कश्मीर के बाहर पांव पसार रहे हैं
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कश्मीर के बाहर पांव पसार रहे हैं

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Dec 12, 2010, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Dec 2010 00:00:00

देशद्रोही हुर्रियत नेताद नरेन्द्र सहगलथ् सरकार की नाक के नीचे पुलिस के संरक्षण में देश के महानगरों में “हम क्या चाहते आजादी”, “भारतीय सेना वापस जाओ”, “कश्मीर भारत का भाग नहीं”, “पाकिस्तान को वार्ता में शामिल करो”, “पाकिस्तान के बिना कश्मीर मसला हल नहीं होगा” इत्यादि विषयों पर सम्मेलन करना असंवैधानिक और गैर कानूनी है।थ् भारत विरोधी अलगाववादियों, चीन समर्थक माओवादियों, हिंसक नक्सलवादियों, पथभ्रष्ट खालिस्तानियों और कथित प्रगतिशील लेखकों/पत्रकारों का एक मंच पर आकर देशघातक दुष्प्रचार करना भारत की अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरनाक साबित होगा।कश्मीर घाटी में “आजादी” ड़की जंग लड़ रहे देशद्रोहियों द्वारा फैलाए जा रहे हिंसक आतंकवाद, चार लाख कश्मीरी हिन्दुओं के बलात् पलायन, बीस हजार से ज्यादा सुरक्षा कर्मियों के बलिदान, एक लाख से ज्यादा कश्मीरी युवकों को मजहब के नाम पर गुमराह करने, हजारों युवकों के हाथों में बंदूकें थमाकर उन्हें मरवाने, लाखों लोगों के व्यवसाय को तबाह करवाने और पूरे जम्मू-कश्मीर के जनजीवन को अस्त-व्यस्त करने के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार अलगाववादी नेताओं ने अब अपने कदम कश्मीर से बाहर भी रखने शुरू कर दिए हैं।सभी भारत विरोधी एक मंच परसबसे ज्यादा खतरनाक एवं सनसनीखेज पक्ष यह है कि पहले से ही भारत की अखंडता एवं सुरक्षा को चुनौती दे रहे विदेश प्रेरित संगठनों के नेता अर्थात माओवादी, नक्सलवादी, मुट्ठीभर खालिस्तानी, वामपंथी और कथित प्रगतिशील लेखक/पत्रकार इन पाकिस्तानपरस्त अलगाववादी नेताओं का साथ दे रहे हैं। पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान के इशारे, सहायता और योजनानुसार समस्त भारत में वामपंथियों, खालिस्तानियों, कश्मीरी अलगाववादियों और माओवादियों की एक ऐसी भारत विरोधी चौकड़ी तैयार हो रही है, जिसका अगर समय रहते संज्ञान नहीं लिया गया तो भारत की स्वतंत्रता, संस्कृति और ऐतिहासिक अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लग जाएगा। अपने-अपने क्षेत्र में पिट चुकीं अथवा स्थानीय समाज द्वारा ठुकरा दी गईं यह सभी राष्ट्रविरोधी व अर्थहीन शक्तियां अब एक मंच पर आकर भारतीय सत्ता से टकराने के लिए सामूहिक दुष्प्रचार का रास्ता अपना रही हैं। इन सभी संगठनों ने कश्मीर घाटी में सक्रिय अलगाववादी गुटों के नेताओं की पृथकतावादी आवाज के साथ अपने देशघातक स्वरों को मिलाना प्रारंभ किया है।पिछले दो माह में सम्पन्न हुए कश्मीर घाटी के अलगाववादियों के कार्यक्रमों पर ध्यान दें तो स्पष्ट होगा कि पूरे देश में एक ऐसी अलगाववादी साजिश रची जा रही है, जिसके तहत भारत में राजनीतिक अस्थिरता, धार्मिक वैमनस्य, सामाजिक अफरा तफरी और देशद्रोह को बढ़ावा दिया जाए। हुर्रियत नेताओं के साथ मंच पर आसीन होकर उनके भारत विरोधी एजेंडे का समर्थन करने वाले खालिस्तानी नेता हरपाल सिंह, लेखिका अरुंधति राय, बलराज पुरी, सुप्रीम कोर्ट के वकील अशोक मान, इंटरनेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी के दर्शन सिंह धनेठा, आई. डी. खजूरिया एवं अन्य माओवादी नेताओं ने भी अब जम्मू-कश्मीर भारत का भाग नहीं कहना शुरू कर दिया है। वास्तव में इन्हीं तथाकथित प्रगतिशील नेताओं के कंधों पर अपनी बंदूकें रखकर अलीशाह गिलानी, मीरवायज उमर फारुक और शब्बीर शाह जैसे अलगाववादी नेताओं ने अपने निशाने साधने प्रारंभ कर दिए हैं।