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फैलती अपसंस्कृतिप्राचीन काल से ही भारत अपनी सभ्यता, संस्कृति एवं ज्ञान के लिए विश्व प्रसिद्ध रहा है। वेद, पुराण, गीता, रामायण, उपनिषद् सरीखे धार्मिक ग्रंथों, गणित, ज्योतिष, संगीत, नृत्य कला, राजनीति, व्यावहारिक ज्ञान, अध्यात्म, आयुर्वेद आदि शास्त्रों का यह जनक माना जाता है। अनेक ऋषि-मुनियों, विद्वानों, लेखकों, कवियों, ज्ञानियों की यह कर्मभूमि रही है। विभिन्न मत-पंथों, भाषाओं तथा मान्यताओं के बावजूद इस देश की सभ्यता एवं संस्कृति संसार में श्रेष्ठ मानी जाती रही है।किन्तु दु:ख का विषय है कि इसे मिटाने के लिए पिछले दो-तीन दशकों से हमारे ही देश के कुछ लोग लगे हुए हैं, विशेषकर सिनेमा और टीवी से संबंधित लोग। धीरे-धीरे एक-एक कदम बढ़ाते-बढ़ाते ये लोग पश्चिमी सभ्यता का जाल देशभर में बिछाते चले जा रहे हैं। पश्चिमी सभ्यता में रंगी आज की युवा पीढ़ी अपनी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति को भूलती चली जा रही है। जो चमकता है वही अच्छा है, ऐसी मान्यता मन में बैठाती चली जा रही है।सिनेमा और टीवी केवल मनोरंजन का ही साधन नहीं हैं, अपितु समाज को दिशा देने, शिक्षित करने और चरित्र को बनाने में उसका मुख्य योगदान हो सकता है। किन्तु आज 90 प्रतिशत चलचित्र और दूरदर्शन पर चलने वाले कार्यक्रम बेतुकी कहानियों, भौंड़े नृत्य- संगीत एवं कुरुचि पूर्ण दृश्यों तथा वैसे ही वस्त्रों में अभिनय करते अभिनेता और अभिनेत्रियों से भरे पड़े हैं। संगीत-नृत्य से कला गायब होकर केवल बेसुरी आवाज में जोर-जोर से चिल्लाना और कर्णभेदी आवाज में ड्रम बजाकर तालियां ठोकना ही मानो संगीत कहलाने लगा है। शायद अश्लीलता को बढ़ावा देने वाले वस्त्र पहनना और दिखाना ही इन चलचित्रों तथा टीवी का एकमेव उद्देश्य रह गया है। बुद्धिवादी कहलाने वाले समाचार पत्रों के पृष्ठ सिनेमा के अभिनेता, अभिनेत्रियों के चटपटे समाचारों एवं अश्लील चित्रों से भरे पड़े रहते हैं। युवा वर्ग इन्हें चाव से देखता एवं पढ़ता है। समाचार पत्रों का उद्देश्य केवल पैसा कमाना ही रह गया है।नई पीढ़ी इसे ही आधुनिकता के नाम पर अच्छा समझने लगी है। हमारे देश की सभ्यता संस्कृति को इसने आधा तो नष्ट कर ही दिया है, शेष आधी भी जल्दी नष्ट हो जाएगी, यदि इस पर समय रहते अंकुश न लगाया गया। दिन प्रतिदिन बढ़ते अपराध, पारिवारिक अलगाव, स्त्रियों पर अत्याचार और दुश्चरित्रता इसके प्रमाण हैं।सरकार तथा सेंसर बोर्ड खामोश हैं। सेंसर बोर्ड को कठोर उपाय अपनाकर ऐसे चलचित्रों तथा कार्यक्रमों पर यथाशीघ्र प्रतिबंध लगाना चाहिए। इनकी जगह अच्छे कथानक, नृत्य, संगीत तथा प्रेरणास्पद चलचित्रों और कार्यक्रमों का निर्माण कराना चाहिए, ताकि देश की युवा पीढ़ी सच्चरित्र बने और हमारी सभ्यता-संस्कृति की रक्षा हो।-एस.