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एक दिन गांव में एक मेला लगा, मैं उसी दिन स्वयं को अकेला लगा। चित्र मेरे वहां कुछ बनाए गए सैकड़ों रंग भरकर सजाए गए, जो बहुत सार्थक लग रहा था मुझे मोल उसका वहां एक धेला लगा।-शतदलदेखकर जिन्दगी भाव मन के सभी दोपहर कुछ हुए रात भर कुछ हुए, स्वप्न ऐसे मिले नैन थोड़े खिले इस प्रहर कुछ हुए उस प्रहर कुछ हुए।-घमण्डी लाल अग्रवाल20
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