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भाइयो एवं बहनो,
सादर प्रणाम!
कल देश के सर्वोच्च न्यायालय ने 2002 के गुजरात के सांप्रदायिक दंगों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। देश में सभी लोग इस फैसले का अपना अर्थ निकाल रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के लिए इस फैसले का अलग अर्थ है, तो कानून विशेषज्ञों के लिए अलग। सबका अपना-अपना दृष्टिकोण है।
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से एक बात स्पष्ट हुई है। सन् 2002 के बाद व्यक्तिगत रूप से मेरे एवं गुजरात सरकार के ऊपर तरह-तरह के मनगढ़ंत एवं झूठे आरोप लगते रहे हैं। उन सभी झूठे आरोपों के कारण जो कलुषित वातावरण था, (इस फैसले से) उसका अंत हुआ है।
लगभग 10 वर्ष से गुजरात एवं मुझे बदनाम करने का चलन सा हो गया था। गुजरात के विकास की बात अथवा प्रगति को सहन ना कर पाने वाले लोग गुजरात को बदनाम करने का एक भी अवसर जाने नहीं देते थे। ऐसे तत्व सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद भी गुजरात को बदनाम करना बंद कर देंगे, यह अभी भी कह पाना कठिन है। परंतु इस फैसले से एक बात तो तय हो गयी है कि झूठ फैलाने वाले और गुजरात को बदनाम करने वाले तत्वों पर अब देश की जनता विश्वास नहीं करेगी।
सन् 2002 के बाद भी गलत प्रचार, झूठे आरोपों एवं झूठे षड्यंत्रों के बावजूद गुजरात ने पूर्ण शांति एवं सद्भावना के साथ विकास के पथ पर पूरी गति के साथ आगे बढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। “6 करोड़ गुजराती”- यह मात्र शब्द नहीं, बल्कि एकता एवं पुरुषार्थ का मंत्र बन गया है। गुजरात के प्रत्येक नागरिक ने शांति-सद्भाव एवं विकास को अपनाया है। भूतकाल में भी कभी इतना सौहार्दपूर्ण वातावरण गुजरात ने अनुभव नहीं किया, जितना पिछले 10 वर्ष से यह अनुभव कर रहा है। गुजरात विकास के इसी पथ पर आगे बढ़ना चाहता है।
गुजराती में एक बहुत प्रचलित कहावत है- “वैर से वैर नहीं जीता जाता” यानी वैमनस्यता से वैमनस्यता का अंत नहीं होता। एकता एवं सद्भावना ही अपने देश की सच्ची शक्ति है। विविधता में एकता ही भारत की विशेषता रही है। सामाजिक जीवन में विविधता में एकता को और मजबूत बनाना पड़ेगा। शांति एवं सद्भावना के पथ पर गुजरात के विकास की गाड़ी गतिपूर्वक आगे बढ़ रही है। गुजरात और मजबूती के साथ आगे बढ़े, यह हम सबकी जिम्मेदारी है। नकारात्मकता को पीछे छोड़कर, सकारात्मकता के मार्ग पर आगे बढ़ने का यह उत्तम अवसर हमें मिला है। आइये, हम सब साथ मिलकर गुजरात की गरिमा के लिए कुछ न कुछ योगदान दें।
इस जिम्मेदारी के साथ समाज की एकता और भी मजबूत बने, भाईचारा बढ़े इस शुभाशय से “सद्भावना-मिशन” का एक कार्यक्रम प्रारंभ करने की मेरी अभिलाषा है। इसकी विनम्र अभिव्यक्ति मैं आपके समक्ष इस पत्र के माध्यम से कर रहा हूं। मैंने 17 सितम्बर (शनिवार) से “सद्भावना मिशन” कार्यक्रम के अंतर्गत तीन दिन का उपवास करने का निर्णय किया है। 19 सितम्बर को “सद्भावना मिशन” के अन्तर्गत मेरा उपवास पूर्ण होगा। मेरी अन्त:करण से यह मान्यता है कि “सद्भावना मिशन” के रूप में मेरे इस उपवास से गुजरात में शांति, एकता एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण को एक नयी शक्ति मिलेगी।
“सद्भावना मिशन” का मेरा कार्यक्रम सम्पूर्ण रूप से देशभक्ति एवं समाजशक्ति को समर्पित रहेगा। शांति, एकता एवं सद्भावना की शक्ति से गुजरात विकास की नई ऊंचाइयों को प्राप्त करे, ऐसा हमारा प्रयास है। और इसके साथ ही भारत की प्रगति एवं उन्नति के लिए गुजरात अपना महत्वपूर्ण योगदान दे… यही मेरी हार्दिक अभिलाषा है।
आपकी सेवा में समर्पित
नरेन्द्र मोदी
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