देशव्यापी दुष्प्रचार की साजिशभारत के संविधान, संसद और सेना को नकारने वाले अलगाववादी नेता वैसे तो पिछले 22 वर्षों से ही स्वतंत्र कश्मीर राष्ट्र का प्रचार कश्मीर घाटी सहित पूरे देश में करते चले आ रहे हैं, परंतु पिछले दो महीनों में देश के तीन प्रमुख शहरों में इन नेताओं ने जिस तरह से बिना किसी रोक-टोक के देश विरोधी विचार गोष्ठियों का आयोजन किया है, वह वास्तव में चिंता का विषय है। दिल्ली में आयोजित संगोष्ठी का तो विषय ही कश्मीर की “आजादी” से संबंधित था। इस संगोष्ठी की व्यवस्था एवं संचालन भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमले के एक मुख्य आरोपी प्रो. गिलानी ने किया था। “आजादी ही एकमात्र हल” इस विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी ही असल में असंवैधानिक एवं गैरकानूनी थी। इसकी आज्ञा देना भी अलगाववादी मनोवृत्ति को सहारा देने जैसा था। फिर इसमें लगे नारे और प्रकट किए गए विचार/इरादे भी देशद्रोह की सीमा में ही आते हैं। पहले तो दिल्ली पुलिस को इस विचार गोष्ठी में लगे नारों “गो इंडिया गो”, “हम क्या चाहते आजादी”, “इंडियन आर्मी वापस जाओ” में से कोई भी भारत विरोधी नजर नहीं आया। अब उच्च न्यायालय के आदेश से इन पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया है।दिल्ली में सरकार और पुलिस के आशीर्वाद से सम्पन्न हुए इस कार्यक्रम से उत्साहित होकर हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता मीर वायज उमर फारुक ने चंडीगढ़, कोलकाता और दिल्ली में तीन संगोष्ठी आयोजित करके एक बार फिर यह जता दिया कि वे भारत के विरोध में बोलते रहेंगे और उनके मददगार पूरे देश में मौजूद हैं। चंडीगढ़ में सम्पन्न हुए सेमिनार का आयोजन एवं व्यवस्था इंटरनेशनल डेमोक्रटिक पार्टी के संस्थापक मुहम्मद काजमी ने की थी। स्थानीय खालिस्तानी नेताओं ने इसमें पूरा सहयोग दिया। इस संगोष्ठी में मीरवायज ने स्पष्ट कहा कि कश्मीर समस्या के समाधान के लिए पाकिस्तान की इच्छा एवं राय जानना जरूरी है। भारत द्वारा दी जा रही आर्थिक सहायता का मजाक उड़ाते हुए मीरवायज ने कहा कि हमें राजनीतिक समझौता चाहिए। अमन तब तक नहीं होगा, जब तक कश्मीरियों को इंसाफ नहीं मिलता। आश्चर्य है कि अनुच्छेद 370 के तहत हजारों राजनीतिक एवं आर्थिक सुविधाएं लेने वाले इन अलगाववादियों को कहीं भी इंसाफ नजर नहीं आता।घड़ियाली आंसूचंडीगढ़ में सम्पन्न संगोष्ठी में इस तथाकथित उदार नेता उमर फारुक ने समस्त भारतवासियों को बरगलाने के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल किया वे भी असंवैधानिक, झूठे और भड़काऊ थे। उन्होंने कहा, “कश्मीर का मसला वास्तव में राजनीतिक अस्थिरता का मामला है। लेकिन भारत के अवाम के सामने इस “हिन्दू इंडिया बनाम मुसलमान/पाकिस्तान” के रूप में परोसा जा रहा है। अब वक्त आ गया है कि प्रत्येक हिन्दुस्थानी इस मसले को जम्महूरियत एवं इंसानियत की नजर से समझे, क्योंकि इनके साथ उनके भी राष्ट्रीय हित जुड़े हैं। इसलिए ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस ने इस मुद्दे को भारतीय अवाम के बीच ले जाने का निर्णय लिया है जो उसके हल के लिए अहम भूमिका अदा कर सकती है। इसी अभियान की शुरुआत हम चंडीगढ़ से कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि इस संगोष्ठी का विषय था “भारत एवं पाकिस्तान के संदर्भ में कश्मीर समस्या।”