के. तिवारी46, योगक्षेम कालोनी, स्नेहनगर, वर्धा रोड, नागपुर(महाराष्ट्र)”वंश यशोगान” में सत्ता प्रतिष्ठानआवरण कथा “सरकार विफल, देश से छल” के अन्तर्गत श्री नरेन्द्र सहगल का यह आकलन कि प्रधानमंत्री तो मात्र एक “मंत्री” हैं, “प्रधान” तो कोई और है, बिल्कुल सही है। मनमोहन सिंह ने स्वयं माना है कि सोनिया गांधी संप्रग की नेता और कांग्रेस की अध्यक्ष हैं और मैं कांग्रेस का कार्यकर्ता, जो प्रधानमंत्री की “मजबूरी” का खुला प्रदर्शन है। यह विचित्र ही नहीं, बल्कि हास्यास्पद भी है कि भारतीय इतिहास और उसकी राजनीति से अनभिज्ञ एक विदेशी महिला ने विविधताओं से परिपूर्ण इतने बड़े देश की सरकार के सभी सूत्र अपने हाथ में लेकर देश के अर्थशास्त्र के ज्ञाता प्रधानमंत्री को कठपुतली बना कर रखा हुआ है। जबकि महंगाई, नक्सलवाद, आतंकवाद, अलगाववाद, गरीबी और भुखमरी से त्रस्त देश का आम आदमी अपनी गिरती दशा से बेजार है। परन्तु कांग्रेसनीत केन्द्रीय सत्ता प्रतिष्ठान सभी तरफ से बेखबर केवल एक वंश विशेष के यशोगान और उसके प्रति पूर्ण स्वामिभक्ति दिखाने की होड़ में लिप्त है।-आर.सी. गुप्ताद्वितीय ए-201, नेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)द मेरे मत में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह सरकार को जानबूझकर विफल किया जा रहा है और सोनिया गांधी को मजबूत किया जा रहा है। सोनिया-राहुल मंडली राहुल गांधी को शायद 2014 चुनाव से पहले ही प्रधानमंत्री बनाने का ताना-बाना बुन रही है। जिसमें जाने-अनजाने स्वयं डा. मनमोहन सिंह और तथाकथित साम्प्रदायिक भाजपा को रोकने के नाम पर सपा, बसपा, राजद और लोकदल आदि छद्म पंथनिरपेक्ष दल कांग्रेस के सहयोगी बनने जा रहे हैं। केन्द्र सरकार को भले ही प्रधानमंत्री के रूप में डा. मनमोहन सिंह चला रहे हैं, लेकिन यह लगने लगा है कि सोनिया गांधी की यह एक चाल और अस्थायी रचना है। सोनिया गांधी के पास कांग्रेस अध्यक्ष, संप्रग अध्यक्ष के साथ-साथ राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् अध्यक्ष का भी जिम्मा है। जब सब कुछ उन्हें ही करना है, तो फिर प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की क्या जरूरत है?-डा. उमेश मित्तलगंगोह रोड, सहारनपुर (उ.प्र.)खतरे को समझोसम्पादकीय “जनगणना में घुसपैठियों की पहचान हो” पढ़ा। भारत में जनगणना का कोई अर्थ नहीं रह गया। केवल औपचारिकता ही पूरी करनी हो तो बात अलग है। भारत की सभी सीमायें तो खुली हैं। घुसपैठियों ने न केवल भारत की जनसंख्या का समीकरण बिगाड़ दिया, अपितु भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी तहस-नहस कर दिया है। हमारे छद्म पंथनिरपेक्ष लोग केवल और केवल मात्र वोटों की खातिर चुप्पी साधे बैठे हैं। उन्हें राष्ट्र की नहीं, अपितु अपने सत्ता में बने रहने की चिन्ता है। हमें चिन्ता है कि हमारे राष्ट्र का क्या भविष्य होगा? हमारी आने वाली पीढ़ी की चिन्ता हमें सता रही है कि जिस प्रकार से हिन्दुओं की आबादी घट रही है इस प्रकार तो आने वाले समय में हिन्दू अल्पसंख्यक हो जायेंगे।