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बंगलादेश में अल्लाह के नाम पर हंगामा

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Sep 27, 2011, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Sep 2011 16:19:39

बंगलादेश में अल्लाह के नाम पर ऐसा दंगा हुआ कि सौ से अधिक लोग घायल हो गए। अपुष्ट सूत्रों का कहना है कि चार लोग अब तक मर चुके हैं। रात में कफ्र्यू लगा दिया गया है। पुलिस के हाथों से मामला निकल चुका है। इसलिए बंगलादेश सरकार ने सेना को सतर्क कर दिया है। ढाका से चटगांव जाने वाले राष्ट्रीय मार्ग को बंद कर दिया गया है। सरकार का मानना है कि दंगा राष्ट्रव्यापी हो सकता है। दिलचस्प बात यह है कि जो यह हिंसा किसी अन्याय को लेकर नहीं भड़की है, बल्कि यहां देश के दो बड़े राजनीतिक दलों के बीच अल्लाह आ गया है। बंगलादेश जब स्वतंत्र हुआ तो वहां की संविधान सभा ने अपने देश का संविधान बनाया, जिसे सर्वानुमति से पारित कर लिया गया।

खालिक या अल्लाह

लेकिन पिछले दिनों बंगलादेश के राजनीतिक दल जमाते इस्लामी को भान हुआ कि संविधान में एक बहुत बड़ी भूल हो गई। विश्व के सभी देशों में यह परम्परा है कि जब कोई सरकार अथवा सांसद या विधायक यानी जनता द्वारा निर्वाचित व्यक्ति सदन का सदस्य बनने से पहले संविधान के प्रति वफादार होने की शपथ लेता है तो यह शपथ अधिकांशत: ईश्वर का नाम लेकर ली जाती है। हर देश में और हर भाषा में ईश्वर के भिन्न-भिन्न नाम हैं, इसलिए जो भी प्रचलित नाम हैं उनका उच्चारण करके शपथ दिलाई जाती है और सम्बंधित व्यक्ति वह नाम लेता है। बंगलादेश के संविधान में व्खालिकव् शब्द का उपयोग किया गया है। जिस पर बंगलादेश की जमाते इस्लामी को भारी आपत्ति है। उसने सत्तारूढ़ दल से मांग की है कि वह संविधान में तुरंत संशोधन करे और व्खालिकव् शब्द के स्थान पर व्अल्लाहव् शब्द का उल्लेख करे। इस छोटी-सी बात पर हिंसा हुई है।

बंगलादेश टाइम्स लिखता है, व्संविधान में अल्लाह शब्द को सुरक्षित करने की मांग करते हुए यहां की प्रभावशाली पार्टी जमाते इस्लामी की ओर से रविवार के दिन 30 घंटों की हड़ताल के दौरान पुलिस और आन्दोलनकारियों के बीच भीषण संघर्ष हुआ है। आन्दोलनकारी नारायणगंज नगर के निकट हिंसक हो गए। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की पार्टी के सदस्यों ने पुलिस से हथियार छीनकर उन पर उल्टा वार कर दिया। उनके हाथों में जो बैनर थे, उन पर लिखा हुआ था खालिक नहीं अल्लाह।व्

इस आन्दोलन का नाम इस्लामी आन्दोलन दिया गया है। जमाते इस्लामी के साथ अन्य 13 राजनीतिक दल और अनेक सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाएं इस मुहिम में जुड़ गई हैं। ढाका के मोचक और फतहुल्लाह क्षेत्र में रक्तपात की अनेक घटनाएं घटी हैं। इससे दो दिन पूर्व ही जमाते इस्लामी ने 48 घंटे के बंद का आह्वान किया था। विरोधी दलों की मांग है कि वर्तमान सरकार को बरखास्त किया जाए और नई संविधान सभा की स्थापना हो ताकि संविधान में अनेक आपत्तिजनक कानूनों को बदला जा सके।

जमात की सोच

आन्दोलनकारियों का कहना है कि खालिक शब्द गैर-इस्लामी है। अरबी का खालिक शब्द खल्क से बना है जिसका अर्थ होता है दुनिया। इस आधार पर खालिक यानी दुनिया बनाने वाला। सामान्य भाषा में कहें तो निर्माता। यह शब्द किसी विशेष मजहब का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। अपने आपमें सेकुलर है। उसे किसी भी देश, किसी भी भाषा के व्यक्ति को बोलने में आपत्ति नहीं होगी। अल्लाह तो अरबी का शब्द है, जिसका उपयोग कुरान में किया गया है। निर्माता का अर्थ जमाते इस्लामी के अनुसार देवी-देवता भी हो सकता है। खल्क से ही मखलूक शब्द बना है। दुनिया में जितनी जानदार वस्तुएं होती हैं उन्हें मखलूक कहा जाता है। सांप, हाथी, सिंह, मोर, हंस, मछली सभी जीव हैं मखलूक कहलाते हैं। उन्हें बनाने वाला खालिक ही कहलाएगा। यानी मूल रूप से खालिक और अल्लाह में कोई अंतर नहीं है। फिर भी इस्लामी साहित्य में ईश्वर के स्थान पर खालिक शब्द का उपयोग नहीं करते हुए खालिक शब्द को ही वरीयता दी गई है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो खालिक शब्द पर इस्लाम का एकाधिकार है। जमात की यह सोच है कि बंगलादेश एक मुस्लिम बहुल इस्लामी राष्ट्र है। इसलिए इस्लामी शब्दों का चयन अनिवार्य है। जमाते इस्लामी अत्यंत संकीर्णता से इस पर विचार करती है। अल्लाह शब्द में ईश्वर के किसी रंग, रूप की कल्पना नहीं की जा सकती है। वह निरंजन निराकार है। इसकी अभिव्यक्ति जमात की आपत्ति के अनुसार खालिक शब्द में नहीं होती है। इसलिए अल्लाह शब्द का ही बंगलादेश के संविधान में उपयोग होना चाहिए। सत्तारूढ़ दल का यह मानना है कि खालिक अपने आपमें भरपूर और विस्तृत शब्द है इसलिए अल्लाह शब्द ही उपयोग हो ऐसा अनिवार्य नहीं है। खल्क और मखलूक फारसी में उपयोग किया जाता है। फारसी ईरान की भाषा है जिस पर अरबों का चिढ़ना स्वाभाविक है। वे किसी भी स्थिति में अन्य भाषा के शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहते हैं।

