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सीमा पर खतरा चीनी मिसाइलें

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Sep 27, 2011, 12:00 am IST
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दिंनाक: 27 Sep 2011 17:59:14

पूर्वोत्तर में चीन ने तैनात कीं परमाणु मार वाली अत्याधुनिक मिसाइलें
…पर भारत की क्या है तैयारी?

आलोक गोस्वामी

भारत को लेकर चीन का रवैया आक्रामक होता जा रहा है। भारत और चीन के बीच 4057 कि.मी. लम्बी सीमा पर चीन ने अपनी हलचलें न केवल तेज कर दी हैं, बल्कि अपनी रक्षा तैयारियों में नए आयाम जोड़ने शुरू कर दिए हैं। दक्षिण एशिया की हदों से निकलकर दुनिया के दूसरे हिस्से तक अपनी धमक महसूस कराने को बेताब चीन के सामने व्62 का कसैला स्वाद मुंह में अब तक महसूस करने वाले भारत की रणनीतिक स्थिति पर नजर डालें तो तस्वीर बहुत आशाजनक नहीं दिखाई देती। लद्दाख में कुछ कुछ समय बाद चीनी सैनिकों का बेखटके आना-जाना, भारत की सीमा का अतिक्रमण करना, पाक अधिकृत कश्मीर में 11 हजार चीनी सैनिकों का मौजूद होना, तिब्बत में सड़कों और रेलों का जाल बिछाते हुए दूसरे ढांचागत निर्माणों में तेजी जाना, ब्राहृपुत्र नदी पर बांध बांधना, जम्मू-कश्मीर के लोगों को अलग कागज पर वीसा देना, अरुणाचल पर रह-रहकर दावा जताना, भारत के प्रधानमंत्री तक के वहां आने पर एतराज करवाना….सिक्किम से सटी सीमारेखा पर गाहे-बगाहे घुसपैठ करना, अंदमान के समंदर में टोही जहाजों से भारत की मिसाइल तैयारियों की जासूसी करवाना….और अभी कुछ ही दिन पहले भारत-चीन सीमा पर रणनीतिक दबाव बढ़ाते हुए ठोस र्इंधन की परमाणु हथियारों से लैस मिसाइलें तैनात करना….।

भुलावे में उलझे

चीन की भारत के संदर्भ में ऐसी उग्र रणनीतिक चालों के सामने हमारे व्साउथ ब्लाकव् की क्या सोच है? लोग भूले नहीं हैं कि लद्दाख में पिछले दिनों चीनी सैनिकों की एक के बाद एक आवाजाही को भारत का विदेश अधिष्ठान पहले तो झुठलाता ही रहा था, लेकिन जब मीडिया में यह बात खुलकर सामने आई तो दबे स्वर में उसे मानना पड़ा कि चीनी सैनिक भारत की सीमा में दाखिल हुए थे। इस पर भी भारतीय विदेश विभाग के अधिकारियों ने सीमा के साफ चिन्हित न होने का जुमला उछाल दिया। यह तो चीन की सदा से टेक रही है कि व्चीन-भारत सीमाएं ठीक से चिन्हित नहीं हैं इसलिए शायद कभी-कभी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पी.एल.ए.) लद्दाख में सीमा के परे चली जाती है।व् इतना ही नहीं, कई मौकों पर चीनी रक्षा अधिकारियों ने यहां तक बयान दिया कि व्कोई अतिक्रमण नहीं हुआ है, भारत किसी भुलावे में है।व् उधर भारत का व्साउथ ब्लाकव् मुंह पर ताले ही लगाए रहा है।

दरअसल, प्रधानमंत्री नेहरू के जमाने में चाऊ एन लाई के साथ और अब वेन जिया बाओ के साथ भारत की सत्ता चीन को लेकर न जाने किस खुशफहमी का शिकार बनती आ रही है। तब हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नेहरूवादी नारा गुंजाया गया था और आज व्कारोबार और मेल-मिलाप बढ़ानेव् के कसीदे पढ़े जा रहे हैं। सीमा विवाद के बहाने बैठक करने की रस्म चीन को भाती है इसलिए एक ओर वह भारत को यह रस्म निभाते रहने को उकसाता है तो दूसरी ओर पाकिस्तान को लड़ाकू विमान, पनडुब्बियां, बन्दरगाह और बांध बनाकर देता है। उसे अत्याधुनिक तोपें और टैंक देता है। यानी चीन ने पी.ओ.के. में अपने सैनिक तैनात करके इधर पाकिस्तान को भारत के खिलाफ उकसाया हुआ है तो उधर सिक्किम, अरुणाचल में वह खुद आक्रामक पैंतरे चल रहा है।

