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मिट्टी के दिये हैं हम घोर तमस में भी रौशन हो जिये हैं हमसच्चाई के याचक हैं राम के वंशज हम सूरज के उपासक हैंक्या हम सा भी दूजा है त्याग सिंहासन को पैहनियों को पूजा हैजब तक न मिली सीता राम का हर पल-छिन इक कल्प सदृश बीताघट-पाप गिरा भू पर शंख बजे जय के ध्वज-पुण्य चढ़ा ऊपररघुवर का बजा डंका मन न डिगा पाई वो स्वर्णमयी लंका”है स्वर्ग से भी बढ़कर मेरा अवध मुझको”- रघुवर ने कहा हंसकरभटके थे जो वन-वन में छाए हैं जादू से अब राम वो जन मन मेंउत्सव सा है घर-घर में राम-सिया-लछमन लौटे हैं अवधपुर मेंपल हर्ष के छाए हैं शोर अवध में है- राम आए हैं, आए हैंमिल दीप जलाओ रे “राम बनें राजा”- ये गीत गुंजाओ रे(यह रचना पंजाबी के “माहिया” छंद में है, जिसका छंद-विधान अनूठा है।)16
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