मोटापे से ऐसे बचें
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मोटापे से ऐसे बचें

by
Sep 19, 2011, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 19 Sep 2011 13:13:43

गत लेख में मोटापा और इस पर नियंत्रण के लिए कुछ बिन्दुओं पर हमने चर्चा की थी। आज के दौर में मोटापा एक गंभीर समस्या बनकर उभरा है, अत: संबंधित कुछ अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी पाठकों का ध्यान केन्द्रित करना चाहताहूं, ताकि समय रहते वह अपने भोजन तथा शारीरिक क्रियाकलापों में उचित परिवर्तन कर शरीर व हृदय को स्वस्थ रख सकें तथा अनेक बीमारियों से बच सकें।

मोटापे का अर्थ है कि शरीर में एक अनुपात से अधिक वसा (फैट) संचित हो जाना। शरीर वसा का संचय इसलिए करता है कि ताकि उसकी प्रक्रिया निर्बाध रूप से संचालित होती रहे लेकिन जब यही वसा शरीर में आवश्यकता से अधिक जमा हो जाती है, तब शरीर और हृदय दोनों के लिए घातक मोटापे का रूप ले लेती है। पुरुषों में 25 प्रतिशत से अधिक तथा महिलाओं में 30 प्रतिशत से अधिक वसा का संचय मोटापे का संकेत है।

शरीर में असंतुलन पैदा होने के साथ ही रोगों को शरीर में प्रवेश का निमंत्रण मिल जाता है। मोटापा शरीर को व्यापक स्तर पर असंतुलित बनाता है, जिससे केवल एक अंग नहीं बल्कि समस्त अंग प्रभावित होते हैं। मोटापे के ऐसे अनेक कारण हैं जो इसे बढ़ाने में सहायक सिद्ध होते हैं। आज के समय में अधिकांश लोगों की दिनचर्या इस प्रकार बन चुकी है कि उनके द्वारा शारीरिक क्रियाकलाप बहुत कम किया जाता है। अत: ऐसे लोग जो अपने भोजन के माध्यम से कैलोरी लेते हैं और उस ली गयी पूरी कैलोरी को उनका शरीर जला नहीं पाता है तो बची हुई कैलोरी शरीर में संचित होती है और वजन बढ़ाने में सहायक होती है। अत: मोटापे का मुख्य कारण अधिक खाना और अल्प शारीरिक क्रियाकलाप है। इसके अतिरिक्त अन्य कारण इस प्रकार हैं-

मोटापे के मुख्य कारण

1. अधिक खाने की आदत: जिन्हें अधिक खाने की आदत है (खासकर जिनके भोजन में वसा अथवा चीनी अधिक होती है, क्योंकि इसमें ऊर्जा का उच्च घनत्व होता है), वह मोटापा के शिकार हो जाते हैं।

2. भोजन अंतराल : भोजन के मध्य छोटा अंतराल व अल्प भोजन से इंसुलिन और कोलेस्ट्राल का स्तर सामान्य रहता है जबकि लम्बे अंतराल में अधिक भोजन से विपरीत प्रभाव पड़ता है।

3. आयु : शरीर की आयु जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, भोजन संबंधी चयापचय क्रिया (मेटाबौलिज्म) धीमा हो जाता है तथा शरीर को अधिक कैलोरी की जरूरत नहीं रह जाती है। यही कारण है कि भोजन और शारीरिक क्रियाकलाप जो लोग 20-25 वर्ष की आयु में करते थे, तब वह उस अवस्था के लिए उपयुक्त था परन्तु वही रूटीन 40 वर्ष की उम्र में हो तो वजन बढ़ने लगता है।

4. लिंग: महिलाओं की तुलना में पुरुष आराम के समय अधिक कैलोरी जलाते हैं। अत: पुरुषों को शरीर को संतुलित रखने के लिए अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है। महिलाएं जिनकी एक अवस्था के उपरांत मासिक धर्म बंद हो जाता है, उनकी चयापचय क्रिया धीमी हो जाती है, अत: ऐसी अधिकांश महिलाओं का वजन बढ़ने लगता है।

5. वंशानुगत: जो माता-पिता मोटापे से पीड़ित हैं, उनकी संतानों में मोटापा होने की संभावना ज्यादा होती है।

6. पर्यावरणीय प्रभाव: पर्यावरण का प्रभाव व्यक्ति की जीवन शैली, व्यवहार, भोजन तथा क्रियाकलाप पर पड़ता है।

7. मनोवैज्ञानिक कारक : अनेक लोगों की भोजन संबंधी आदतों पर उनका भावनात्मक प्रभाव होता है। कुछ लोग अपनी ऊबन, तनाव अथवा क्रोध के प्रभाव से अधिक खाते हैं, जिसके कारण उनके शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ता है तथा वजन बढ़ने की प्रक्रिया प्रोत्साहित होती है।

