यह है सोनिया-राहुल की असलियत!
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राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट का मामला
उल्लावास गांव से अरुण कुमार सिंह
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी की कथनी-करनी, सिद्धांत-व्यवहार आदि में इतना फर्क है कि आप उनकी असलियत जानकर आश्चर्य में पड़ जाएंगे। जो राहुल गांधी ग्रेटर नोएडा के भट्टा पारसौल गांव के किसानों का व्हमदर्दव् बनने के लिए झूठ का सहारा लेते हैं, चुपके से (किंतु मीडिया को साथ लेकर) किसानों के बीच जाते हैं, पदयात्रा करते हैं, किसानों को लेकर प्रधानमंत्री से मिलते हैं, वही राहुल गुड़गांव (हरियाणा) में किसानों को उजाड़ने की वजह बनते हैं। उल्लेखनीय है कि सारे नियम-कानून को ताक पर रखकर गुड़गांव के उल्लावास गांव की 5 एकड़ (खसरा सं. 71, 40 कनाल, 3 मरला) जमीन, जो ग्राम पंचायत की है, राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को 6 दिसंबर, 2009 को लीज पर दे दी गई है। इस ट्रस्ट की अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं, और राहुल गांधी एवं प्रियंका वढेरा न्यासी हैं। ट्रस्ट को यह जमीन 33 साल (7 जनवरी, 2043 तक) के लिए तीन लाख रु.प्रति एकड़ सलाना की दर से दी गई है। बताया गया है कि ट्रस्ट इस जमीन पर नेत्र चिकित्सालय और शोध केन्द्र बनाएगा। किंतु ट्रस्ट को जमीन मिले लगभग दो साल हो गए हैं, पर वहां अभी तक एक र्इंट भी नहीं लगी है। हां, टीन की चारदीवारी जरूर है। वहां ट्रस्ट का एक बोर्ड लगा था, जिस पर ग्रामीणों ने अपना गुस्सा उतार दिया। यानि अब वह बोर्ड भी नहीं है।
इसी के साथ दिल्ली के एक चिकित्सक, जो गांधी परिवार के नजदीकी हैं, डा.हंसराज सचदेवा को भी लगभग सवा एकड़ (खसरा सं. 74/1, 9 कनाल) जमीन दी गई है। वरिष्ठ भाजपा नेता राजनाथ सिंह ने 18 अगस्त को इस मामले को लोकसभा में उठाया और आरोप लगाया कि हरियाणा सरकार डरा-धमकाकर औने-पौने दामों पर किसानों को जमीन बेचने के लिए मजबूर कर रही है। उन्होंने उल्लावास गांव की स्थिति को गंभीर बताते हुए कहा कि वहां किसानों से जबरदस्ती हस्ताक्षर कराकर जमीन उस राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को दे दी गई, जिसकी अध्यक्ष खुद सोनिया गांधी हैं।
इतना सब होते हुए भी उस सेकुलर मीडिया ने इस खबर को कोई तरजीह न दी, जो राहुल गांधी की पदयात्रा की खबर देने के लिए 24 घंटे उनके साथ रहता है। लोग कहते हैं कि हरियाणा की कांग्रेस सरकार की भू-अधिग्रहण नीति से सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वढेरा भी लाभान्वित हो रही हैं, शायद इसलिए राहुल गांधी हरियाणा सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति की प्रशंसा करते हैं, और उ.प्र. सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति के खिलाफ रैली करते हैं।
यूं बाहर आई सच्चाई