-वीरेन्द्र सिंह जरयाल28-ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्ण नगर (दिल्ली)भावोत्तेजक लेखश्री बल्देव भाई शर्मा का लेख “बनी रहे भारत की हनक” बहुत विचारोत्तेजक तथा भावोत्तेजक लगा। कनाडा सरकार का भारतीय सेना के कुछ उच्च पदस्थ तथा सेवानिवृत्त अधिकारियों को यह कह कर वीजा न देना कि वे कश्मीर में मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं, मात्र वहां की स्थितियों से अज्ञानता तथा भारत को कम आंक कर उसका अपमान करना ही है। अमरीका, कनाडा तथा आस्ट्रेलिया आदि देशों में लगभग यूरोपीय लोग ही बस रहे हैं। उन्हें किसी भी देश पर दोषारोपण करने से पहले एक बार शीशे में अपना मुंह अवश्य देख लेना चाहिए। इन लोगों ने इन देशों पर अधिकार करने के लिए वहां के मूल वासियों से कैसा व्यवहार किया। अफ्रीका महाद्वीप में नीग्रो गुलामों पर किस प्रकार के भयंकर अत्याचार किए। भारत में जलियांवाला बाग में किस प्रकार गोलियां चला कर मानवता का संहार किया। मानवता के अधिकारों की बात करने वाले इन लोगों को उपरोक्त तथ्यों की जानकारी है?-अरुण मित्र324, राम नगर (दिल्ली)वोट की “छुट्टी”श्री मुजफ्फर हुसैन ने अपने लेख “देवबंदियों और बरेलवियों के बीच फतवा-युद्ध” में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की वोट-लोलुपता को उजागर किया है। मुसलमानों का वोट प्राप्त करने के लिए उन्होंने लालकिले से ईदे मिलादुल्नबी (हजरत मोहम्मद का जन्म दिवस) के अवसर पर छुट्टी की घोषणा की थी। जबकि इस अवसर पर अधिकांश इस्लामी देशों में भी छुट्टी नहीं होती है। विश्व में 54 मुस्लिम देश हैं, किन्तु सिर्फ छह देशों में हजरत मोहम्मद के जन्म दिवस पर छुट्टी रहती है।-सूर्यप्रताप सिंह सोनगराकांडरवासा, रतलाम (म.प्र.)द “फतवा युद्ध” शीर्षक से प्रकाशित लेख ने उस फतवे को भी ताजा कर दिया है जब देवबन्दी शाह अब्दुल अजीज और हाजी शरीयतुल्लाह ने भारत को दार-उल-हरब यानी दुश्मन देश घोषित कर दिया था। वह फतवा आज भी कायम है। यह सच्चाई है कि देवबन्दी इस्लाम के उसूलों को मूत्र्त रूप देने में बरेलवियों से ज्यादा सजग हैं। दुनियाभर के जिहादी देवबन्द से मार्गदशन लेते हैं।-क्षत्रिय देवलालउज्जैन कुटीर, अड्डी बंगलाझुमरी तलैया, कोडरमा (झारखण्ड)स्तरीय सामग्रीपाञ्चजन्य उत्तरोत्तर पठनीय, चिन्तनीय व संग्रहणीय होता जा रहा है। ऐसी ही स्तरीय सामग्री दें। जीनोम फाउण्डेशन के श्री लालजी सिंह के विचार अत्यंत विचारणीय हैं। प्रतिभा पलायन रुके, सही बात है। श्री देवेन्द्र स्वरूप का लेख “तो वैज्ञानिक भगवान बन गया” अत्यंत सुविचारित और पठनीय है। इसे बार-बार पढ़ा जा सकता है। देवबंदियों और बरेलवियों के बीच फतवा युद्ध मुसलमानों की दकियानूसी व मूढ़ विचारधारा को व्यक्त करता है।