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सत्तालिप्सा में कांग्रेस इस कदर बौरा जाती है कि उसे लोकतंत्र और संविधान की भी कोई परवाह नहीं रहती, चाहे उसे कितनी भी थुक्का-फजीहत क्यों न झेलनी पड़े। समाजसेवी अण्णा हजारे की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के एक विशाल जनांदोलन का रूप ले लेने के बाद कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाली सरकार की जो किरकिरी हुई, वह किसी से छिपी नहीं है। लेकिन भूलों से सबक ले ले तो इसे कांग्रेस कौन कहेगा! गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी शुरू से कांग्रेस की आंखों में खटकते रहे हैं, उनके लोकप्रिय शासन की काट तो वह कभी ढूंढ नहीं पाई, राज्य में हर स्तर के चुनावों में उसे मुंह की खानी पड़ी है। लेकिन मोदी के प्रति जहर उगलना, कानूनी दांवपेंच खेलना कांग्रेस ने कभी नहीं छोड़ा, यहां तक कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी तो मोदी द्वेष से इतनी पीड़ित हैं कि पिछले विधानसभा चुनावों में प्रचार के समय उन्होंने मोदी को 'मौत का सौदागर' तक कह डाला। सोनिया पार्टी को सपने में भी 'गुजरात दंगे' सताते हैं और उन्हें आधार बनाकर मोदी की लगाम कसने का कोई अवसर कांग्रेस नहीं छोड़ना चाहती। तीस्ता सीतलवाड़ जैसे लोग उसी के इशारों पर नित नए प्रपंच रचकर मोदी को फंसाने का षड्यंत्र करते हैं, लेकिन सांच को आंच कहां की तर्ज पर मोदी %3
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