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रब्बानी की हत्याशांति प्रक्रिया में अड़चन की कोशिश

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Sep 24, 2011, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 24 Sep 2011 15:59:50

अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और तालिबान के साथ बातचीत की अफगानी-अमरीकी कोशिशों के अगुआ बदरुद्दीन रब्बानी की हत्या से अफगानिस्तान में शांति लौटने की संभावनाओं को गहरा धक्का पहुंचा है। बताते हैं, 20 सितम्बर को रब्बानी से चर्चा करने आए दो तालिबानी नेताओं में से एक अपनी पगड़ी में बम छुपाकर लाया था जिससे उसने चर्चा के दौरान धमाका कर दिया। रब्बानी अफगानिस्तान के अमन पसंद कद्दावर नेता माने जाते थे। वे अफगान सरकार की शांति परिषद के मुखिया थे और अमरीकी समर्थन से तालिबान के वार्ता के इच्छुक गुट के साथ तार जोड़ने की कमान संभाले थे। उनकी हत्या की खबर मिलते ही राष्ट्रपति करजई अमरीकी दौरा बीच में छोड़कर लौट आए। रब्बानी की हत्या को दस साल से हिंसा की तपिश झेल रहे अफगानिस्तान में अमन-चैन बहाल करने में बाधा डालने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। तालिबान विरोधी उत्तरी गठजोड़ के नेता रब्बानी अफगानिस्तान में उन मजहबी और नस्लीय तनावों पर भी लगाम रखने के लिए प्रयासरत थे जो किसी हद तक उग्रवादियों के मददगार ही साबित हो रहे थे। वे जिस तरह से तालिबानों से बातचीत कर उनके साथ राजनीतिक समाधान के रास्ते तलाश रहे थे अब उसमें एक बड़ी अड़चन आने की संभावना है। खतरा इस बात का भी है कि उनकी हत्या से उत्तरी गठजोड़ के उन नेताओं की बौखलाहट सतह पर आ जाएगी जो मानते हैं कि करजई की तालिबान के साथ साठगांठ है। उधर अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का कहना है कि रब्बानी की हत्या अमरीका और अफगानिस्तान को अफगानी नागरिकों को अमन और आजादी के साथ जीने में मदद करने से डिगा नहीं पाएगी। ओबामा ने वरिष्ठ अफगानी नेता रब्बानी को अफगानिस्तान की चिंता करने वाला नेता बताया।

अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और तालिबान के साथ बातचीत की अफगानी-अमरीकी कोशिशों के अगुआ बदरुद्दीन रब्बानी की हत्या से अफगानिस्तान में शांति लौटने की संभावनाओं को गहरा धक्का पहुंचा है। बताते हैं, 20 सितम्बर को रब्बानी से चर्चा करने आए दो तालिबानी नेताओं में से एक अपनी पगड़ी में बम छुपाकर लाया था जिससे उसने चर्चा के दौरान धमाका कर दिया। रब्बानी अफगानिस्तान के अमन पसंद कद्दावर नेता माने जाते थे। वे अफगान सरकार की शांति परिषद के मुखिया थे और अमरीकी समर्थन से तालिबान के वार्ता के इच्छुक गुट के साथ तार जोड़ने की कमान संभाले थे। उनकी हत्या की खबर मिलते ही राष्ट्रपति करजई अमरीकी दौरा बीच में छोड़कर लौट आए। रब्बानी की हत्या को दस साल से हिंसा की तपिश झेल रहे अफगानिस्तान में अमन-चैन बहाल करने में बाधा डालने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। तालिबान विरोधी उत्तरी गठजोड़ के नेता रब्बानी अफगानिस्तान में उन मजहबी और नस्लीय तनावों पर भी लगाम रखने के लिए प्रयासरत थे जो किसी हद तक उग्रवादियों के मददगार ही साबित हो रहे थे। वे जिस तरह से तालिबानों से बातचीत कर उनके साथ राजनीतिक समाधान के रास्ते तलाश रहे थे अब उसमें एक बड़ी अड़चन आने की संभावना है। खतरा इस बात का भी है कि उनकी हत्या से उत्तरी गठजोड़ के उन नेताओं की बौखलाहट सतह पर आ जाएगी जो मानते हैं कि करजई की तालिबान के साथ साठगांठ है। उधर अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का कहना है कि रब्बानी की हत्या अमरीका और अफगानिस्तान को अफगानी नागरिकों को अमन और आजादी के साथ जीने में मदद करने से डिगा नहीं पाएगी। ओबामा ने वरिष्ठ अफगानी नेता रब्बानी को अफगानिस्तान की चिंता करने वाला नेता बताया।

आतंकवाद पर 'जीरो टॉलरेंस'

