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अंक-सन्दर्भ थ्7 अगस्त,2011
पुरानी कांग्रेस बनाम नई कांग्रेस
क्या आज की कांग्रेस सच्चे अर्थों में 1947 से पहले की कांग्रेस तथा गांधी जी की उत्तराधिकारी है? पहले इसमें विभिन्न विचारों के राष्ट्रभक्त लोग शामिल थे, सती प्रथा तथा विधवा विवाह का विरोध करने वाले समाज सुधारक, हिन्दू विचारधारा के लोग जैसे मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय, राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन, मोरारजी देसाई, डा. हेडगेवार आदि। समाजवादी और साम्यवादी विचारधारा के लोग, जैसे- जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, क्रान्तिकारी विचारों के लोग जैसे-सुभाषचन्द्र बोस आदि। बुद्धिजीवी देशभक्त- जैसे दादाभाई नौरोजी, महादेव गोविन्द रानाडे, गोपालकृष्ण गोखले आदि तथा मुस्लिम समाज के देशभक्त जैसे खान अब्दुल गफ्फार खां आदि। स्पष्ट है कि उस समय कांग्रेस एक विशेष विचारधारा वाले लोगों का संगठन न होकर, पूरे देश की विभिन्न विचारधाराओं वाली पार्टियों की सामूहिक पार्टी थी।
महात्मा गांधी 1914 में भारत आये और उन्होंने अपने गुरु की राय मानकर एक वर्ष तक पूरे भारत का भ्रमण कर वास्तविकताओं को जानने का प्रयास किया। फिर धीरे-धीरे उन्होंने कांग्रेस का कायाकल्प प्रारंभ कर दिया। उन्होंने अंग्रेज शासकों की वन्दना के स्थान पर देशभक्त भारतीयों को स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने को तैयार करना शुरू कर दिया। इसके लिए उन्होंने विदेशी शासन के विरुद्ध विभिन्न आन्दोलन प्रारम्भ किये जैसे-1917 का चम्पारण सत्याग्रह, 1914 में अमदाबाद मिल के मजदूरों के सहयोग में भूख हड़ताल, 1920 का असहयोग आन्दोलन, 1930 का दाण्डी मार्च और 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन। इसके साथ ही गांधी जी ने कांग्रेस तथा जनता को नैतिक मूल्यों को अपनाने की सलाह दी।
गांधी के राजनीतिक तथा सामाजिक उत्थान के प्रयासों के फलस्वरूप भारतवासी जाग उठे। वे देशभक्त तथा निडर बन गये तथा स्वतंत्रता के लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हो गये। कांग्रेस एक अनुशासित पार्टी बन गई जिसके सदस्य देशभक्त तथा उच्च जीवन मूल्य अपनाने वाले लोग थे। वे व्स्व-साधनाव् के स्थान पर देश तथा देशवासियों के हित के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे। यह चित्र है गांधी तथा स्वतंत्रता के पहले की कांग्रेस का। गांधी देश के बंटवारे के विरुद्ध थे। उन्होंने कहा था कि उनके मृत शरीर पर ही देश का बंटवारा होगा। पर कांग्रेस के शीर्ष नेता वृद्ध हो गये थे तथा थक चुके थे। अत: उन्होंने देश का बंटवारा मान लिया। यह गांधी की पहली अवहेलना थी। जिस दिन स्वतंत्रता की खुशियां मनाई जा रही थीं उस दिन गांधी इन खुशियों में शामिल नहीं थे। वे बंगाल के रक्तरंजित जिले में गांव-गांव, घर-घर घूमकर शान्ति का संदेश दे रहे थे। नई कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने कोई प्रयास नहीं किया कि गांधी चन्द घण्टों के लिए ही दिल्ली आ जायें। क्या यह गांधी को त्यागने का प्रारम्भ नहीं था? बाद में गांधी दिल्ली आये। वे एक कालोनी में रहने लगे तथा प्रतिदिन शाम को प्रार्थना सभा में जाते थे। वहीं 30 अक्तूबर 1948 को उनकी हत्या हुई। गांधी एक जनप्रिय नेता थे। उनकी मृत्यु ने देशवासियों को हिला दिया। देश के कोने-कोने से लोग दिल्ली की तरफ दौड़ पड़े। अत: नई कांग्रेस तथा उनके नेताओं ने इस दु:खद घटना को भी अपने पक्ष में मोड़ने के लिए गांधी की शवयात्रा पर कब्जा कर लिया। इस शवयात्रा और दाह संस्कार से अन्य विचारधाराओं के नेताओं को दूर ही रखा गया। स्पष्ट है पुरानी कांग्रेस ने इस नई कांग्रेस का रूप लेना शुरू कर दिया था।