स्वास्थ्य जागरुकता जरूरी

मोटापा शरीर के लिए खतरा न बन जाए, इसके लिए स्वास्थ्य जागरूकता आवश्यक है। बी एम आई (बॉडी मॉस इंडेक्स) के माध्यम से मोटापे को माप कर इस पर नियंत्रण के उपायों का इस्तेमाल किया जा सकता है। अनेक चिकित्सक एवं शोधकर्ता बी एम आई माध्यम से ही मोटापे की जांच करते हैं। इसका फार्मूला है-बी एम आई उ वजन (किलोग्राम)/लंबाई (मीटर)2। यह 19 वर्ष से लेकर 70 वर्ष की आयु तक के लोगों के मोटापे को मापने में सहायक होता है। बी एम आई 19 से 25 तक है तो यह स्वस्थप्रदायी वजन का संकेत है। 25 से 30 तक है तो यह अधिक वजन का संकेत है तथा 30 से 40 तक है तो मोटापा है। पाठक यह ध्यान दें कि गर्भवती महिलाओं, शरीर को गठीला बनाने वाले (बॉडी बिल्डर) तथा “ऐथलीट्स” के फैट की सटीक माप बी एम आई द्वारा संभव नहीं है। बी एम आई के अलावा कमर की परिधि (सर्कमफरेंस) को माप कर भी मोटापे का अंदाजा लगाया जा सकता है। पुरुष जिनकी कमर की परिधि 40 इंच या इससे अधिक है तथा महिलाएं जिनकी कमर की परिधि 35 इंच या इससे अधिक है को यह मानना चाहिए कि उनके स्वास्थ्य पर मोटापे का खतरा बढ़ा हुआ है।

मोटापे पर नियंत्रण के लिए गत लेख में दिये गये बिन्दुओं के अतिरिक्त कुछ अन्य बिन्दु इस प्रकार हैं-

थ् मोटापा कम करने के लिए भोजन संबंधी इच्छाओं पर नियंत्रण बेहद जरूरी है तथा इसके लिए एक दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है क्योंकि डायटिंग का सीधा प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर पड़ता है। अत: भोजन संबंधी नियम को बनाये रखने के लिए सावधान एवं अनुशासित रहें। हमेशा प्रसन्न, शान्त एवं तनावरहित रहें। अक्सर तनाव (डिप्रेशन) में लोग ज्यादा खा लेते हैं। ऐसे में जितनी कैलोरी आपकी कम होनी चाहिए उससे कहीं अधिक कैलोरी आप संचित कर लेते हैं।

थ् उपवास शरीर शुद्धि और वजन कम करने का एक अच्छा माध्यम है। दिन भर उपवास रखने के उपरांत रात में हल्का एवं आवश्यकतानुसार भोजन लें। उपवास में रात में विविध प्रकार के अधिक भोजन करने से वजन घटने के बजाय बढ़ता है। शरीर का मेटाबौलिज्म धीमा हो जाता है तथा जो खाया जाता है, वह पचने के बजाय वसा के रूप में संचित होने लगता है।

थ् कुछ लोगों की यह धारणा कि कम वसा वाले खाद्य पदार्थों का सेवन किसी भी मात्रा में किया जा सकता है, वह गलत है क्योंकि कम वसा वाले खाद्य पदार्थों के अधिक मात्रा में खाने से कैलोरी बढ़ती है।

थ् जिनके अंदर कोलेस्ट्रोल का स्तर अधिक है, उन्हें चाहिए कि सोया उत्पादों का प्रयोग करें। खाद्य तेलों में जैतून तेल (ऑलिव आयल) प्रयोग करें तथा सुबह के समय खाली पेट एक गिलास घिया का जूस लें। अदरक और लहसुन के प्रयोग से कोलेस्ट्रोल की मात्रा घटती है और गैस से भी राहत मिलती है। इसके अंदर कैंसर प्रतिरोधी तत्व भी मौजूद होते हैं। इसके अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल और वसा को कम करने के लिए कम वसा वाला दूध (लो फैट मिल्क) अथवा दूध उत्पाद प्रयोग करें। भोजन पकाते समय प्रयोग किये जाने वाले वसा को भी कम करें। देसी घी और कृत्रिम मक्खन का प्रयोग कम करें।

विश्वास है कि पाठक इन बिन्दुओं पर गंभीरतापूर्वक चिन्तन कर एक दृढ़ संकल्प के साथ अपनी जीवन शैली और खानपान में सावधानी बरतेंगे तो मोटापा से मुक्ति तो मिलेगी ही साथ ही, समय रहते विविध रोगों से बचाव भी संभव हो सकेगा।

(लेखक दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य एवं शिक्षा मंत्री रहे है)

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