भला हो हरियाणा-पंजाब उच्च न्यायालय का, जिसके कारण राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट की आड़ में सोनिया-राहुल की सच्चाई बाहर आई। उल्लेखनीय है कि 2 जून, 2009 को हरियाणा अर्बन डवलपमेंट अथॉरिटी (हुडा) ने गुड़गांव के पास के आठ गांवों (नागली उमरपुर, तिगरा, उल्लावास, कादरपुर, मेढावास, बादशाहपुर, बेहरामपुर और घाटा) की 1417.07 एकड़ जमीन को अधिग्रहित करने के लिए धारा 4 लगाकर अधिसूचना जारी की थी। धारा 4 जमीन अधिग्रहण की पहली सीढ़ी है। इस धारा के लगने का अर्थ है कि सरकार अधिसूचित भूमि को अपने कब्जे में लेने वाली है। यदि कोई अपनी जमीन सरकार को नहीं देना चाहता है, तो वह धारा 5 (ए) के अंतर्गत अपनी आपत्ति दर्ज करा सकता है। यदि जमीन अधिग्रहण के खिलाफ कोई आपत्ति दर्ज नहीं करता है तो फिर धारा 6 लगाई जाती है और जमीन सरकार के अधीन हो जाती है और जमीन मालिक को तय मुआवजा दे दिया जाता है। हुडा ने जमीन अधिग्रहण का कारण बताया था कि चूंकि गुड़गांव की आबादी बढ़ रही है इसलिए नए सेक्टर 58, 59, 60, 61, 62, 63, 65, 66 तथा 67 बनाए जाएंगे। किंतु राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को दी गई जमीन के संबंध में एक चालाकी यह की गई कि उस पर धारा 4 लगने के पूर्व ही वह ग्राम पंचायत के माध्यम से लीज पर दे दी गई। और फिर वित्त आयुक्त एवं मुख्य सचिव (हरियाणा सरकार, शहरी सम्पदा विभाग) ने अपने पत्र (5/111/2010-2 टी.सी.पी. (44), 6 दिसम्बर, 2010) के माध्यम से उसे चेन्ज आफ लैण्ड यूज (सी.एल.यू.) प्रदान कर दिया। यानी उस जमीन पर ट्रस्ट का कब्जा अधिकृत रूप से हो गया। ग्रामीणों का कहना है कि यह सब एक साजिश के तहत किया गया। इसलिए यह जमीन अधिग्रहित नहीं की गई, जबकि 31 मई 2010 को ग्रामीणों की 850.10 एकड़ जमीन और घर भी सरकारी कब्जे में आ गए। यहां तक कि मन्दिर और श्मशान घाट का भी अधिग्रहण कर लिया गया। इसके बाद लोगों को उचित मुआवजा दिए बिना घर खाली करने और जमीन छोड़ने को कहा गया। सरकार के इस फरमान के विरोध में ग्रामीणों, बिल्डरों आदि की तरफ से 70 याचिकाएं पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय में दर्ज हुर्इं। ग्रामीणों ने न्यायालय से कहा कि उन्हें अपना पुश्तैनी घर, जमीन छोड़ने को कहा जा रहा है, किंतु राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को दी गई जमीन के संबंध में ऐसा नहीं किया जा रहा है।
हरियाणा भाजपा के प्रदेश महामंत्री वीर कुमार यादव ने बताया, व्इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने 26 जुलाई, 2011 को सरकार से पूछा कि राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट किसका है, उसे छूट क्यों दी जा रही है? इस पर सरकार ने कहा कि इस पूरे अधिग्रहण के मामले को देखने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति बनाई जाएगी। इस पर न्यायालय ने नाराजगी व्यक्त करते हुए दुबारा उस ट्रस्ट के बारे में पूछा। तब सरकार ने एक बंद लिफाफे में उस ट्रस्ट की जानकारी न्यायालय को दी। अभी उन 70 याचिकाओं का निपटारा नहीं हुआ है। इस बीच उल्लावास गांव के 15 लोगों ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर राजीव गांधी ट्रस्ट को दी गई जमीन का विरोध किया। उच्च न्यायालय ने ग्रामीणों से जानना चाहा कि ट्रस्ट को दी गई जमीन से जनहित किस प्रकार बाधित हो रहा है? इसका सही जवाब ग्रामीण नहीं दे पाए। तब न्यायालय ने उनसे कहा कि याचिका वापस ले लो और ग्रामीणों ने याचिका वापस ले ली। इसका मतलब यह नहीं है कि ट्रस्ट को दी गई जमीन का मामला खत्म हो गया है। चूंकि यह जनहित का मामला नहीं बनता था इसलिए जनहित याचिका खारिज हुई है।व्
