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पाठकीय

by
Jul 3, 2010, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Jul 2010 00:00:00

मतान्तरण का दुष्परिणामस्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि जब एक हिन्दू मतान्तरित होकर मुस्लिम या ईसाई बनता है तो एक हिन्दू ही नहीं घटता, बल्कि हिन्दू समाज का एक दुश्मन बढ़ जाता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण वर्तमान पाकिस्तान और अफगानिस्तान में देखने को मिलता है। ये दोनों कभी भारत का हिस्सा थे। पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर प्रान्त के मिंगोरा, पेशावर और स्वात कभी बेहद सम्पन्न गांधार राज्य का हिस्सा थे, जिसकी राजधानी कंधार थी। चौथी सदी ईसा पूर्व से ग्यारहवीं सदी ईसा पूर्व तक वहां के वैभव व शतप्रतिशत हिन्दू आबादी का इतिहास जगजाहिर है। यहां स्थापित तक्षशिला, बौद्ध स्तूप, मठ और गुफाएं इतिहास में प्रसिद्ध रहीं। यहां के हिन्दू राजाओं ने अनेक मन्दिरों व बौद्ध प्रतिमाओं का भी निर्माण कराया। आज से दो हजार वर्ष पूर्व विक्रमादित्य ने शकों द्वारा भारतीय साम्राज्य पर किये आक्रमणों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए अरब तक भारतीय विजय पताका फहराई। कहा जाता है कि उन्होंने अरब विजय के उपलक्ष्य में मक्का में महाकाल भगवान शिव के मन्दिर का निर्माण कराया। इसी मन्दिर के नाम पर उस स्थान का नाम मक्का पड़ा। विक्रमादित्य की अरब विजय का वर्णन अरबी कवि जरहाम किनतोई ने अपनी पुस्तक “शायर उर ओकुल” में भी किया है। इसी मन्दिर को वहां कई वर्षों तक पूजा जाता रहा। परन्तु तलवार के दम पर चारों तरफ आक्रमण करके इस्लाम के प्रसार के कारण वहां का मूर्तिपूजक समाज मतान्तरित होता चला गया। इसी मतान्तरण के कारण अरबों का पूजनीय महाकाल मन्दिर सातवीं शताब्दी के बाद “शैतान” माना जाने लगा, जहां आज तक हज के दौरान मुस्लिम लोग कंकड़ मारने की प्रथा निभाकर अपने हिन्दू धर्म से मतान्तरित होने की गवाही देते हैं। इसी प्रकार हजार वर्ष पूर्व जिन अफगान निवासियों ने अपने आराध्य के रूप में पहाड़ों को काटकर भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमाओं का निर्माण किया था, वही मूर्ति पूजक हिन्दू अफगानी मुगल आक्रमणकारियों द्वारा तलवार के दम पर मतान्तरित होकर मुसलमान अफगानी बनने के बाद उन्हीं आराध्य महात्मा बुद्ध की ऊंची-ऊंची बौद्ध प्रतिमाओं को 8-10 वर्ष पूर्व तालिबान के रूप में तोपों से तोड़ता नजर आया। अर्थात् केवल मतान्तरण के कारण अफगानियों की सोच पूरी तरह से विपरीत दिशा में घूमने लगी। अन्तर केवल मत परिवर्तन का था। अफगानिस्तान में हिन्दू कुश पर्वत श्रेणी नामकरण आज भी अफगानिस्तान में हिन्दू मतान्तरण की गवाही दे रहा है।इसी मतान्तरण के कारण विश्व गुरु भारत के 26 विभाजन गत एक हजार वर्ष के काल खण्ड में हुये। इसी मतान्तरण के कारण आर्यन प्रदेश ईरान देश बन गया और मलय प्रदेश मलेशिया। इसीलिए मतान्तरण एक बहुत बड़ी चुनौती है। इस चुनौती को सामाजिक समरसता के द्वारा ही परास्त किया जा सकता है।आज सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग मतान्तरित मुसलमान और ईसाइयों को वंचित हिन्दू समाज के समान आरक्षण देकर मतान्तरण को बढ़ावा देने का ही प्रयास कर रहे हैं। इसलिए देश और हिन्दुत्व की रक्षा के लिए निरंतर जनजागरण की आवश्यकता है।-डा. सुशील गुप्ताशालीमान गार्डन, बेहट बस स्टैण्ड सहारनपुर (उ.