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अनशन खत्म हुआ आन्दोलन जारी है

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Sep 28, 2011, 12:00 am IST
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साहित्यिकी

दिंनाक: 28 Sep 2011 13:06:16

 शिवओम अम्बर

 बात कुछ कविता-पंक्तियों से प्रारम्भ कर रहा हूं-

 तूफानों से भिड़ने की तैयारी है,

 तख्त उधर है अगर इधर खुद्दारी है।

 तेरहवें दिन अण्णा ने उद्घोष किया-

 अनशन खत्म हुआ आन्दोलन जारी है।

 तन्द्रा में जी रहे राष्ट्र को जगाकर भावनात्मक एकता के सूत्र में बांध देने वाले और अपने अनशन की समाप्ति की उद्घोषणा के समय मशाल को निरन्तर जलाए रखने का सन्देश देने वाले अण्णा हजारे मुझे क्रान्ति-पुरुष भी प्रतीत हो रहे थे, काव्य-पुरुष भी। उनकी वाणी कवि दुष्यन्त कुमार की याद दिला रही थी-

 सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,

 मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

 मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,

 हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।

 अण्णा के आन्दोलन का क्षितिज मात्र राजनीति नहीं, समग्र जीवन-व्यवस्था को समाहित करता है। उनकी परिवर्तन कामना दैनन्दिन व्यवहार के अभिनव पच सूत्रों की चर्चा करती है-शुद्ध आचार, शुद्ध विचार, निष्कलंक जीवन, त्यागभाव तथा अवमानना सहने की सामथ्र्य। नैतिकता के ये नियम इस आन्दोलन को एक आत्मिक उजास से आपूरित कर देते हैं। व्चाहे जो मजबूरी हो, मांग हमारी पूरी होव् के स्वार्थकेन्द्रित आक्रोश के स्थान पर इस चिन्तना में राष्ट्र के भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के उत्कर्ष का आह्वान है।

 

इन सूत्रों में से प्रत्येक पर गंभीर चर्चा अपेक्षित है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध एक भद्दा मजाक बनकर रह जाएगा यदि योद्धाओं की दृष्टि मात्र दूसरों की तरफ उठेगी और वे आईने में अपनी सूरत निहारना छोड़ देंगे। समाज-सुधार से पहले आत्म-परिष्कार की ईमानदार कोशिश जरूरी है-

 कांच के खिलौने जैसी छुई-मुई जिन्दगानी

 बड़ी सावधानी से व्यतीत होनी चाहिए,

 भूल करना तो है मनुष्य का स्वभाव किन्तु

 मूल में तो भावना पुनीत होनी चाहिए।

 (-उदय प्रताप सिंह)

 

शुद्ध आचार और शुद्ध विचार के उदाहरण बनने वाले ही इस आवाज को उठाने के वास्तविक अधिकारी हैं कि हमारे प्रतिनिधियों का आचरण नौतिकता के मानकों के अनुरूप होना चाहिए। व्पर उपदेश कुशल बहुतेरेव् के दर्शन को जीने वाले एक विराट भीड़ का सामयिक चेहरा बन सकते हैं, राष्ट्र के समक्ष उपस्थित ज्वलन्त प्रश्नों का शाश्वत समाधान नहीं बन सकते। स्वर्गीय राधेश्याम प्रगल्भ की बहुपठित पंक्तियां उपर्युक्त दोनों सूत्रों के जीवन में आगमन का मार्ग बतलाती हैं-

 

दिन के उजेरे में ऐसा कोई काम करो,

 नींद जो न आए तुम्हें रात के अंधेरे में।

 रात के अंधेरे में न करो कोई काम ऐसा,

 मुंह जो छिपाना पड़े दिन के उजेरे में!