अपने भाषण में मीरवायज ने भारत, पाकिस्तान और कश्मीर कहकर जहां यह घोषित किया कि कश्मीर भारत का भाग नहीं है, वहीं उसने पाकिस्तान को भी एक पक्ष बनाया। अलगाववादी नेता के अनुसार भारत कश्मीर समस्या का जनक है और पाकिस्तान की मदद से ही इसका हल होगा। मीरवायज ने जम्महूरियत और इंसानियत की दुहाई भी दे डाली, जबकि यहीं इन्हीं नेताओं ने कश्मीर घाटी में हिन्दुओं को जीने का अधिकार भी नहीं दिया। मीरवायज ने हिन्दू इंडिया एवं मुसलमान जैसे शब्द प्रयोग से अपने जेहन में छिपी उस मजहबी अर्थात इस्लामिक कट्टरता का परिचय दिया है, जिसके बहुमत के आधार पर “आजादी” मांगी जा रही है। लगे हाथ मीरवायज ने अपने ही द्वारा घरों से उजाड़े गए कश्मीरी हिन्दुओं से वापस आने की अपील भी कर दी। ध्यान रहे कि वे भी कश्मीर की “आजादी की जंग” में शामिल होकर हमारा साथ दें। इन अलगाववादी नेताओं ने कभी भी कश्मीरी हिन्दुओं की सुरक्षा की गारंटी नहीं दी और न ही बेगुनाहों की हत्याएं करने वाले आतंकियों के खिलाफ कभी कोई फतवा ही जारी किया। उलटा इन हत्यारे दहशतगर्दों को मुजाहिद्दीन (स्वतंत्रता सेनानी) कह कर उनका अभिनंदन किया है।अलगाववादी एजेंडे का अन्तरराष्ट्रीयकरणकोलकाता और फिर दिल्ली में भी मीरवायज ने अपने भारत विरोधी एवं पाकिस्तान समर्थक एजेंडे को ही आगे बढ़ाया है। उनके अनुसार भारत की सेना कश्मीरियों के मानवाधिकारों का हनन करके जनजीवन को अस्तव्यस्त कर रही है। इसीलिए यह अलगाववादी नेता भारतीय फौज की वापसी की मांग करते हैं। भारत की सरकार के आगे जो शर्तें रखी जा रही हैं, उन्हीं का प्रचार/प्रसार पूरे देश में करके सरकार और सेना को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने की साजिशों में अब कश्मीरियों के अलावा अन्य पृथकतावादी, फिरकापरस्त और हिंसा में विश्वास रखने वाले संगठन और नेताओं की मंडली इन्हें बल प्रदान कर रही है।हैरानी इस बात की है कि देशभर में भारत की संसद, संविधान और सेना को नकारने वाले यह नेता कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचारों, जम्मू और लद्दाख के साथ किए जा रहे भेदभाव, पाकिस्तान से आए हिन्दुओं के प्रति हो रहे अन्याय, भारत-पाक युद्धों के समय सीमांत क्षेत्रों से उठाए गए ग्रामीणों की समस्याओं, हरिजनों, वंचितों और महिलाओं के अधिकारों, आतंकवाद पीड़ित लोगों के दर्द, प्रदेश की नागरिकता (स्टेट सबजेक्ट) में धार्मिक एवं सरकारी स्तर पर की जा रही धांधली, पंडितों के बाद अब सिखों को भी कश्मीर छोड़ने की धमकियां और पूरे जम्मू-कश्मीर को हिन्दू विहीन करके भारत के चिन्हों तक को मिटा देने के षड्यंत्रों को योजनाबद्ध तरीके से छिपा रहे हैं।