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जैसे सूखा ताल बच रहे या कुछ कंकड़ या कुछ काई, जैसे धूलभरे मेले में चलने लगे साथ तनहाई। तेरे बिन मेरे होने का मतलब कुछ-कुछ वैसा ही है, जैसे सिफरों की कतार बाकी रह जाए बिना इकाई।-रमेश गौड़कुंकुम-सी निखरी कुछ भोरहरी लाज है बंसी की ओर बहुत कांप रही आज है, यों ही ना तोड़ अभी बीन रे सपेरे! जाने किस नागिन में प्रीति का उछाह हो। एक बार जाल फेंक रे मछेरे! जाने किसी मछली में बन्धन की चाह हो।-बुद्धनाथ मिश्र19
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