स्वतंत्रता के बाद इस नई कांग्रेस से शनै: शनै: अन्य विचारधराओं के कांग्रेसी- जैसे समाजवादी, साम्यवादी तथा गांधी की सत्य, अहिंसा, नैतिक मूल्यों, सादा-जीवन, कृषि उन्मुख विकास, भारतीय शिक्षा आदि के पक्षधर धीरे-धीरे अलग होने लगे। इस नई कांग्रेस पर पटेल जैसे व्यक्ति के निधन के बाद नेहरू का पूर्ण अधिकार हो गया। इस नई कांग्रेस ने गांधी की लोकप्रियता को भुनाने के लिए तथा अपने को उनका एकमात्र उत्तराधिकारी दिखाने के लिए गांधी को राष्ट्रपिता घोषित कर दिया। आज स्थिति है कि नेहरू से इंदिरा गांधी की और अब सोनिया पार्टी बन गई नई कांग्रेस के नेता वर्ष में एक दिन उनकी समाधि पर एकत्रित होने के बाद उनके प्रति अपने कर्तव्यों की इति मान लेते हैं। इसके बाद वे उन सब कार्यों को करते हैं जिनका, यदि गांधी जीवित होते तो, घोर विरोध करते। गांधी के सत्य पर आधारित आचरण को खुद कांग्रेसियों ने भुला दिया है। अहिंसा को भी नहीं मानते हैं। गांधी स्वदेशी भाषा, शिक्षा और रोजगार पर जोर देते थे, किन्तु कांग्रेस ने गांधी के इन मूलभूतों विचारों को भी त्याग दिया है।
-शान्ति स्वरूप गुप्ता
जे-460, जनकपुरी, अलीगढ़-202001 (उ.प्र.)
सशक्त लोकपाल चाहिए
सम्पादकीय व्लोकपाल पर छलावाव् के अन्तर्गत यह आकलन बिल्कुल सही किया गया है कि देश की यह सत्तालोलुप, निकम्मी और भ्रष्ट सरकार नहीं चाहती कि देश भ्रष्टाचार-मुक्त हो। यह निराशाजनक है कि लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने वाली समिति में शामिल सरकारी पक्ष जिस तरह टालमटोल करने पर आमादा है उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व वाली यह सरकार एक सशक्त लोकपाल विधेयक लाना ही नहीं चाहती है।
-आर.सी. गुप्ता
द्वितीय ए-201, नेहरू नगर
गाजियाबाद-201001 (उ.प्र.)
द सरकार ऐसा जन लोकपाल विधेयक बनाए, जिससे छोटे-बड़े सभी भ्रष्टाचारी आसानी से पकड़े जा सकें। उस लोकपाल विधेयक की कोई आवश्यकता नहीं है, जिसमें नेताओं और नौकरशाहों की लगाम कसने का कोई प्रावधन न हो। देश के वरिष्ठ कानूनविद् भी मानने लगे हैं कि लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को भी लाया जाना चाहिए।
-मनोहर रेड्डी
ईदगाह भाठा, रायपुर-492001 (छत्तीसगढ़)
द यदि डा. मनमोहन सिंह ठान लें कि लोकपाल के अधीन प्रधानमंत्री को रखा जाएगा, तो क्या उनके मंत्री उनका विरोध करेंगे? कतई नहीं। दरअसल, मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के अधीन लाना ही नहीं चाहते हैं। भले ही ऊपर से वह कहें कि वे तो इस पक्ष में हैं, किन्तु मंत्रिमण्डल उनकी बात नहीं मान रहा है।
-मनीष कुमार
तिलकामांझी, भागलपुर (बिहार)
द प्रधानमंत्री और उनके मंत्री लोकपाल विधेयक पर जिस तरह के बयान दे रहे हैं, लग रहा है कि इस कानून के फंदे में यही लोग पहले आने वाले हैं। इसलिए एक दमदार लोकपाल बनाने से ये लोग पीछे हट रहे हैं। यह रवैया संप्रग सरकार को बहुत भारी पड़ेगा।
-विजय कुमार
शिवाजी नगर, वाडा, जिला-थाणे (महाराष्ट्र)
द यह सुखद बात है कि लोकपाल विधेयक के लिए समाजसेवी अन्ना हजारे और कालेधन की वापसी के लिए बाबा रामदेव सक्रिय हैं। उनके साथ हमारी भी शुभकामनाएं हैं। किन्तु इनके अलावा भी देश में कई समस्याएं हैं, जिन पर किसी को ध्यान देना होगा। करोड़ों लोग बेघर हैं, बेरोजगार हैं, बीमार हैं। इन समस्याओं का भी निदान खोजना होगा।
-आलोक अवस्थी
रामनगर, मेरठ-250001 (उ.प्र.)