हाल ही में कोलकाता में सम्पन्न हुई मीरवायज की एक सभा में जब श्रोताओं ने इन प्रश्नों के उत्तर मांगे तो वे बगलें झांकते रह गए। अलगाववादी नेताओं की सभा में उपस्थित पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल शंकर राय चौधरी ने बड़े स्पष्ट शब्दों में मीरवायज से पूछा “कश्मीर की आजादी को लेकर हो रहे आंदोलन (जिहाद) में अभी तक एक भी हुर्रियत नेता को गोली क्यों नहीं लगी। मुझे एक भी ऐसे नेता का नाम बताइए जिसे सेना की गोली लगी हो। जबकि आप लोगों के उकसाने पर नौजवान और बच्चे मर रहे हैं।” मीरवायज सहित मंच पर बैठे सभी “आजादी” समर्थक नेता निरुत्तर हो गए।मजहब आधारित कट्टरवादी जुनूनवास्तविकता तो यही है कि यह सभी हुर्रियत नेता कश्मीरी समाज को मजहब के आधार पर जुनूनी बनाकर सड़कों पर ला रहे हैं। स्वयं अपने घरों में दुबके रहते हैं। इनके जानमाल की रक्षा भी भारतीय सुरक्षा बल और कश्मीर पुलिस करती है। इनमें से कइयों को भारत के उसी संविधान के अंतर्गत सुरक्षा मिली हुई है जिसको यह भारत की तानाशाही बताकर ठुकराते हैं। कभी-कभी इन नेताओं की गिरफ्तारी का जो नाटक होता है, वह भी अजीब है। इन्हें इनके घरों पर ही नजरबंद किया जाता है। इनके पास आधुनिक संचार व्यवस्था की सारी सुविधाएं रहती हैं। घरों में ही बैठकर यह नेता अपने समर्थकों, आतंकी कमांडरों, सरकार और प्रशासन में लबालब भरे हुए भारत विरोधी तत्वों और पाकिस्तान में सक्रिय अपने आकाओं के साथ अपने नियमित संबंध जोड़े हुए हैं। इनके पास आतंकियों की कार्रवाई, सुरक्षा बलों की योजना, सरकार की रणनीति इत्यादि की सारी खबरें रहती हैं। अब तो भारत की सरकार द्वारा भेजे जाने वाले प्रतिनिधि मंडलों और वार्ताकारों ने भी घरों में जाकर इनके जज्बात (“आजादी” का रोडमैप) जानने की मुहिम छेड़ दी है।अपने घरों में सक्रिय और पूरी तरह सुरक्षित इन जनाधार रहित हुर्रियत नेताओं के पास धन और साधनों की कोई कमी नहीं है। दूसरों के बच्चों को जिहादी आग में झोंकने वाले इन हुर्रियत नेताओं के अपने बच्चे पाकिस्तान और सऊदी अरब में पढ़ते हैं। इन कट्टरपंथी नेताओं को अरब देशों से हवाला के जरिए अथाह धन मिलता है। इस बात के सबूत भारत के गृहमंत्रालय के पास हैं कि हुर्रियत कांफ्रेंस सहित अनेक अलगाववादी तत्व न केवल कश्मीर घाटी में राष्ट्रघातक आग ही लगा रहे हैं, अपितु भारत को तोड़ने जैसे षड्यंत्र भी रच रहे हैं।श्री अमरनाथ भूमि बचाओ आंदोलन के समय जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजादी ने विधानसभा में विश्वासमत प्रस्ताव पर बोलते हुए कहा था, “इन नेताओं की एक टांग हिन्दुस्थान में और दूसरी कहीं और रहती है, ये लोग 60 साल से रियासत के लोगों को गुमराह कर रहे हैं। ये लोग उनके घर जलाते हैं, जिनमें खाने की रोटी तक नसीब नहीं होती।” यह देश विरोधी अलगाववादी नेता भारत सरकार की कानूनी स्वीकृति से विदेशों विशेषतया मुस्लिम देशों में जाकर दुष्प्रचार भी करते हैं। मीरवायज उमर फारुक तो अन्तरराष्ट्रीय मुस्लिम देशों के सम्मेलनों में मुस्लिम कश्मीर का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। इस प्रकार भारत के भीतरी मामले कश्मीर समस्या का अन्तरराष्ट्रीयकरण भारत की सरकार के आशीर्वाद से हो रहा है।स्पष्ट है कि कश्मीर घाटी को भारत से काटने की साजिशों को अंजाम देने वाले पाकप्रेरित अलगाववादियों की पहुंच भारतभर में बन रही है। भारत की सरकार विशेषतया सोनिया पार्टी अपनी परंपरागत कांग्रेसी राजनीति (मुस्लिम तुष्टीकरण) के नशे को छोड़कर होश में नहीं आ रही। यही हमारे विशाल देश भारत का दुर्भाग्य है। द8

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