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अण्णा हजारे ने देश की जनता की शक्ति, विश्वास और बल के सहारे सरकार को झुकाने में जो ऐतिहासिक सफलता अर्जित की है उसने देश की ज्वलंत आवश्यकता व्व्यवस्था परिवर्तनव् की राह आसान कर दी है। इस 74 वर्षीय वयोवृद्ध सत्याग्रही ने यह कहकर व्यह आधी जीत है…पूरी जीत होने तक आंदोलन जारी रहेगाव् उन सभी राजनेताओं को धूल चटा दी, जो किसी भी हथकंडे से अण्णा के आंदोलन को विफल करने, अनशन को तुड़वाने और भ्रष्टाचार के खिलाफ उमड़े जनाक्रोश को दिशा भ्रमित करने की अत्यंत घटिया राजनीति कर रहे थे। अण्णा ने सिंह गर्जना कर दी…व्अनशन टूटा नहीं, स्थगित हुआ है। जन संघर्ष जारी रहेगा।व्
विफल हुर्इं राजनीतिक चालबाजियां
सरकार, सरकारी एजेंटों और मौका-परस्त राजनीतिक नेताओं ने निरंतर 13 दिन तक चले अण्णा के अनशन के दौरान प्रत्येक प्रकार की राजनीतिक शतरंजी चालें चलते हुए जनता का मनोबल तोड़ने की कोशिश की। सरकार में शामिल मंत्रियों ने इस गांधीवादी आंदोलन को असंवैधानिक, असंसदीय और अव्यावहारिक सिद्ध करने में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ी। लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान जैसे जातिनिष्ठ नेताओं ने तो अण्णा टीम को दलित विरोधी और किसान विरोधी कहकर बदनाम किया और दिल्ली स्थित मुस्लिम नेता इमाम अहमद बुखारी ने भारत माता की जय और वंदेमातरम् जैसे राष्ट्रीय उद्घोषों पर प्रश्नचिन्ह लगाकर राष्ट्रभक्त अण्णा हजारे के व्यक्तित्व और राष्ट्रवादी जनजागरण को इस्लाम के उसूलों के ही विरुद्ध घोषित कर दिया।
देश के कोने-कोने से उठीं भ्रष्टाचार विरोधी बुलंद आवाजों ने उपरोक्त सभी कुप्रयासों की हवा निकाल कर इस महासंग्राम को न केवल राष्ट्रव्यापी ही बनाया, अपितु प्रत्येक जाति, पंथ, वर्ग और क्षेत्र के लोगों ने इसे सर्वसमाज जनांदोलन में बदल डाला। देशभक्ति से परिपूर्ण देश की जनता ने राजनीतिक नेताओं की सभी चालबाजियों को अपनी गैर राजनीतिक संगठित शक्ति के बल पर उस नकारखाने में फेंक दिया जहां शायद भविष्य में भी इनकी तूती बोल नहीं सकेगी। इस जनांदोलन ने राजनेताओं को जनता के कष्टों को समझने और अपनी सीमाएं पहचानने की नसीहत दी है।
युवाशक्ति को भी दिशा दी
देश और समाज की सेवा के लिए सदैव अग्रिम पंक्ति में रहने के इच्छुक देशभक्त युवाओं को अण्णा हजारे ने एक निश्चित और ठोस दिशा प्रदान की है। संभवतया स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात के कालखंड में यह प्रथम आंदोलन है जिसमें युवाओं ने इतने बड़े पैमाने पर पूरे उत्साह और निष्ठा के साथ भाग लिया है। सिनेमा और पिज्जा संस्कृति से बाहर निकलकर युवा शक्ति ने वंदेमारतम्, भारत माता की जय और इंकलाब जिंदाबाद की संस्कृति में प्रवेश किया है। देश के भविष्य को एक सशक्त राष्ट्रीय मानसिकता प्रदान करने की दिशा में अण्णा के योगदान को नकारा नहीं जा सकता।
राहुल गांधी जैसे वंशवादी, कथित युवा नेता के पीछे बिना सोचे-समझे थोड़ी-बहुत मात्रा में भागने लगी युवाशक्ति का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में शामिल होना एक शुभ शुरुआत है। समय के साथ यही युवा शक्ति चीन और पाकिस्तान प्रेरित नक्सलवाद और आतंकवाद को भी चुनौती देगी। अण्णा हजारे जैसे राष्ट्रीय फकीर के पीछे खड़े होकर हमारे देश की युवाशक्ति स्वार्थी राजनेताओं के पदचिन्हों पर अब नहीं चलेगी और व्यवस्था परिवर्तन का बिगुल बजेगा ऐसा संकेत इस जनांदोलन ने दिया है।
