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पहले कागज, पीछे चीजें
कुतर रही है धान गिलहरी।
घर में कोई नहीं रहे पर,
रहती है मेहमान गिलहरी।
ऊपर चढ़ती, नीचे आती,
फुदक-फुदक कर दौड़ लगाती।
जाने कहां-कहां चढ़ जाती
कैसी है शैतान गिलहरी।
कोई आता, कोई जाता
रखती नहीं किसी से नाता।
निपट अकेली, फिर भी अपनी
रखती है पहचान गिलहरी।
इमली बेर-कैरियां भाती,
रोटी डालो तो खा जाती।
लेकिन अपनी भूख मिटाकर,
सोती चादर तान गिलहरी।
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