चीन से लगती भारत की सीमा को मोटे तौर पर तीन भागों में देखा जा सकता है- 1.पश्चिम सेक्टर, जहां भारत की 14वीं कोर तैनात है। 2.मध्य सेक्टर, जहां भारत की 6 माउंटेन डिविजन तैनात है। 3. पूर्वी सेक्टर, जो सबसे ज्यादा हलचल भरा है, जिससे सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश सटे हैं। चीन यहां की 90 हजार वर्ग किमी. जमीन पर अपना दावा जताता है। सन् 2009 में यहीं पर भारतीय सेना की दो डिवीजनें बनाने के बारे में फैसला किया गया था, लेकिन ताजा जानकारी के अनुसार, इस सेक्टर की सुरक्षा बढ़ाने के लिए दो डिवीजनों के अलावा भारत ने एक माउंटेन स्ट्राइक कोर गठित करने का भी फैसला किया है, जिसे अंजाम देने की कार्रवाई शुरू हो चुकी है। रक्षा विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, 45 हजार जवानों वाली यह कोर पूर्वोत्तर में स्थायी तौर पर तैनात रहेगी और सिक्किम व अरुणाचल पर खास ध्यान रखेगी। यह कोर तिब्बत की तरफ से होने वाली किसी भी चीनी हरकत का करारा जवाब देगी। इसके जवानों को उस तरह के हथियार और प्रशिक्षण दिया जाएगा।

चीन की पूरी तैयारी

जैसा कि अब सब जानते हैं तिब्बत में चीन ने सड़कों और रेल का बेहतरीन ताना-बाना बना लिया है। तो अगर कभी चीन इन सुविधाओं का लाभ उठाकर अपने सैनिकों को भारत के विरुद्ध तिब्बत में जमा कर लेता है या भारत के किसी सीमांत इलाके पर चढ़ बैठता है तो भारतीय सैनिक न केवल चीनी हरकतों की पूर्व सूचना रख पाएंगे बल्कि प्रभावी कार्रवाई कर सकेंगे। तब कारगिल में स्थिति गंभीर हो गई थी क्योंकि पाकिस्तानी सैनिक ऊंचाई पर स्थित भारतीय ठिकानों पर चढ़ बैठे थे जिन्हें छुड़ाने के लिए भारतीय जवानों ने बहुत बलिदान दिए थे।

वाशिंगटन से हाल ही में आई एक और खबर ने भारत के रक्षा विशेषज्ञों और नीतिकारों को सावधान कर दिया है। अमरीकी रक्षा अधिष्ठान पेंटागन ने अपनी ताजा सालाना रपट में अमरीकी संसद को बताया है कि चीन ने भारत के सामने एक व्निरोधक क्षमताव् खड़ी करते हुए परमाणु हथियार ले जा सकने वाली ठोस र्इंधन की ज्यादा सुघड़ और भरोसेमंद सी.सी.एस.-5 एम.आर.बी.एम. मिसाइलें तैनात की हैं। चीनी सेना ने ये मिसाइलें सी.सी.एस.-2 एम.आर.बी.एम. मिसाइलों की जगह तैनात की हैं जो तरल र्इंधन से चलती थीं। सवाल खड़ा होता है कि यह जानकारी अमरीकी रक्षा अधिष्ठान के हवाले से आई है, भारत का रक्षा अधिष्ठान क्या इस गतिविधि से अनजान था, या जानता है पर सामने नहीं ला रहा? पेंटागन ने साफ कहा है कि बीजिंग भारत से सटी सीमा पर ढांचागत विकास में बेतहाशा पैसा झोंकते हुए सड़कें और रेल लाइनें बिछा रहा है। लेकिन यह सब आगे चलकर सैन्य कार्रवाइयों में भी काम में लाया जा सकता है।

चीन के ऐसे आक्रामक रवैए को देखते हुए पूर्वोत्तर में स्थायी तौर पर माउंटेन स्ट्राइक कोर तैनात करने भर से क्या भारत की रक्षा चिंताओं का समाधान हो जाएगा? क्या उन 45 हजार सैनिकों के पास आधुनिक हथियार हैं, क्या हमारे तोपखाने में ज्यादा मारक तोपें हैं, क्या हमारे सैन्य संचार और टोही उपकरणों में वह सुघड़ता है, क्या थलसेना की मदद के लिए वायुसेना के पास पर्याप्त आधुनिक लड़ाकू विमान, हैलीकाप्टर, टोही उपकरण, कारगर हवाई पट्टियां हैं? ये वे सवाल हैं जिनका जवाब खोजे बिना सैन्य टुकड़ी की मारक क्षमता की सही तस्वीर नहीं मिल पाएगी।

भारत के रक्षा विशेषज्ञों, भारत-चीन मामलों के जानकारों और रणनीतिक विश्लेषकों के साथ ही मीडिया में भारत की रक्षा तैयारियों में सेना के आधुनिकीकरण की मांग लंबे समय से उठती रही है। लेकिन काम जिस गति से चल रहा है उसे देखकर पीड़ा होती है। फैसले लेने में देर की जाती है, फिर उन्हें अमल में लाने के लिए मुहूरतों का इंतजार किया जाता है और लंबे समय बाद जाकर सेना को हथियार उपलब्ध हो पाते हैं। लेकिन इसमें भी रक्षा विभाग के अधिकारियों की बुद्धि पर तब तरस आता है जब सौदों या रक्षा सहयोग में वे नौसिखियापन दिखाते हैं। अभी भारत ने रूस के साथ मिलकर पांचवीं पीढ़ी के आधुनिक लड़ाकू विमान बनाने का करार किया था। भारत ने इसके लिए रूस को 35 खरब डालर दिए हैं। लेकिन क्या भारत के रक्षा अधिकारी नहीं जानते कि रूस खुद फ्रांस से लड़ाकू विमान की तकनोलॉजी ले रहा है?

