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द रानी कुमारीएक मां और सन्तान के बीच जैसा रिश्ता होता है, वैसा रिश्ता और कोई नहीं होता है। जब तक बच्चा चलता-फिरता नहीं है, कुछ खाता-पीता नहीं है तब तक उसके लिए सब कुछ मां ही होती है। हां, बच्चा जब अन्न खाने लगता है, तुतली भाषा में बोलने लगता है, चलने-फिरने लगता है तब वह कुछ समय के लिए मां से अलग रह सकता है। फिर भी वह अपनी मां की गोद में जितना अधिक अपने आपको सुरक्षित पाता है, उतना और किसी की गोद में नहीं। यहां तक कि पिता की गोद में भी बच्चा अपने आपको उतना सुरक्षित नहीं पाता है, जितना कि मां की गोद में। मां पहले उसे नौ महीने तक गर्भ में पालती है। जन्म के बाद भी कई वर्ष तक बच्चा मां के साथ छाया की तरह रहता है। मां कहीं जाती है, या घर में कुछ काम ही क्यों नहीं करती है, बच्चा उसी के साथ लगा रहता है। इसी दौरान मां और बच्चे में वह रिश्ता बनता है, जो अटूट होता है। यही कारण है कि जब भी किसी बच्चे को जीवन में कभी भी कोई कष्ट होता है तो वह सबसे पहले, यहां तक कि भगवान से भी पहले अपनी मां को याद करता है। चाहे बच्चा रुग्ण शय्या पर पड़ा हो या किसी दुर्घटना का शिकार हो गया हो उसके मुंह से सबसे पहले कुछ निकलता है, तो वह है हे मां! और इस मां के मन की गहराई कितनी होती है, यह एक मां ही बता सकती है। मां का मन समुद्र से भी गहरा होता है। यही वजह है कि कष्ट से घिरे बच्चे के मुंह से “हे मां” निकलते ही सुदूर कोने में बैठी मां को पता चल जाता है कि उसका बच्चा कष्ट में है। सन्तानें भी ऐसा ही अनुभव करती हैं। चाहे पुत्र अपनी मां से कितनी ही दूरी पर क्यों न हो यदि उसकी मां किसी मुसीबत में है तो उसे आभास हो जाता है। ऐसा आभास हर सन्तान को होता है। इस आभास को कुछ लोग समझ जाते हैं, कुछ नहीं समझ पाते हैं। आद्य शंकराचार्य को यह आभास हो गया था कि उनकी मां अब नहीं रहने वाली हैं, तो वह तुरन्त घर लौटे थे। पुत्र के सिर पर हाथ फेरने के बाद ही उन्होंने इस नश्वर शरीर को छोड़ा था। शंकराचार्य तो परम ज्ञानी थे। इसलिए आप कह सकते हैं कि उन्हें तो सब कुछ पता था। यह बात भी ठीक हो सकती है इसमें कोई दो राय नहीं है। पर विश्वास कीजिए एक साधारण पुत्र को भी अपनी मां के बारे में ऐसा आभास हो जाता है। हाल की एक घटना है। मेरे बिल्कुल पड़ोस में एक सज्जन रहते हैं। आधी रात के करीब उन्होंने सपना देखा कि गांव में अकेली रहने वाली उनकी मां काफी बीमार हैं। उनकी नींद टूट गई और उन्होंने मां को फोन लगाया। फोन की घंटी बजती रही, किन्तु किसी ने उठाया नहीं। उन्होंने बहुत सकुचाते हुए पड़ोस वाले घर में फोन लगाया। पहले तो उन्होंने आधी रात में फोन करने के लिए क्षमा मांगी, फिर मां का हालचाल पूछा। पड़ोसी ने कहा थोड़ी देर बाद फोन करो तब तक मैं माता जी से मिल लेता हूं। कुछ देर बाद पड़ोसी का फोन आया कि माता जी अचेत हैं, उन्हें अस्पताल ले जा रहे हैं। यह खबर सुनकर मेरे पड़ोसी तड़के ही पहली ही बस से मां को देखने के लिए निकल गए। किन्तु जब तक वे मां के पास पहुंचते तब तक वह सदा-सदा के लिए इस दुनिया को छोड़ चुकी थीं। यह क्या है? यह मां का अपने पुत्र के प्रति किया गया त्याग है, समर्पण है, जो बेटे को आधी रात में स्वप्न के जरिए जगा देता है। ऐसा होता है मां और पुत्र के बीच का रिश्ता। क्या आपने यह कभी सोचा है कि इस रिश्ते को बनाने के लिए एक मां को कितना त्याग करना पड़ता है। एक मां का त्याग अतुलनीय होता है। बच्चे की देखरेख के लिए मां पूरी रात जगती है। कई बार ऐसा होता है कि बच्चे को गोद में रखकर मां खाना खाती है और बच्चा गोद में मल-मूत्र त्याग देता है। यह देखकर साथ खाना खाने वाले लोग खिसकने का प्रयास करते हैं, परन्तु वह मां खाना खाने में ऐसे मशगूल रहती है, मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। इसी दीपावली की बात है। एक मां जब पूजा की थाली सजा रही थी उसी समय बच्चे ने मल-त्याग दिया। घर वालों ने बच्चे के बारे में कहा, तुम्हें भी इसी समय…। पर उस मां ने बड़े दुलार से कहा, कोई बात नहीं, चलो-चलो…। फिर वह पूजा में मस्त हो गई।कहने का अर्थ है कि मां हर स्थिति में बच्चे की देखरेख करती है। मां चाहे स्वयं बीमार हो, फिर भी वह बच्चे की सेवा में लगी रहती है। एक मां भूखी रह सकती है, अभाव में जी सकती है, पर वह अपने बच्चे को कभी भूखा नहीं छोड़ सकती है, उसकी हर जरूरत पूरी करने की कोशिश करती है। इसलिए हर बच्चा अपनी मां की भावनाओं को समझे। इसी में बच्चों का कल्याण है। द15
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