जिहादी हमलों को कैसे रोकेगा शुतुरमुर्गी रवैया?
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जिहादी हमलों को कैसे रोकेगा शुतुरमुर्गी रवैया?

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Sep 15, 2011, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 15 Sep 2011 13:30:05

दिल्ली में 7 सितम्बर को उच्च न्यायालय परिसर में हुए बम विस्फोट ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि संप्रग सरकार का शुतुरमुर्गी रवैया भारत की राष्ट्रीय और आंतरिक सुरक्षा पर भारी पड़ रहा है। जिहादी आतंकवादियों के सामने न केवल गृहमंत्रालय, बल्कि पूरी संप्रग सरकार असहाय नजर आ रही है। अब यह पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृहमंत्री पी.चिदम्बरम और संप्रग सरकार का संचालन सूत्र थामे बैठीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सत्तामोह के आगे मानो निर्दोष देशवासियों की जान की कीमत ही नहीं है। हमारे लोग बेमौत मारे जा रहे हैं, उधर जिहादी आतंकवादी और उनका सरपरस्त पाकिस्तान भारत की असहायता पर अट्टहास कर रहा है, लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हर घटना के बाद एक परंपरागत बयान देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं, जैसे 13 जुलाई को हुए मुम्बई बम विस्फोटों, जिनमें 26 लोग मारे गए और सवा सौ से ज्यादा लोग घायल हुए, के बाद उन्होंने कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा, अब कह रहे हैं कि यह आतंकवादियों की कायराना हरकत है। यह पिछले करीब डेढ़ माह में दूसरी बड़ी घटना है, लेकिन इस बीच सरकार सोती रही और सोनिया पार्टी ने दस जनपथ के कारिंदे दिग्विजय सिंह को मुम्बई विस्फोटों में 'संघ का हाथ होने की आशंका' की 'थ्योरी' के दुष्प्रचार में लगा दिया। इस बार लोगों को आतंकी हमले से ज्यादा आश्चर्य इस बात पर है कि अभी तक दिग्विजय सिंह का संघ को लपेटने वाला बयान क्यों नहीं आया? शायद वह सरकार और सोनिया पार्टी की मुस्लिम तुष्टीकरण की वोट राजनीति को फायदा पहुंचाने की संघ के विरुद्ध किसी नई 'थ्योरी' को गढ़ने में लगे हों।

एक के बाद एक हो रहीं बड़ी आतंकी घटनाओं से गृहमंत्री की पेशानी पर बल हैं, वे खुफिया एजेंसियों के प्रमुखों की बैठक कर दिल्ली विस्फोट के सूत्र तलाशने में जुटे हैं, लेकिन वह देश की आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने में अपनी अक्षमता और विफलता स्वीकारने को तैयार नहीं। उनका खुफिया तंत्र हर बार जिहादी हमलों की पूर्व सूचना जुटाने में चूक जाता है। प्रधानमंत्री स्वयं यह स्वीकार कर चुके हैं कि हमारे खुफिया तंत्र में खामियां हैं जिनका फायदा आतंकवादी उठा रहे हैं। कमजोर निगरानी तंत्र के चलते खुफिया एजेंसियों की विफलता हमारे लिए जिहादी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आई है। लेकिन इस लड़ाई में हमारे लगातार चोट खाते रहने और दोषियों के बच निकलने के पीछे मुख्य कारण है संप्रग सरकार में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और जिहादी आतंकवाद की मानसिकता को समझने से बचना। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है भारत की संसद पर हमले का मुख्य षड्यंत्रकारी अफजल, जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फांसी की सजा दिए जाने के बाद भी सरकार फांसी से बचाए हुए है और वोट का खेल खेल रही है। उसकी इसी कमजोरी का लाभ उठाकर जिहादी आतंकवादियों के हौसले लगातार बढ़ रहे हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय परिसर में हुए विस्फोट के बाद 'हूजी' के नाम से आए एक ईमेल में यह धमकी दी गयी है कि 'अफजल की फांसी रोक दो, वरना अंजाम इससे भी बुरा होगा।' कांग्रेस की साझेदारी में चल रही जम्मू-कश्मीर राज्य सरकार के मुखिया उमर अब्दुल्ला खुलेआम अफजल की पैरोकारी कर रहे हैं और कांग्रेस चुप्पी साधे बैठी है! इससे साफ होता है कि सोनिया पार्टी देशहित से ज्यादा सत्ता और वोट की राजनीति को महत्व देती है। इसीलिए जिहादी आतंकवाद के खिलाफ वह अपने तेवर कभी तीखे नहीं कर पाई। उसी के इशारे पर संप्रग सरकार भी बयानबाजी तक ही सीमित रहकर अपना रुख नरम बनाए हुए है। हाल ही में पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के.नारायणन के हवाले से हुए एक खुलासे में यह सच्चाई सामने आना कि 26/11 के मुम्बई हमलों के षड्यंत्रकारी डेविड हेडली के अमरीका से प्रत्यर्पण को लेकर भारत सरकार गंभीर नहीं थी, बल्कि जनता को बहकाने के लिए कार्रवाई का ढोंग कर रही थी, संप्रग सरकार की जिहादी आतंकवाद के विरुद्ध भूमिका को स्पष्ट कर देती है।