पाकिस्तान का असली चेहरा
व्अलगाववादियों का एजेंडाव् में श्री नरेन्द्र सहगल ने बहुत ही बेबाकी से सरकारी विफलताओं को उजागर किया है। बिल्कुल सही लिखा गया है कि जो अलगाववादी श्रीनगर में नजरबंद थे, उन्हें किसके आदेश पर दिल्ली आकर पाकिस्तानी विदेश मंत्री हिना रब्बानी से मिलने की छूट मिली? क्या भारत सरकार की अनुमति के बिना ऐसा हो सकता है?
-शिवेश मिश्रा
करगी खुर्द, करगी रोड, जिला-बिलासपुर-495113 (छत्तीसगढ़)
द दिल्ली में हिना रब्बानी सबसे पहले कश्मीरी अलगाववादियों से मिलीं और कश्मीर की आजादी के संबंध में बातचीत की। यह खुल्लमखुला भारत के आन्तरिक मामले में पाकिस्तानी दखल है। इससे पाकिस्तान का असली चेहरा उजागर हुआ है। दु:ख तो तब और बढ़ गया जब भारत सरकार ने सब कुछ जानते हुए भी अलगाववादियों और हिना रब्बानी की मुलाकात पर कोई सख्त टिप्पणी तक नहीं की।
-ठाकुर सूर्यप्रताप सिंह व्सोनगराव्
कांडरवासा, रतलाम-457222 (म.प्र.)
द भारत सरकार सख्त रवैया अपनाती और हिना तथा कश्मीरी अलगाववादियों की भेंट नहीं होने देती तो पाकिस्तान को एक कड़ा सन्देश जाता। किन्तु जो सरकार इस देश को ही लूटने में लगी है, उसे देशहित से क्या लेना-देना? पाकिस्तान तब तक अपनी गलत आदतें नहीं सुधारेगा जब तक उसे यह न लगे कि भारत उसके साथ व्जैसे को तैसाव् व्यवहार कर सकता है।
-प्रदीप सिंह राठौर
एम.आई.जी. 36, बी ब्लॉक, पनकी
कानपुर (उ.प्र.)
व्इस्लामी बमव् और कादिर खान
श्री मुजफ्फर हुसैन का लेख व्अब अब्दुल कादिर खान पर है अमरीकी नजरव् पढ़ा। पाकिस्तान के इस परमाणु वैज्ञानिक ने परमाणु तकनीक बेचकर खूब पैसा कमाया और अपने पाकिस्तानी आकाओं को भी बांटा। परमाणु ताकत के बल पर ही छोटे-छोटे इस्लामी देश अमरीका को आंख दिखा रहे हैं। इसलिए अब्दुल कादिर खान पर अमरीका का गुरर्#ाना उचित ही है।
-हरेन्द्र प्रसाद साहा
नया टोला, कटिहार-854105 (बिहार)
वस्तानवी और अली मियां
प्रो. राकेश सिन्हा ने अपने लेख 'देवबन्द को क्यों नहीं पचा वस्तानवी का सच' में जिन मुद्दों को उठाया है, उन पर प्रत्येक भारत-भक्त को गौर करना चाहिए। वस्तानवी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के बारे में गलत क्या कहा था? जो लोग वस्तानवी का विरोध कर रहे हैं, वे नदवा मदरसे के आलिम अली मियां का विरोध क्यों नहीं कर रहे हैं? जिन्होंने पिछले दिनों पाकिस्तान को दुनियाभर के मुसलमानों के लिए प्रेरणारुाोत बताया था और कहा था भारत में गोहत्या इसलिए आवश्यक है कि यहां गाय की पूजा की जाती है।
-विमल चन्द्र पाण्डे
चारपान खुर्द, डंवरपार, गोरखपुर-273016 (उ.प्र.)
अत्याचार का हथियार
पिछले दिनों प्रस्तावित व्साम्प्रदायिक व लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयकव् के बारे में पढ़ने को मिला। यह विधेयक तो बहुत ही खतरनाक है। यह विधेयक हिन्दुओं पर अत्याचार करने का एक हथियार बन सकता है। आश्चर्य होता है कि हिन्दू-बहुल देश में ही हिन्दुओं को नाथने वाले कानून बन रहे हैं। हिन्दू अब नहीं जगेंगे, तो कब जगेंगे?
-रिंकू
नाथनगरी, बरेली (उ.प्र.)
फैली अन्ना आग
भारत में चारों तरफ, फैली अन्ना आग
जिसको देखो गा रहा, वही कठिन यह राग।
वही कठिन यह राग, लोग सड़कों पर उतरे
गली-गली में नये युवा नेता हैं उभरे।
कह 'प्रशांत' है बनी बवंडर अन्ना आंधी
जयप्रकाश हम कहें उन्हें या नूतन गांधी।।
-प्रशांत
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