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आलोक गोस्वामी
फिर वही प्रतिशोधी हथकंडे
जन लोकपाल को लेकर अण्णा हजारे के अनशन ने मनमोहन सिंह सरकार और कांग्रेस को जैसा शीर्षासन करवाया, उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है। बेशक गिरगिट की तरह रंग बदलती सरकार ने छल-बल में कोई कसर नहीं छोड़ी, पर अहिंसक आंदोलन और फिर उसे मिलते राष्ट्रव्यापी समर्थन के चलते अण्णा की तीन खास शर्तों पर शनिवार के दिन भी संसद में चर्चा हुई और उनसे सैद्धान्तिक सहमति का प्रस्ताव भी पारित किया गया। उसके बाद भी अगर सरकार की नीयत पर बहुतों को संदेह है तो वह सरकार की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान भी है, पर इसके लिए खुद वही जिम्मेदार भी है। संसद में प्रस्ताव के बाद अण्णा का अनशन समाप्त होते ही न सिर्फ दिग्विजय सिंह की बेहूदा बयानबाजी शुरू हो गयी है, सरकार ने बाकायदा व्टीम अण्णाव् के सदस्यों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। फरवरी, 2006 में ही आयकर विभाग से इस्तीफा दे चुके अरविंद केजरीवाल को अब नोटिस भेज कर 9,27,787 रुपए जमा करने को कहा जा रहा है। उनके परिजनों के ही नहीं, रिश्तेदारों तक के यहां सरकारी कारिंदे भेज कर उन्हें फंसाने की हरसंभव संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। इस पर तुरर्#ा यह कि केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से लेकर कानून मंत्री सलमान खुर्शीद तक सफाई दे रहे हैं कि उनकी सरकार प्रतिशोध में विश्वास नहीं रखती, कानून अपना काम कर रहा है। इस स्वाभाविक सवाल का जवाब देने को कोई तैयार नहीं है कि अण्णा के आंदोलन से पहले मनमोहन सरकार का यह व्कानूनव् कहां सो रहा था? इसी तरह बाबा रामदेव के पीछे तो सरकार हाथ धोकर पड़ी हुई है।
विशेषाधिकार की चिंता
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अण्णा की जन लोकपाल की मांग और आंदोलन को संसद और व्संसदीय लोकतंत्र पर खतरेव् के रूप में पेश करने की जो चाल चली थी, वह भी कामयाब होती नजर आ रही है। कानून बनाने में व्सिविल सोसायटीव् की सलाह पर जोर को सांसद अपने विशेषाधिकार में दखल के रूप में तो तब से ही देखने लगे थे, लेकिन अनशन के दौरान रामलीला मैदान में मंच पर किरण बेदी ने घूंघट ओढ़कर सांसदों के आचरण का जो मंचन किया तथा व्टीम अण्णाव् के सदस्य प्रशांत भूषण व अरविन्द केजरीवाल के साथ-साथ फिल्म अभिनेता ओमपुरी ने सांसदों के कामकाज की बाबत जो तल्ख टिप्पणियां कीं, उनसे उन्हें विशेषाधिकार हनन के कटघरे में खड़ा करने का मौका भी मिल गया है। यह सही है कि इन लोगों ने सांसदों के कामकाज पर टिप्पणियां करने में संयम नहीं रखा, पर जवाबी प्रतिक्रिया में खुद कई सांसद भी भाषाई संयम नहीं रख पाये। इन लोगों को भेजे गए विशेषाधिकार हनन नोटिसों की अंतिम परिणति क्या होती है, वह तो अभी देखना होगा, लेकिन अपने विशेषाधिकार के प्रति अधिक संवेदनशील सांसदों को अपने आचरण की बाबत भी गिरेबां में झांकना चाहिए। व्टीम अण्णाव् और ओमपुरी द्वारा विशेषाधिकार के कथिन हनन के बाद भी लोकसभा में सोते हुए लालू प्रसाद यादव को जगाने के लिए अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार को एक अन्य सदस्य से कहना पड़ा था।
व्युवराजव् को सबक
कांग्रेसियों द्वारा भावी प्रधानमंत्री के रूप में पेश किए जा रहे व्युवराजव् राजनीति भी फिल्मी स्टाइल में करते हैं। किसी व्सेलिब्रिाटीव् की तरह अचानक टीवी कैमरों की चकाचौंध के बीच वे अवतरित होते हैं, उसी अंदाज में कुछ व्डायलॉगव् बोलते हैं, व्फोटो सेशनव् सा कराते हैं और फिर सुर्खियां बटोर कर वापस कहीं गायब हो जाते हैं, ऐसी ही किसी अगली उपस्थिति तक के लिए। भट्टा-पारसौल में धरने से लेकर लोकसभा में अण्णा के अनशन पर लिखा हुआ भाषण पढ़ने तक, उनकी इस शैली के उदाहरणों की फेहरिस्त लंबी है, पर सात सितम्बर को तो हद ही हो गयी। कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार आतंकवाद पर नियंत्रण करने में पूरी तरह नाकाम साबित हो रही है। फिर भी कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ हर आतंकी हमले के बाद पहुंच जाती हैं पीड़ितों से सहानुभूति जताने। अभी जुलाई में मुम्बई में श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों के बाद भी यही हुआ था। सात सितम्बर को दिल्ली उच्च न्यायालय के प्रवेश द्वार पर आतंकी विस्फोट करने में सफल हो गए। उस वक्त प्रधानमंत्री बंगलादेश दौरे पर थे और व्आपरेशनव् कराकर सोनिया स्वदेश लौटी नहीं थीं, सो राहुल निकल पड़े। घटनास्थल गए और राममनोहर लोहिया अस्पताल भी, जहां घायल भर्ती थे। इस अंतहीन राजनीतिक नौटंकी से आजिज आ चुके लोगों, खासकर पीड़ितों का धैर्य जवाब दे चुका था, सो उन्होंने व्राहुल गांधी शर्म करोव् के नारों से व्युवराजव् को आईना दिखा दिया।
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