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आज बेटी और वृक्ष दोनों खतरे में है। जहां एक ओर बालिका भ्रूण-हत्या के माध्यम से बेटियों के अस्तित्व को मिटाया जा रहा है वहीं वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण को असंतुलित कर मानव-अस्तित्व के समक्ष प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है। लेकिन इस विषम परिस्थिति में बिहार के एक गांव “धरहरा” के वासियों ने “बेटी और वृक्ष” को अपनी धरोहर मान लिया है। इन्होंने एक ऐसी परम्परा को जन्म दिया जिसका आधार सूत्र है- “पर्यावरण बचाना है, एक कन्या पर दस वृक्ष लगाना है।”भागलपुर (बिहार) जिला के नवगछिया अनुमंडल के धरहरा गांव में बेटियों के जन्म लेने पर वृक्ष लगाने की परंपरा है। गांव के 69 वर्षीय वशिष्ठ प्रसाद सिंह का कहना है कि यह परंपरा दशकों पूर्व हमारे पूर्वजों के द्वारा ही चलायी गई थी जिसे आज भी हम लोगों ने जारी रखा है। गांव में एक बेटी के पैदा होने पर उस परिवार के लोग दस पौधे लगाते हैं। इस परंपरा से जहां बेटियों को सम्मान व महिला-सशक्तिकरण को बल मिलता है वहीं वृक्षारोपण से पर्यावरण संरक्षित होता है। पेड़-पौधों ने जहां इस गांव को बीमारियों से मुक्त रखा है वहीं गांव की समृद्धि में भी इनका बहुत बड़ा योगदान है। गांव में बेटियों का अनुपात 60 फीसदी है और वन का दौ सौ प्रतिशत से भी ज्यादा। पौधों की सघनता इस दृष्टि से प्रकट होती है कि एक नजर में गांव के दो-तीन मकान ही दिख पाते हैं, जबकि यहां की आबादी मात्र पांच हजार के करीब है। वर्ष 1957 में ब्याही गई निर्मला देवी बताती हैं कि उनकी पहली बेटी के जन्म पर परिवार वालों ने 60 पेड़ लगाए थे जबकि दूसरी बेटी के होने पर इससे भी अधिक पेड़ लगाए गए।कन्या के जन्म पर वृक्ष लगाना स्वयं में एक अद्भुत मिसाल है जिससे सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए। प्रदेश के मुख्यमंत्री भी इस गांव की यात्रा कर यहां की अनूठी परंपरा से अभिभूत हो गए, साथ ही उन्होंने ग्रामीणों के संकल्प की भूरि-भूरि प्रशंसा भी की। संजीव कुमार28
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