सफल जनांदोलन का आधार
अनशन से पूर्व अण्णा ने देश की जनता के नाम अपने संदेश में कहा था कि हिंसा से दूर रहकर सत्याग्रह करो। देश की जनता विशेषतया युवाओं ने इस आदेश का अक्षरश: पालन किया। हिंसा की एक भी घटना का न होना जनांदोलन की सफलता का सशक्त आधार बन गया। इस अहिंसक संग्राम ने उन हिंसक आतंकवादियों को भी संदेश दिया है जो अपने एजेंडे की पूर्ति के लिए बेगुनाह और निहत्थे लोगों का खून बहा रहे हैं। अहिंसा के मार्ग से लक्ष्य प्राप्ति के गांधीवादी सिद्धांत को स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश की जनता ने एक बार फिर समझा है और प्रत्यक्ष देखा भी है। यह इस जनांदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
व्यवस्था परिवर्तन के लिए भविष्य में भी जारी रहने वाले इस अहिंसक जनांदोलन का नायक कोई राजनीतिक नेता नहीं है। इस जननायक के पास कोई संगठित कार्यकत्र्ताओं की श्रृंखला भी नहीं है। इस फकीर ने अपना कोई दल अथवा संगठन भी खड़ा नहीं किया। भ्रष्टाचार जैसी देशव्यापी खतरनाक महामारी को समाप्त करने का बीड़ा उठाने वाले इस खद्दरधारी जननेता के पास बड़े-बड़े उद्योगपतियों द्वारा दी जाने वाली पूंजी भी नहीं है। सफेद वस्त्रधारी इस संत का तो घर/परिवार भी नहीं है। व्यक्तिगत सम्पत्ति होने का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता। तिरंगा झंडा उठाए आंदोलनकारियों ने सभी खर्चे स्वयं वहन किए। माताओं, बहनों ने अपने घरों से भोजन के पैकैट अन्ना रसोई में भेजे। अनशन स्थल पर सक्रिय डाक्टरों ने निशुल्क सेवाएं प्रदान कीं।
राजसत्ता पर जनसत्ता का अंकुश
अण्णा हजारे द्वारा संचालित देश की दशा और दिशा को सुधारने के पवित्र उद्देश्य से प्रारंभ हुआ यह जनांदोलन जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए एक ऐसा महासंग्राम है जिसने समाज के कष्टों और भावनाओं को अभिव्यक्ति दी है। राजसत्ता पर जनसत्ता का अंकुश लगाने में सफल रहा यह जनांदोलन इस सच्चाई को भी उजागर करता है कि जाति, पंथ और भाषा में विभक्त भारतीय समाज को संगठित करके उसे शक्तिशाली और चरित्रवान बनाने के लिए किसी ठोस गैरराजनीतिक धरातल की आवश्यकता है। ऐसा धरातल तैयार हो जाने पर निरंकुश राजनीति पर भी लगाम लगाई जा सकती है। बहुत-थोड़ी मात्रा में ही क्यों न सही अण्णा हजारे ने यह काम प्रत्यक्ष करके दिखा दिया है।
तेरह दिन तक निरंतर चले जनांदोलन के मुख्य स्थल दिल्ली के रामलीला मैदान में वंदेमातरम् का उद्घोष करने वाले लाखों लोगों ने अपने जाति-पंथ के अस्तित्व से ऊपर उठकर भारतीय होने का परिचय दिया है। किसी ने किसी की जाति नहीं पूछी। प्रत्येक की जुबान पर यही था व्अण्णा हजारे आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं।व् सिर पर पहनी सफेद टोपी पर एक ही वाक्य था व्मैं अण्णा हूं।व् इस जनांदोलन के आधार, स्वरूप और उपलब्धियों को देखकर अपने देश के सभी राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के नेताओं को देशहित में इस प्रश्न का उत्तर जरूर खोजना चाहिए कि एक अण्णा हजारे में इतने बड़े जनसमूह को संगठित रूप से और अहिंसक तरीके से अपने पीछे लगाने की क्षमता कहां से आई?
