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एक से बढ़कर एक
बेलगाम भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए जन लोकपाल की मांग को लेकर छिड़े राष्ट्रव्यापी जनांदोलन के नायक 74 वर्षीय गांधीवादी समाजसेवी अण्णा हजारे के विरुद्ध कांग्रेसी दुष्प्रचार ने देश की इस सबसे पुरानी पार्टी की चाल, चेहरे और चरित्र को एक बार फिर बेनकाब कर दिया। प्रवक्ता किसी भी राजनीतिक दल का मुख होता है, लेकिन कांग्रेस ने जैसे प्रवक्ता इकट्ठे कर रखे हैं, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। अन्ना के 16 अगस्त से प्रस्तावित आंदोलन के ठीक एक दिन पहले खासतौर पर पत्रकार सम्मेलन आयोजित कर कांग्रेस ने अपने प्रवक्ता मनीष तिवारी से उन्हें व्तुमव् संबोधित करवाकर व्भ्रष्टाचारीव् कहलवाया। इस पर देश भर में तीखी प्रतिक्रिया हुई। खुद अण्णा ने जांच की चुनौती दी तो कांग्रेस ने मनीष को किनारे कर बसपा से आये बड़बोले राशिद अल्वी को आगे कर दिया। आकाओं की नजर में नंबर बढ़ाने की कोशिश में अल्वी ने कांग्रेस की प्रेस वार्ता में आरोप जड़ दिया कि अन्ना के आंदोलन को अमरीका से मदद मिल रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जिस अमरीका को खुश रखने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते, सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता ने उसी पर अण्णा के आंदोलन को मदद देने का आरोप लगा दिया। प्रधानमंत्री से लेकर विदेश मंत्रालय तक सभी परेशान। अल्वी को हटाकर कांग्रेस रेणुका चौधरी को ढूंढकर लायी, पर वह राहुल गांधी को ही व्तोताव् करार दे बैठीं। पत्रकारों ने पूछा था कि पूरे देश में अन्ना के समर्थन में लोग सड़कों पर उतर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने जन लोकपाल पर अपनी कोई राय अभी तक व्यक्त नहीं की है, इस पर कांग्रेस प्रवक्ता रेणुका ने जवाब दिया-राहुल जी तोता नहीं हैं कि दूसरों को देख-सुनकर बोलें, उन्हें जब बोलना होगा, बोलेंगे।
व्तिरंगे के सिपाहीव् का सच
एक हैं नवीन जिंदल। देश के बड़े औद्योगिक घराने व्जिंदल समूहव् के सदस्य हैं और हरियाणा के कुरुक्षेत्र संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के लोकसभा सांसद भी। उनका एक और परिचय है। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को लगाने और फहराने का अधिकार आम आदमी को दिलवाने के लिए उन्होंने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी। इसलिए स्वाभाविक ही है कि वह अक्सर अपने सीने पर एक छोटा सा तिरंगा लगाये रहते हैं। लेकिन अन्ना के आंदोलन में जब हर आम आदमी तिरंगा लिये सड़कों पर उतर आया तो उनके और उन जैसे कुछ और युवा कांग्रेस सांसदों के सीने से तिरंगा गायब हो गया। जिसने आम आदमी को तिरंगे का हक दिलवाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी, उसमें यह बदलाव तो वाकई चौंकाने वाला था। कारण की खोजबीन शुरू हुई तो पता चला कि राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा जिस तरह अण्णा के आंदोलन की पहचान बन चुका है, उसके मद्देनजर तिरंगा लगाना कांग्रेस आलाकमान की नजर में अखर सकता है, सो फिलहाल उससे दूरी ही भली। आखिर नवीन जिंदल हैं तो व्यापारी ही, अपने नफा-नुकसान को नजरअंदाज कैसे कर सकते हैं?
हुक्काम का रंज
अनशन से पहले ही अण्णा को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज देने वाली मनमोहन सिंह सरकार उन्हें जल्दी ही रिहा करने पर तो मजबूर हो गयी, लेकिन उनके अनशन पर उसकी तंद्रा आठवें दिन जाकर ही टूट पायी। आठवें दिन व्टीम अण्णाव् को बातचीत में उलझाकर सरकार ने नौवें दिन सर्वदलीय बैठक बुलायी तो उसका नजारा स्तब्ध करने वाला था। टीवी कैमरों के आगे देश में भ्रष्टाचार और उस पर अंकुश के लिए आंदोलनरत अण्णा की सेहत की चिंता जताने वाले मंत्री और राजनेता सर्वदलीय बैठक में उन्हीं टीवी कैमरों के सामने हंसी- ठहाकों के बीच मेवे उड़ाते देखे गये। इसलिए बैठक के बाद जब सरकार व्टीम अण्णाव् के विरुद्ध और आक्रामक होकर आयी तो ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ। बस, एक पुरानी पंक्ति याद आ गयी-रंज हुक्काम को बहुत है, मगर आराम के साथ।
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