फारसी से घृणा

मुस्लिम कट्टरवाद और अरबी शब्द के लिए जोर-जबरदस्ती अनेक स्थानों पर देखी जा सकती है। इसमें एक अत्यंत लोकप्रिय शब्द व्खुदा हाफिजव् है। अंग्रेजी बोलचाल में जिसे हम व्गुड बायव् कह सकते हैं। आज तो टा-टा इससे भी अधिक बोला जाता है। हिंदी में इसका अनुवाद करें तो ईश्वर आपकी रक्षा करे। इस वाक्य में किसी को भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन यहां भी खुदा शब्द पर आपत्ति है। वे इसके स्थान पर कहना चाहेंगे अल्लाह हाफिज। यानी अल्लाह आपकी रक्षा करे। कोई पूछ सकता है कि खुदा और अल्लाह में क्या अंतर है? इसका असली कारण तो यह है कि वे फारसी शब्द खुदा का प्रयोग न करके यहां भी अरबी को ही प्राथमिकता देना चाहेंगे। फारसी से इतनी घृणा है कि उसके द्वारा सुरक्षा की शुभकामना भी उन्हें स्वीकार नहीं है। दूसरा कारण यह है कि खुदा शब्द खुदी से बना है। जिसका अर्थ होता है अहं। अहं ब्राहृ अस्मि यानी दूसरे शब्दों में मैं ही खुदा हूं। उनकी सोच के अनुसार इस शब्द का उपयोग मनुष्य के द्वारा भी होता है। भला वह खुदा कैसे हो सकता है? उक्त वाक्य भले ही विशेषण के रूप में उपयोग होता हो लेकिन उसे संज्ञा मानकर गैर-इस्लामी होने का प्रमाणपत्र देते हैं। अतएव खुदा शब्द अल्लाह का पर्यायवाची नहीं हो सकता है। इसे आप खुदा हाफिज न कह कर अल्लाह हाफिज कहेंगे तो वह इस्लामी भाषा में संदेश होगा। प्रतिदिन के व्यवहार किसी मजहब से जुड़े नहीं होते हैं लेकिन कट्टरवादी तो किसी की शुभकामनाओं को भी मजहब की दृष्टि से ही आंकते हैं। इसलिए उनके अनुसार खुदा हाफिज गैर-इस्लामी है और अल्लाह हाफिज पूर्णतया इस्लामी रंग में रंगा हुआ है।

अल्पसंख्यकों की चेतावनी

इस्लाम को बंगलादेश का सरकारी मजहब स्वीकार कर लेने पर भी वहां तूफान मचा हुआ है। बंगलादेश में रहने वाले अल्पसंख्यकों ने इसके विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की है। बंगलादेश के संविधान में हिन्दू, बौद्ध और ईसाइयों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया है। उनका एक बड़ा संगठन है उसीकियार परिषद। इसके अतिरिक्त उनके कई छोटे-बड़े संगठन हैं। उन्होंने बंगलादेश को एक विशेष मजहब की जागीर बनाने पर आपत्ति प्रकट की है। उनका कहना है कि बंगलादेश में गैर मुस्लिम आबादी, जो अल्पसंख्यक का दर्जा रखती है, उनका प्रतिशत 16 है। यदि इसे आंकड़ों में व्यक्त करना है तो इनकी संख्या लगभग 17 करोड़ है। उन्होंने हसीना वाजेद की सरकार से सवाल किया है कि इस समय संविधान में संशोधन करने की क्या आवश्यकता पड़ गई? बंगलादेश को एक विशेष मजहब का देश मान कर उन्होंने बंगला संस्कृति एवं बंगला जनता के साथ बड़ा अन्याय किया है। इससे देश में मजहबी उन्माद बढ़ेगा। यहां जो अल्पसंख्यक हैं उन पर बहुसंख्यक मजहब की कट्टरता को लादने का प्रयास होगा। इसलिए वर्तमान सरकार ने बंगलादेश की पहचान पर आघात किया है। अल्पसंख्यकों के संगठनों ने सरकार को चुनौती दी है कि यदि इस संशोधन को रद्द नहीं किया तो समस्त अल्पसंख्यक आन्दोलन पर उतरेंगे। हसीना वाजेद सोच रही थीं कि बंगलादेश को इस्लामी देश घोषित कर देने से जमात जैसी कट्टर पार्टी चुप हो जाएगी। लेकिन नतीजा यह हुआ कि जमात तो और अधिक कट्टरवादी बनकर सरकार को दु:खी कर रही है, लेकिन अब तो अल्पसंख्यक जो प्रारंभ से इस पार्टी के समर्थक और मतदाता रहे हैं, वे भी अपना आक्रोश प्रकट करने से नहीं चूक रहे हैं।

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