संरासुप में भारत के प्रस्ताव पर सब एकमत

संयुक्त राष्ट्र से आ रही खबरों से इस बात के साफ संकेत मिले हैं कि भारत ने आतंकवाद पर 15 सदस्यों वाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (संरासुप) को उस 'विजन डाक्युमेंट' के लिए राजी कर लिया है जो आतंक बरपाने वालों या उसके प्रायोजकों के प्रति 'जीरो टॉलरेंस' यानी 'रत्ती भर भी नहीं सहेंगे' वाली नीति पर जोर देगा। भारत इस वक्त इस समिति का अध्यक्ष है। इस दस्तावेज में अगले दशक में आतंकवाद से निपटने के तरीकों की चर्चा है। अभी चल रही संयुक्त राष्ट्र की 66वीं आम सभा में इसे पेश करने की पूरी संभावना है। यह दस्तावेज आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की मुस्तैदी का खाका खींचेगा। विदेश मामलों के विशेषज्ञ इसे एक महत्वपूर्ण पहल मान रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि 'आतंकवाद' के वीभत्स चेहरे को देखते हुए अब यह बेहद जरूरी हो गया है कि दुनिया के तमाम देश इस राक्षस के अंत के लिए एकजुट होकर तालमेल के साथ काम करें, ऐसी नीतियां बनें कि जिसके तहत आतंकवाद को बरपाने वाले ही नहीं, उसको शह देने वाले, उसके प्रति नरम नीतियों की पैरोकारी करने वाले और इसे ओछी राजनीति का हथियार बनाने वालों पर कड़ी चोट हो।

 

भूकंप का गलत अनुमान पड़ा महंगा

छह वैज्ञानिकों पर मुकदमा

इटली के ला'अकीला शहर में सन् 2009 में आए जबरदस्त भूकंप ने 309 लोगों की जिंदगियां लील ली थीं। कांपती धरती और चटकती खिड़कियों के बीच भी शहर में बड़ी तादाद में लोग अपने घरों में ही दुबके रहे। इसके पीछे एक वजह थी। वजह यह थी कि उस 6.3 तीव्रता वाले भूकंप से पहले इटली के छह वैज्ञानिकों ने लोगों को तसल्ली दी थी कि घबराने की कोई जरूरत नहीं, भूकंप मामूली होगा। जबकि असल में उस बड़े भूकंप से पहले कई एक हल्के झटके महसूस किए गए थे। लेकिन उन वैज्ञानिकों की बात मानकर कई लोग घरों में डटे रहे थे।

अब इटली की अदालत में उन छह वैज्ञानिकों और एक सरकारी अफसर के खिलाफ मुकदमा चलाया जा रहा है। उन पर 6.3 की तीव्रता वाले भूकंप के आने से पहले बेफिक्र रहने के झूठे बयान देकर नरसंहार का आरोप लगाया गया है। इस मुकदमे ने दुनियाभर के भूकंप और भूगर्भ विशेषज्ञों का ध्यान खींचा है, जिनका कहना है कि यह भविष्यवाणी कर पाना नामुमकिन है कि भूकंप का आघात कब होगा। बहरहाल, अगर वे छह वैज्ञानिक दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें 15 साल तक की कैद हो सकती है।

पाकिस्तान ने कहा

सरबजीत की अर्जी पर गौर नहीं

पाकिस्तान की सरकार का ताजा रवैया भारत में पंजाब में रह रहे उस सरबजीत के परिवार को आहत करने वाला है जो पाकिस्तान की जेल में 'जासूसी' के आरोप में कैद है। सरबजीत की बेटियों और बहन ने क्या कुछ नहीं किया उसकी रिहाई के लिए। मीडिया को दास्तान सुनाई, भारत सरकार के दफ्तरों के चक्कर काटे, पर सिवाय दिलासों के कुछ हासिल नहीं हुआ। हर बार लगा कि 'इंसानियत के पैगाम' पर चलते हुए दोनों तरफ के कैदियों की रिहाई के वक्त शायद सरबजीत भी वाघा सीमा से इस पार आए, पर ऐसा नहीं हुआ। उम्मीद थी कि सरबजीत की माफी की अर्जी पर पाकिस्तान सरकार दरियादिली दिखाएगी पर यह कयास भी कुहासे की चादर में लिपट गया है। लाहौर उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश इजाज चौधरी के सामने जवाब दाखिल करते हुए उप महाधिवक्ता नसीम कश्मीरी ने पाकिस्तान सरकार की ओर से कहा है कि सरबजीत की अर्जी पर न तो सरकार कोई गौर कर रही है और न ही यह राष्ट्रपति के पास विचाराधीन है। यह जवाब उस याचिका पर दिया गया था जो राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को सरबजीत को माफी देने से रोकने की मांग करते हुए दायर की गई थी। सरकार की ओर से ऐसा जवाब पाकर मुख्य न्यायाधीश ने वकील इलामुद्दीन गाजी की यह याचिका निरस्त कर दी। द आलोक गोस्वामी

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