प्र.)पाकिस्तानी धूत्र्तता से सावधान!पाञ्चजन्य में मैं सबसे पहले सम्पादकीय पढ़ता हूं। यह विचारोत्तेजक एवं देशप्रेम से भरा होता है। “और कितने झूठ” शीर्षक सम्पादकीय भी इसी कोटि का है। इसमें पाकिस्तान की दुर्नीति, कुचालों और झूठों का पुलिंदा ही खोल दिया गया है। पाकिस्तान से किसी भी ईमानदारी तथा निश्छल मैत्रीभाव की आशा करना मूर्खता है। वह बार-बार स्पष्ट करता है, वह भारत को शत्रु मानता है और वहां के आतंकवादी भारत पर निशाना साधते रहते हैं। इसके विपरीत हम दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं, उनके छल-कपट को भूल जाते हैं और मासूम बने उनके जाल में फंस जाते हैं। हम क्यों इतने मूर्ख, कायर एवं पलायनवादी हैं? कहीं महाभारत का अर्जुन तो हमारे मन में बैठा हुआ नहीं है, जिसकी कायरता एवं पलायन को समाप्त करके उसे अधर्मियों का नाश करने को भगवान कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था। प्रत्येक भारतीय को कृष्ण बनना होगा, तभी हम शत्रु-सर्पों का समूल नाश कर सकते हैं।-डा. कमल किशोर गोयनका ए-98, अशोक विहार, फेज-1 (दिल्ली)द आवरण कथा में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी के धूर्ततापूर्ण आचरण का सटीक वर्णन है। भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने में अपनी भूमिका को नकारते हुए पाकिस्तान वार्ता के माध्यम से द्विपक्षीय सम्बन्धों को सुदृढ़ करने की फिर वकालत कर रहा है और दुर्भाग्य से जिसे अमरीका के दबाव में आकर भारत ने मान भी लिया है, यह भारत की एक और कूटनीतिक पराजय का द्योतक है। गिलानी का यह कहना कि “पाकिस्तान भारत में दोबारा 26/11 जैसा आतंकी हमला न होने की कोई गारंटी नहीं ले सकता,” जले पर नमक छिड़कना है।-आर.सी. गुप्तानेहरू नगर गाजियाबाद (उ.प्र.)द गणतंत्र दिवस के अवसर पर इस वर्ष लाल चौक (श्रीनगर) पर राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया गया। आखिर किन कारणों से ऐसा हुआ? श्री नरेन्द्र सहगल के लेख “लाल चौक से उठे सवाल” में इसका उत्तर मिला तो स्तब्ध रह गया। डा. मुरली मनोहर जोशी ने लाल चौक पर तब तिरंगा फहराया था जब आतंकवाद अपनी चरम सीमा पर था। तब से हर वर्ष तिरंगा फहराये जाने की परम्परा थी। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री युवा हैं। कहते हैं कि युवा शक्ति में गजब का जोश होता है तो उमर अब्दुल्ला का जोश कहां चला गया? क्यों नहीं इस परम्परा को वे कायम रख सके?-वीरेन्द्र सिंह जरयाल28-ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्ण नगर (दिल्ली)द गणतंत्र दिवस पर लाल चौक पर तिरंगा नहीं फहराया जाना जम्मू-कश्मीर सरकार की कमजोर इच्छशक्ति को प्रदर्शित करता है। पाकिस्तान से 26/11 जैसा आतंकी हमला नहीं होने देने की गारन्टी मांगना हमारे विदेश नीति निर्माताओं की कमजोरी जाहिर करता है। क्या कोई अपराधी बिना भय के अपराध नहीं करने का वायदा करता है? श्री देवेन्द्र स्वरूप ने अपने लेख “शहीद करकरे की हत्या के अपराधी कौन?” में उस मानसिकता को चिन्हित किया है जो जिहादियों को देश में पोषण दे रही है। आवश्यकता है इस मानसिकता से दृढ़तापूर्वक निपटा जाय।-डा. नारायण भास्कर50, अरुणानगर, एटा (उ.प्र.)द पाकिस्तानी शासकों को समझना चाहिए कि वे जिन आतंकवादियों को पाल-पोस रहे हैं, वे एक दिन उन्हें भी अपना शिकार बनाएंगे। वह समय अब पाकिस्तान में आ भी चुका है। आतंकवादी जगह-जगह बम विस्फोट कर निर्दोषों की जान ले रहे हैं। पाकिस्तान में भारत-विरोधी साजिशें रची जाती हैं। लेकिन धन्य है हमारी सरकार, जो कुंभकरणी नींद से नहीं जाग पा रही है और राष्ट्रधर्म के कर्तव्य से पीछे हट रही है।