राष्ट्र के स्वाभिमान पर प्रहार करने वालों और देश के हजारों निर्दोष नागरिकों व सेना तथा सुरक्षाबलों के बहादुर जवानों के नृशंस हत्यारों के प्रति सरकार का यह नरम रवैया बेहद शर्मनाक तो है ही, जनता की अदालत में इस सरकार को अपराधी ठहराने का पुख्ता सबूत भी है। यह सरकार अपनी जवाबदेही से बचने और जिहादी आतंकवाद से जनता का ध्यान हटाने के लिए 'हिन्दू आतंकवाद' का भूत खड़ा करने में जुटी थी, और इसके नाम पर संत-महात्माओं व हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्त्ताओं की गिरफ्तारी व उत्पीड़न किया गया। गृहमंत्री स्वयं यह झूठ गढ़ने में सबसे आगे रहे। सोनिया पार्टी ने इस दुष्प्रचार के लिए अपनी कठपुतली दिग्विजय सिंह को आगे किया जो एक ओर तो रा.स्व.संघ व बहादुर पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध विषवमन करते रहे और दूसरी ओर जिहादी आतंकवाद की नर्सरी बने आजमगढ़ में संजरपुर गांव में जा-जाकर मत्था टेकते रहे। 13/7 के मुम्बई विस्फोटों व 7/9 के दिल्ली विस्फोट ने उनका यह दावा तार-तार कर दिया कि जबसे 'हिन्दू आतंकवाद' पर सरकार ने नकेल कसनी शुरू की है, तब से देश में बड़ी आतंकवादी घटनाएं बंद हो गई हैं। यह दुर्भाग्य ही है कि इधर सरकार और उसके खुफिया तंत्र ने 'हिन्दू आतंकवाद' के नाम पर लोगों को फंसाने में अपना ध्यान केन्द्रित कर दिया और उधर निश्शंक होकर जिहादी आतंकवादी भारत में हमलों की साजिश को अंजाम देते रहे। संप्रग सरकार की इस वोट राजनीति को पाकिस्तान ने भी अपनी कूटनीतिक चालबाजी का हथियार बना लिया। लेकिन प्रश्न यह है कि आखिर कब तक हम लाशें गिनते रहेंगे और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी बयानों की रस्म अदायगी करती रहेगी? इस प्रश्न का हल देश की जनता को ढूंढना ही होगा कि क्या ऐसी सत्तालोभी और नाकारा सरकार के रहते देश की सुरक्षा व जनता का जीवन सुरक्षित है?

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