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कवि प्रदीप पर पुस्तक के लोकार्पण समारोह में साहित्य पर सार्थक बहससुप्रसिद्ध गीतकार “कवि प्रदीप” पर राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान (उ.प्र.) के संस्थापक, लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार डा. दिनेश चन्द्र अवस्थी (विशेष सचिव एवं वित्त नियंत्रक, विधानसभा, उ.प्र.) द्वारा रचित शोध-ग्रंथ के लोकार्पण समारोह के बहाने हिन्दी साहित्य पर सार्थक चर्चा हुई। “कवि प्रदीप का हिन्दी साहित्य में अवदान” नामक पुस्तक का लोकार्पण, उ.प्र. विधान परिषद् के सभापति श्री गणेश शंकर पाण्डेय एवं उ.प्र. विधानसभा के अध्यक्ष श्री सुखदेव राजभर ने गत 1 नवम्बर को विधान भवन के “राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन हाल” में किया। समारोह में कृतिकार डा. दिनेश चन्द्र अवस्थी ने बताया कि फिल्मेत्तर तथा 79 फिल्मों में लगभग 650 गीत लिखने वाले सुप्रसिद्ध गीतकार प्रदीप पर केन्द्रित पुस्तक में उनके फिल्मी, गैरफिल्मी, साहित्यिक एवं धार्मिक गीतों सहित सम्पूर्ण रचना कर्म पर विस्तृत विवेचन 578 पृष्ठों के ग्रन्थ में किया गया है। लेखक के अनुसार कवि प्रदीप के फिल्मी गीतों का साहित्यिक ढंग से अभीष्ट मूल्यांकन साहित्य समीक्षकों-आलोचकों ने नहीं किया। कवि प्रदीप ही नहीं फिल्मों के अन्य श्रेष्ठ गीतकारों के साहित्य की समीक्षा एवं उनका साहित्यिक मूल्यांकन किया जाना चाहिए। फिल्मी साहित्य और फिल्मी साहित्यकार के खांचे में साहित्य एवं साहित्यकारों को बांटना उचित नहीं है।उ.प्र. विधान परिषद् के सभापति श्री गणेश शंकर पाण्डेय ने इस अवसर पर कहा कि “बदलते परिवेश में साहित्यकारों की भूमिका बढ़ जाती है। कवि प्रदीप की राष्ट्रीय-चेतना की लौ को हमेशा प्रज्ज्वलित करते रहने की आवश्यकता है। डा. अवस्थी की कृति इस कार्य को काफी हद तक पूरा करती है। ऐसी रचनाएं समाज को नई दिशा देती हैं।”कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं विधानसभा के अध्यक्ष श्री सुखदेव राजभर ने कहा- “साहित्य को जीवन में उतारने का उपक्रम होना चाहिए। साहित्य से ही समाज सुन्दर बनता है। साहित्य और साहित्यकारों से दूर जाने वाला समाज विघटन के रास्ते पर जाता है। कवि प्रदीप से सत्साहित्य को बल मिला है। उनसे हमें प्रेरणा लेनी चाहिए।”समारोह के मुख्य वक्ता डा. शंभुनाथ (सेवानिवृत्त मुख्य सचिव, उ.प्र. सरकार) ने कहा, “स्वतंत्रता आन्दोलन को गति देने में कवि प्रदीप की रचनाओं का अत्यधिक योगदान है। उनमें राष्ट्रीयता का जुनून था जिससे सबको प्रेरणा मिलती है। महाकवि निराला जी ने स्वयं लिखा था कि “कवि प्रदीप” उनके योग्य उत्तराधिकारी थे। वे आग थे, प्रकाशधर्मी कवि थे। ऐसे अमर गीतकार के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।”समारोह का संचालन डा. विनोद चन्द्र पाण्डेय, (पूर्व निदेशक, हिन्दी संस्थान, उ.प्र.) ने किया। स्वागत श्री विजय प्रसाद त्रिपाठी (महामंत्री) एवं आभार श्री अम्बरीश प्रियदर्शी ने प्रकट किया।द25
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