निष्कलंक व्यक्तित्व का प्रभाव
इस महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर अण्णा हजारे ने स्वयं दिया है, व्अण्णा बनने के लिए कथनी और करनी एक करनी होगी। आपको शुद्ध आचरण, शुद्ध विचार, निष्कलंक जीवन, त्याग करना और अपमान सहना सीखने की जरूरत हैव्। अण्णा ने अपने इस छोटे से संदेश में बता दिया है कि राजनीतिक नेताओं पर देश की जनता का भरोसा क्यों टूट रहा है? अपने इन्हीं गुणों के कारण अण्णा जहां भी जाते हैं, रहते हैं और काम करते हैं वहां के लोगों पर अपनी छाप छोड़ते हैं। अण्णा हजारे चार दिन जेल में रहे तो वहां के कैदियों और कर्मचारियों ने वंदेमातरम् और भारतमाता की जय के उद्घोष किए। बाद में रामलीला मैदान और अस्पताल में भी यही नजारा देखने को मिला। जिस उड़ान से अण्णा पुणे तक गए उसमें सवार यात्रियों ने भी तालियों की गड़गड़ाहट के साथ वंदेमातरम् गुंजा दिया।
इसके बावजूद अण्णा हजारे अपने गांव, वहां के लोगों, मंदिर के कमरे में रखा अपना छोटा सा बिस्तर और खाने की प्लेट को नहीं भूले। वे गणेश चतुर्थी मनाने के लिए रात्रि डेढ़ बजे अपने गांव रालेगण सिद्धि पहुंच गए। गरीब किसान का बेटा, पूर्व सैनिक और अब एक सफल सत्याग्रही अपने गांव में ही कुछ दिन विश्राम करेगा। बड़े-बड़े नेताओं की तरह मनाली, श्रीनगर अथवा गोवा में छुट्टियां मनाने की परंपरा का लेशमात्र भी अण्णा को नहीं छू पाया।
कुछ दिन अपने ग्रामवासी साथियों के साथ रहते हुए ग्रामीण जीवन से ऊर्जा लेकर अण्णा फिर से व्यवस्था परिवर्तन की अलख जगाने निकलेंगे।
जलती रहेगी आंदोलन की मशाल
लक्ष्य प्राप्ति तक संघर्ष करते रहने का संकल्प करने वाले आधुनिक भारत के दूसरे गांधी ने अपने अनशन को समाप्त करने के तुरंत पश्चात अपने आगामी कार्यक्रम की घोषणा कर दी थी, व्जनलोकपाल पर हुई यह जीत लड़ाई की शुरुआत है। अगर इस पर संसद पीछे हटी तो जनता को फिर से खड़ा होना होगा, क्योंकि संसद से भी बड़ी जनता की संसद है…इस आंदोलन ने भरोसा दिलाया है कि हम भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण कर पाएंगे। यह लड़ाई परिवर्तन की है। जब तक पूरा परिवर्तन नहीं आ जाता तब तक हमें यह मशाल जलाए रखनी है। संभव है कि फिर जनसंसद लगानी पड़े तो इसके लिए भी तैयार रहें…हमें देश में परिवर्तन देश के संविधान के मुताबिक लाना है। अमीर-गरीब के अंतर को समाप्त करना है। सत्ता मंत्रालयों में सिमट गई है, हमें इसका विकेन्द्रीकरण करना है।व्
भ्रष्ट व्यवस्था के परिवर्तन हेतु जीवन-पर्यंत संघर्ष करते रहने की अपनी रणनीति का खुलासा करने में अण्णा ने तनिक भी देर करना उचित नहीं समझा। जनता, सरकार और अन्ना विरोधियों को समझ में आ गया होगा कि यह जननायक जो सोचता है वही कहता है और जो कहता है वही करके दिखा देता है। अण्णा के गैर राजनीतिक स्वच्छ व्यक्तित्व से जहां देश की जनता में उनके प्रति विश्वास और आस बढ़ी है वहीं उनकी जननायक के रूप में सबके सामने आई बेदाग छवि से सत्ता पक्ष में घबराहट पैदा हो गई है। कांग्रेसी नेता छटपटाने लगे हैं।
धोखा दे सकती है यह सरकार
अण्णा हजारे, उनके साथियों और समस्त जनता को सावधान रहना होगा। साम, दाम, दंड भेद से अण्णा के आंदोलन को समाप्त करने में विफल हो चुके सत्ता पक्ष ने अब नया पैंतरा प्रारंभ कर दिया है। अस्पताल में जाकर कांग्रेसी नेताओं द्वारा अण्णा का हालचाल पूछना, प्रधानमंत्री द्वारा अण्णा की सेहत की चिंता करते हुए उन्हें शुभकामनाओं का कार्ड भेजना और अब तक अन्ना को भ्रष्ट और नासमझ जैसे विशेषणों से विभूषित करने वाले कांग्रेसी प्रवक्ताओं का भी पैंतरा बदल लेना सत्तापक्ष की नई मौका-परस्त राजनीति है।
कल तक अण्णा हजारे को संघ का मुखौटा और जनांदोलन को भाजपा की कारस्तानी बताने वाले कांग्रेसी नेता अण्णा की सफलता के बाद उन्हें संघ/भाजपा का मुखौटा क्यों नहीं बता रहे? कांग्रेस और सत्तापक्ष की नजर में यदि अण्णा और उनके आंदोलन के पीछे संघ का हाथ है तो फिर इस सफलता का श्रेय भी तो संघ और भाजपा को ही मिलना चाहिए। अब कांग्रेस के प्रवक्ताओं की जुबान पर ताला किसने लगा दिया है?
जनता सतर्क रहे इसी में देश और समाज की भलाई है। कांग्रेस के नेता अपनी खो चुकी ताकत को पुन: प्राप्त करने के लिए वक्त के अनुसार धोखा देने की अपनी राजनीतिक कार्यशैली का भी इस्तेमाल करेंगे। अण्णा जैसा सुलझा हुआ, राष्ट्र समर्पित और गांधीवादी नेता सरकारी झांसे में नहीं आएगा। भारतीयों को अपने इस खद्दर धारी नेता पर भरोसा है।
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