 इन दोनों सूत्रों की सम्यक् धारणा से तीसरा सूत्र अनायास सध जाता है। विचारों की शुद्धता जब अनुशासित आचरण में परिवर्तित होती है तथा जीवन में निष्कलंकता अपने आप आने लगती है। अंधेरी बस्ती में ऐसे एक फकीर की उपस्थिति भी आलोक स्तम्भ बन जाती है क्योंकि उसके शरीर को ढकने वाली चादर में पैबन्द हो सकते हैं, दाग नहीं होते-

 

दिल है दीवाने शायर पे,

 दुनियादार दिमाग नहीं है।

 इक फकीर तो है बस्ती में,

 गम क्या अगर चराग नहीं है।

 हो पैबन्द हजारों लेकिन,

 इस दामन पे दाग नहीं है।

 

त्याग भावना और अवमानना सहने की सामथ्र्य सहज ही श्रीमद्भगवद्गीता के उपदेशों का स्मरण दिलाती है। व्त्यागात् शान्ति: अनन्तरम्व् तथा व्सम: शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयो:व् के भगवद् निर्देश अन्ना जैसे वैष्णव व्यक्तित्व की चेतना में समाहित होकर उसे व्निमित्तमात्रं भव सव्यसचिन्व् का आदर्श जीने की प्रेरणा देते हैं। अपने विविध बीज वक्तव्यों में अण्णा ने गीता के उपर्युक्त निर्देशों की श्रद्धान्वित चर्चा की है। वह मानते हैं कि उन्हें निमित्त बनाकर परम सत्ता ने इस देश को इतिहास के एक नए मोड़ पे पहुंचा दिया है।

 

अण्णा के अन्तर्भाव को प्रकट करने के लिए मुझे स्व.रामावतार त्यागी की गीत-पंक्तियां सर्वाधिक अर्थवती प्रतीत हो रही हैं-

 

तन समर्पित मन समर्पित

 और यह जीवन समर्पित

 चाहता हूं देश की धरती

 तुझे कुछ और भी दूं।

 

पिछले लम्बे अरसे से गांधी टोपी आम आदमी से दूर थी। आज अण्णा के व्यक्तित्व की वाचक बनकर वह पुन: हर शीश पे सज गई है।

 

व्टीम अण्णाव् के अन्तर्विरोध

 

किन्तु जितनी आश्वस्ति के साथ अन्ना के सन्दर्भ में बात की जा सकती है उतनी निश्चिन्तता के साथ टीम अण्णा के बारे में टिप्पणी नहीं की जा सकती। यह बहुत से अन्तर्विरोधों से घिरी हुई है। अण्णा के पहले अनशन के समय मंच पर भारत माता का चित्र था, कुछ क्रान्तिवीरों की भी चित्रात्मक उपस्थिति थी। अण्णा अपने वक्तव्यों में शिवाजी से लेकर भगत सिंह तक की सराहना करते हैं, किन्तु टीम अण्णा ने इस बार की अपनी मंच सज्जा में इन सबको मंच से निर्वासित कर दिया। अण्णा की टीम ने बाबा रामदेव से पर्याप्त दूरी बनाए रखी जबकि भ्रष्टाचार के खिलाफ रण का पहला शंखोद्घोष बाबा रामदेव ने ही किया था। टीम अण्णा एक पाखण्डी व्स्वामी छद्मवेशव् को जरूर अपने सिर पर बिठाए रही और अब एक केन्द्रीय मंत्री के साथ उसकी आत्मीय वार्ता के वीडियो टेप समाचार चैनलों पर आने के बाद स्तब्ध है तथा स्वयं को प्रवंचित महसूस कर रही है। बाबा रामदेव के योग-साधकों ने, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तमाम स्वयंसेवकों ने पहले दिन से अण्णा का समर्थन और सहयोग किया है, किन्तु अण्णा-सहयोगियों में सर्वाधिक ऊर्जावान तथा सावधान अरविन्द केजरीवाल के धन्यावाद ज्ञापन में इन सहयोगियों के नि:स्वार्थ समर्पण को रेखांकित नहीं किया गया। हां, जामा मस्जिद के इमाम की व्वन्देमातरम्व् और व्भारतमाता की जयव् पर नाराजगी को दूर करने के लिए केजरीवाल और किरण बेदी इमाम की कदम-बोसी करने के लिए दौड़े-दौड़े गए और खाली हाथ वापस आए। अभी एक लम्बी लड़ाई लड़नी है, टीम अण्णा को दोस्त और दुश्मन में फर्क करने की समझ होनी चाहिए। उनसे कहूंगा-

 

सबकी पगड़ी उछालने वालो,

 अपने आगे भी आईना रखना।

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