-ठाकुर सूर्यप्रताप सिंहसोनगरा, कांडरवासा (म.प्र.)गलत नीतिपिछले दिनों श्रीनगर के लाल चौक पर आतंकवादियों ने जबरदस्त हमला किया। लगभग 48 घंटे तक सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ हुई। इस घटना से सरकार की आंखें खुल जानी चाहिए। सरकारी नीतियों की वजह से देश में कहीं भी आतंकवादी निर्भय घूम रहे हैं, बम विस्फोट कर रहे हैं, निर्दोषों की जान ले रहे हैं। इसलिए हमें सावधानी बरतने की आवश्यकता है। पाकिस्तान सदा आक्रामक मुद्रा में रहता है और भारत रक्षात्मक मुद्रा में। यह नीति बिल्कुल गलत है।-राकेश चन्द्र वर्मामातृछाया, लालदरवाजा मुंगेर (बिहार)राष्ट्र के लिए संजीवनीहैदराबाद में आयोजित हिन्दू धर्म आचार्य सभा के सम्मेलन में धर्माचार्यों ने कई ऐसी बातें कही हैं, जिनसे बड़ी आश्वस्ति मिलती है। भारत से गरीबी मिट जाय, समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा-चिकित्सा का लाभ मिले, महिलाओं का सम्मान हो, संस्कृत भाषा का प्रसार तथा गो-संरक्षण हो। इन्हें पढ़कर ही सुखद अहसास होता है। जहां एक ओर नक्सलवाद, इस्लामिक कट्टरवाद, मैकालेवाद, छद्म सेकुलरवाद, प्रांतवाद व भाषावाद एक साथ भारतीय संस्कृति को लहुलूहान कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हिन्दू-संस्कृति प्रकृति और नारी सम्मान की तरफ अग्रसर होकर राष्ट्र के लिए संजीवनी का काम कर रही है।-सरिता राठौरम.सं.-445, गली सं.-1, हैदरपुर अम्बेडकर कालोनी (दिल्ली)…मगर इन्हें शर्म नहीं आतीदिल्ली बम काण्ड (सितम्बर 2008) के आरोपी शहजाद की “यूपी एटीएस” द्वारा गिरफ्तारी प्रशंसनीय है। परन्तु कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह का शहजाद के घर जाकर उसके पक्ष की बातें करना घोर निंदनीय है। वे कहते हैं कि इन अपराधियों को कई राज्यों में मुकदमे की सुनवाई में जाना पड़ता है जिससे इन्हें बहुत असुविधा होती है। मैं उनसे पूछना चाहती हूं कि क्या कई राज्यों में अपराध करने जाने पर इन्हें असुविधा नहीं होती थी? क्या जिनके परिजन इन विस्फोटों में मारे गये थे, उनकी परेशानियों का भी दिग्विजय सिंह को कुछ बोध है? अरे कांग्रेसियो, वोट तथा सत्ता के लोभ में इतना गिर जाओगे, मैं सोच भी नहीं सकती। इन्हीं कांग्रेसियों ने देश का मजहब के नाम पर विभाजन कराया। अब ये अल्पसंख्यकवाद का नारा लगा रहे हैं। होना तो यह चाहिए था कि जिन विधायकों व केन्द्रीय मंत्रियों ने इस अपराधी को डेढ़ साल तक शरण दी उन्हें भी सलाखों के अन्दर पहुंचाया जाता। परन्तु यहां तो उल्टे अपराधियों तथा उनके परिजनों के पक्ष में हवा बनाई जा रही है।-अनिता मिश्राटाइप चतुर्थ-312, अनपरा कालोनी अनपरा, सोनभद्र (उ.प्र.)बाकी देश को भी देखोममता दी के बजट से, खुश दिखता बंगाल लेकिन बाकी देश का, भी तो देखो हाल। भी तो देखो हाल, कहीं पटरी उखड़ी है और कहीं पर नक्सलवादी फौज खड़ी है। कह “प्रशांत” आरक्षण व्यर्थ हुए जाते हैं जेब हुई खाली पर सीट नहीं पाते हैं।।-प्रशांतपञ्चांगवि.सं.2066 – तिथि – वार – ई. सन् 2010 चैत्र कृष्ण 7 रवि 7 मार्च, 2010 ” 8 सोम 8 ” ” 9 मंगल 9 ” ” 10 बुध 10 ” ” 11 गुरु 11 ” ” 12 शुक्र 12 ” ” 13 शनि 13 ” 14

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