-डा. के.एल. व्यासएफ-1, रतना रेसीडेन्सीमहेश्वरी नगर, हैदराबाद (आं. प्र.)मणिपुरवासियो सावधान!पिछले दिनों पाञ्चजन्य में एक रपट “मणिपुर में राष्ट्रवादी बाहर, बंगलादेशी भीतर” पढ़ी। इसमें बताया गया है कि रिवोल्यूशरी पीपुल्स फ्रण्ट (आर.पी.एफ.) ने मणिपुर में रहने वाले अन्य राज्यों के निवासियों एवं नेपालियों को बाहर जाने की धमकी दी है। आर.पी.एफ. का कहना है कि इससे मणिपुर की रक्षा होगी। किन्तु मणिपुर छोड़ने वाले गैर-मणिपुरियों के घर-द्वार और अचल सम्पत्ति बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठिए औने-पौने दाम में खरीद रहे हैं। मणिपुर के लोगों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए, नहीं तो एक दिन उन्हें ही भागना पड़ेगा। कश्मीर का उदाहरण सामने है।-हरेन्द्र प्रसाद साहानया टोला, कटिहार (बिहार)महत्वहीन है जाति जनगणनादेश में जनगणना अभियान तेजी से चल रहा है। इसमें जाति आधारित जनगणना केन्द्र सरकार व कांग्रेस के गले की हड्डी बन रहा है। जाति-आधारित जनगणना महत्वहीन है। सब भारतीय हैं। किन्तु कांग्रेस “जाति” को वोट की दृष्टि से देखती है। चारधाम यात्रा के विवरण से देश की आध्यात्मिक एवं धार्मिक निष्ठा का पता चला। “देश की प्रतिभा देश में ही रहे” इसमें विदेश पलायन की प्रवृत्ति का निदान खोजने का प्रयास किया गया है। “पेड़ बाबा” शीर्षक से प्रकाशित समाचार का सन्देश है कि हम सब पेड़ लगाएं, उनकी रक्षा करें।-गोकुल चन्द गोयल85, इन्द्रा नगर, सवाई माधोपुर (राजस्थान)अंग्रेजी का गुणगान?संविधान को ताक पर रखकर केन्द्र सरकार कार्यालयों में अंग्रेजी चला रही है। उसने एक तरफ नौकरी हेतु अंग्रेजी की ललक बढ़ायी तो दूसरी तरफ अंग्रेजी की दुरूहता से करोड़ों छात्रों का भाग्य चौपट किया। अब कार्यालयों में गलत अंग्रेजी चल रही है। व्यावहारिक जीवन में अंग्रेजी के पतन का प्रमाण है कि हिन्दी के केवल एक अखबार (दैनिक जागरण) के पाठकों की संख्या अंग्रेजी के सभी अखबारों के पाठकों की संख्या से अधिक है। यदि सभी भारतीय भाशाओं के अखबारों की पाठक संख्या जोड़ दी जाए तो अंग्रेजी अखबारों की पाठक संख्या नगण्य हो जाती है। फिर भी अंग्रेजी का गुणगान किया जा रहा है।-विद्याधर पाण्डेय3/866 भारतीपुरम, प्रतिष्ठानपुर, प्रयागराज (उ.प्र.)पञ्चांगआषाढ़ कृष्ण – 8 – रवि – 4 जुलाई, 2010″” 9 सोम 5 “”””(तिथि वृद्धि) 9 मंगल 6 “””” 10 बुध 7 “””” 11 गुरु 8 “””” 12 शुक्र 9 “”(त्रयोदशी तिथि का क्षय) 14 शनि 10 “”जन-मन बेहालभीषण गर्मी से हुआ, है जन-मन बेहालपिछले वर्षों थी नहीं, जैसी है इस साल।जैसी है इस साल, दुपहरी कहां बिताएंघर में बैठे तो फिर रोटी कैसे खाएं ?कह “प्रशांत” फ्रिज-ए.सी. कुछ देते हैं राहतपर इनकी गैसों ने ही ढाई है आफत।।-प्रशांत16
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