चिंताजनक हालात

भारत की लचर रक्षा तैयारियों पर इंडियन डिफेंस रिव्यु के संपादक कैप्टन भरत वर्मा कहते हैं, व्पहाड़ी इलाके में भारत ने अब तक हवाई पट्टियां, सड़कें और दूसरे ढांचागत निर्माण न करके बड़ी गलती की है। ऐसे में वहां सैनिकों की आवाजाही बेहद मुश्किल हो जाती है। माउंटेन कोर गठित कर दी जाए तो भी जवानों की सुगम आवाजाही तो पहली जरूरत है। इसके बिना वे इलाके को सुरक्षित कैसे रखेंगे? क्योंकि आपके सामने खड़े चीनियों के पास मिसाइलों और हवाई क्षमता की कमी नहीं है, तेजी से आवाजाही कर सकने वाले सैनिकों की कभी नहीं है। ऐसे में हम अपनी सीमाएं कहां तक सुरक्षित रख सकते हैं?

व्पर्वतीय इलाकों में हमारी वायुसेना इसलिए पूरी तरह कारगर नहीं हो सकती क्योंकि वहां उसके पास सुखोई 30 को छोड़कर कोई आधुनिक विमान नहीं है, सैनिकों को लाने-ले जाने के लिए बड़े हैलीकाप्टर नहीं हैं, आधुनिक राडार नहीं हैं, पूर्व सूचना देने वाले व्अवाक्सव् जैसे उपकरण नहीं हैं। पूर्वोत्तर से सटी चीन सीमा पूरी से तरह पहाड़ी इलाका है इसलिए कई बार पूर्व सूचना देने वाले उपकरण भी कामयाब नहीं रहते जब तक कि वे बहुत ऊंचाई पर न हों। 197 हैलीकाप्टर की सालों से मांग रही है, पर नहीं मिले हैं, तोपखाने में तोपें नहीं हैं। 25 साल से नई तोपें नहीं आई हैं। पुरानी बोफर्स तोपों के पुर्जे नहीं हैं। वायुसेना को सतह से मदद देने वाला जमीनी सुरक्षा तंत्र दूसरे विश्व युद्ध के जमाने की तोपों एल-60, एल.-70 से काम चला रहा है। मिसाइलों की बात करें तो चीन के मुकाबले हमारी मिसाइल क्षमता कमजोर है।व् उनका कहना है कि कुल मिलाकर तस्वीर निराश करने वाली है। व्62 जैसी लड़ाई छिड़ी तो इन सीमाओं पर हालात सबसे ज्यादा खराब हो जाएंगे, क्योंकि इस बार चीन दमदार तैयारी कर चुका है। चीन अपने रक्षा तंत्र पर भारत से 6-7 गुना ज्यादा पैसा खर्च करता है।

लंदन के फायनेंशियल टाइम्स ने हाल ही में खबर छापी है जिसके अनुसार चीन के एक युद्धपोत ने दक्षिण चीन सागर में विएतनाम से लौटते भारत के एक जहाज आई.एन.एस. एरावत को रोककर उससे जवाब-तलब किया था। यह घटना जुलाई के अंतिम सप्ताह की है। लेकिन एक बार फिर, भारतीय नौसेना ने बयान जारी करके उस खबर का खण्डन कर दिया। बयान में कहा गया कि एरावत का किसी चीनी जहाज से सामना नहीं हुआ। अमरीकी रक्षा अधिष्ठान पेंटागन की उस रपट को आए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जिसमें उसने चीन की समन्दर के अंदर अपनी ताकत बढ़ाने की गतिविधियों की जानकारी दी थी। चीन दक्षिण चीन सागर में खनिज की प्रचुरता वाले इलाकों और जहाज मार्गों पर कब्जा जमाने को उतावला है।

वक्त की मांग है कि भारत के रक्षा विभाग को बीजिंग पर नजर रखते हुए सैन्य ताकत में आज के संदर्भों में बढ़ोत्तरी के लिए सतत् प्रयास करते रहना होगा। व्62 के भुलावे को दूर रखते हुए चीजों को उनके असली रंग-रूप में पहचानना होगा और राजनीतिक नेतृत्व को रीढ़ सीधी रखते हुए देश के स्वाभिमान को सर्वोपरि रखना होगा। द

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