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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले, आलौकिक सौंदर्य और नैसर्गिक रमणीयता को अपने में समेटे भारतवर्ष का सिरमौर स्थल कश्मीर हमेशा से लेखकों-कवियों और पर्यटकों को आकृष्ट करता रहा है। इतना ही नहीं, राष्ट्रीय एकता और अखंडता का प्रतीक भी इसे माना जाता है। यहां के वातावरण में घुली केसर की मोहक सुगंध, हिमाच्छादित पर्वत शिखरों की दिव्यता, बेशुमार सरोवरों, जल प्रपातों, वन उद्यानों से समृद्ध इस भूमि के सांस्कृतिक जीवन में भी अपनी प्रेम भाव और सौहार्द की प्राचीन गौरवमयी परंपरा रही है। लेकिन विगत दो दशकों से हिंसा और आतंक के विष ने वहां की वायु में घुलकर सम्पूर्ण परिवेश को भयाक्रांत बना दिया है। वहां रहने वाले निवासियों के मन में समाए दर्द और दारुण यथार्थ की टीस को अनेक रचनाकार अभिव्यक्त करते रहे हैं। इसी क्रम में प्रोफेसर चमन लाल सप्रू के संपादन में साठ कवियों की कश्मीर पर केन्द्रित कविताओं का संकलन कुछ समय पूर्व प्रकाशित हुआ है। “व्यथा वितस्ता की” शीर्षक से प्रकाशित इस काव्य संकलन में ख्यातिलब्ध और उदीयमान कवियों की रचनाओं को स्थान दिया गया है।समीक्ष्य काव्य संग्रह की रचनाओं में कश्मीर की आलौकिक प्राकृतिक सुंदरता के साथ वहां की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, विशेषताओं का भी वर्णन किया गया है। मिसाल के तौर पर कवि जीवन लाल प्रेम अपनी कविता “मेरा प्रिय कश्मीर” में लिखते हैं, “भारत का सरताज/ अनादिकाल से आज/ लहलहाता शांत/ मग्न ध्यानमय लीन/प्रकृति की बजती बीन/ध्वनित वन प्रांत। इसी प्रकार भुवनेश्वरी त्रिपाठी अपनी कविता “हमारा अपना कश्मीर” में लिखती हैं, “प्रकृति की सुषमा का विस्तार/महकती केसर की क्यारी/ श्रंगो का वैभव जहां/झील की शोभा है न्यारी/धरा का यह सुंदर कश्मीर।”संग्रह की अधिकांश कविताओं में कवियों के मन में समाया हुआ वह दर्द, वह टीस बार-बार मुखरित हुई है, जिसे उन्होंने कश्मीर के चेहरे पर हुए हिंसा के आघात को सहते हुए महसूस किया है। “मौन मूर्ति” शीर्षक कविता में कवि श्याम दत्त पराग लिखते हैं “झरनों का मधुर संगीत जहां/उठ रहा भयानक चीत्कार/हो गई लुप्त मुस्कान मधुर/फैला चहुं में अंधकार।विगत वर्षों के दौरान कश्मीर की हसीन वादियों में घटित हुई अमानवीय और क्रूर घटनाओं ने वहां रहने वाले आम आदमी के जीवन को कितना त्रासदीपूर्ण बना दिया है, इस बात को कई कवियों ने अपनी कविता में व्यक्त किया है। कवि पृथ्वीनाथ मधुप ने इसी अनुभूति को बहुत मार्मिकता से अपने दोहों में शब्दबद्ध किया है। वे लिखते हैं,”जहां बरसता था सदा, प्रेम प्यार दुलार। वहीं निरंतर हो रही, गोली की बौछार। कविता, केसर और कमल थे, जिसकी पहचान। उस धरती को कर दिया किसने हा! श्मशान।।ऐसी बहुत सी मार्मिक कविताओं के जरिए कश्मीर और वहां के रहने वालों की चीत्कार सुनाई पड़ती है और उनके मन में समाई असह्र पीड़ा को महसूस किया जा सकता है। कुछ कवियों की कविताओं में अपने प्राणों से प्यारे कश्मीर को छोड़ने का दर्द भी प्रभावी ढंग से उभरकर सामने आता है। “मेरा खोया घर लौटाओ” कविता में मख्खनलाल उदय कहते हैं,”मेरे घर में खुली हवा थी, दूर नजर पर्वत माला थी। वही सुहाना, दृश्य दिखलाओ, मेरा खोया घर लौटाओ।कुछ कवियों के भीतर कश्मीर की इस दशा के लिए जिम्मेदार बेफिक्र लोगों के लिए गहरा रोष भी व्याप्त है, जिसे उन्होंने कठोर शब्दों में व्यक्त किया है। मिसाल के तौर पर आनंद मिश्र “अभय” की कविता “केसर की क्यारी जले” को उद्धृत किया जा सकता है-“केसर की क्यारी जले, जले वितस्ता नीर। डल वूलर को हैं लगे, घाव बड़े गंभीर। ए के सैंतालीस टंगीं, नंदनवन के बीच। चादर ताने सो रही, दिल्ली आंखें मींच।कहा जाना चाहिए कि अपनी तरह का यह एक विलक्षण काव्य संग्रह है। इन सभी रचनाओं से गुजरते हुए कवियों के भावों की गहनता को महसूस किया जा सकता है। सरल, सहज और प्रवाहमयी भाषा में पूरी मार्मिकता से कश्मीर की वर्तमान दशा का चित्रण किया गया है।विज्ञान भूषणपुस्तक : व्यथा वितस्ता की (काव्य संकलन) संपादक : चमन लाल सप्रू प्रकाशक : क्षितिज प्रकाशन, बी-8, नवीन शाहदरा, दिल्ली पृष्ठ : 224 मूल्य : 250 रु.मात्र18
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