड्डी बंधु भाजपा में हैं और निवर्तमान येदियुरप्पा सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं यानी जगन को डराया जा रहा है तो कर्नाटक में भाजपा सरकार को फिर हिलाने की कोशिश की जा रही है।
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