सरकारी साजिश
दरअसल इस ट्रस्ट को जमीन दिलाने के लिए सरकारी स्तर पर एक साजिश रची गई। साजिश के तहत ग्राम सभा की आम बैठक के बिना सरपंच के माध्यम से यह जमीन ट्रस्ट को लीज पर दी गई। जब इसकी भनक ग्रामीणों को लगी तो पिछली तिथि में ग्राम सभा की बैठक की औपचारिकता पूरी की गई। किन्तु यह औपचारिकता भी आधी-अधूरी ही रही। कहा जाता है कि इसमें गुड़गांव के तत्कालीन उपायुक्त राजेन्द्र कटारिया, जो प्रदेश कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष फूलचंद मुलाना के दामाद हैं, की मुख्य भूमिका रही। उन्होंने ग्रामीणों पर ट्रस्ट को जमीन देने के लिए दबाव डाला। इनके अलावा कुछ कांग्रेसी नेताओं ने भी अहम भूमिका निभाई है। इनमें प्रमुख हैं वर्तमान पंचायत मंत्री धर्मवीर सिंह, पूर्व विधायक सुखबीर जौनापुरिया आदि।
राजीव गांधी ट्रस्ट को ग्राम सभा की जमीन देने से उल्लावास गांव के लोगों में भारी आक्रोश है। ग्रामीणों का कहना है उन्हें अंधेरे में रखकर ट्रस्ट को जमीन दे दी गई। ग्रामीण राम सिंह ने बताया कि विकास के नाम पर यहां से लोगों को उजाड़ा जा रहा है। वर्षों पुराने मकानों को गिरा दिया जा रहा है। दूसरी ओर राजीव गांधी ट्रस्ट को दी गई जमीन बचाने के लिए पूरा सरकारी कुनबा दिन-रात एक कर रहा है। जबकि एक अन्य ग्रामीण राजू हवलदार का कहना था कि गांव के आस-पास ऐसी कोई जगह नहीं बची, जहां गांव के बच्चे खेल-कूद सकें। ग्राम सभा की जमीन भी किसी न किसी को दी जा रही है। यह गलत है। हम सब सरकार की इस भू-अधिग्रहण नीति का जम कर विरोध करेंगे।
पूर्व सरपंच सुरेन्द्र सिंह, जिन्होंने यह जमीन राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को दी, और वर्तमान सरपंच आजाद सिंह की भूमिका पर भी ग्रामीण प्रश्न उठा रहे हैं। लोगों का कहना था कि पूर्व सरपंच सुरेन्द्र सिंह ने ग्राम सभा को बताए बिना यह जमीन लीज पर दे दी। बाद में जब ग्रामीणों को इस बारे में पता चला तो सुरेन्द्र सिंह ने कहा उन्होंने ऐसा दबाव में किया है। किन्तु अब वे फिर अपने बयान से पलट गये हैं। कहा जाता है कि उन पर सरकारी स्तर पर भारी दबाव है, इसलिए वे अपने बयान से पलट गए। ग्रामीणों ने यह भी कहा कि राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट और डा. हंसराज सचदेवा को लीज पर दी गई जमीन के बदले पंचायत के पास हर साल लगभग 18 लाख रुपए आते हैं। किन्तु यह पैसा कहां खर्च हो रहा है यह किसी को पता नहीं चल रहा है। गांव की सड़कें खराब हैं, नालियां बजबजा रही हैं, पर ग्राम सभा का पैसा कहां खर्च हो रहा है? कुछ लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट के पास इतना पैसा कहां से आ रहा है कि वह उस जमीन पर कुछ किए बिना हर साल ग्राम पंचायत को लगभग 15 लाख रु. दे रहा है। उधर ग्रामीण आपस में पैसे इकट्ठे कर इस जमीन की लड़ाई को जारी रखने के पक्ष में हैं और शीघ्र ही ग्रामीणों की बैठक होने वाली है जिसमें आगे की रणनीति तय की जाएगी।
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