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विद्युच्चलं किं धनयौवनायु:।बिजली की तरह क्षणिक क्या है? धन, यौवन, और आयु।- शंकराचार्य (प्रश्नोत्तरी,

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Apr 7, 2010, 12:00 am IST
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दिंनाक: 07 Apr 2010 00:00:00

विद्युच्चलं किं धनयौवनायु:।बिजली की तरह क्षणिक क्या है? धन, यौवन, और आयु।- शंकराचार्य (प्रश्नोत्तरी, 30)रोको यह मौत का खेलजातिगत विद्वेष अब एक और जघन्य रूप में सामने आ रहा है। कुछ परंपरागत सोच के माने जाने वाले क्षेत्रों से निकलकर यह अब भारत की राजधानी दिल्ली में भी अपना विकराल रूप दिखाने लगा है। पिछले दिनों दो युवतियों और एक युवक, जिनमें एक दम्पत्ति था की नृशंस हत्या ने दिल्ली को दहलाकर रख दिया, इससे पूर्व गत दो माह में दिल्ली में ऐसी और भी कई हत्याएं हो चुकी हैं। इसके पीछे जातिगत उन्माद और अपनी जाति को श्रेष्ठ मानकर उसके बाहर विवाह करने वाले युवक युवतियों को उन्हीं के परिजन बड़ी बेरहमी से मौत के मुंह में धकेल देते हैं और उस पर शर्मिंदा होने या अफसोस जताने की बजाए मूंछें तानकर और सीना चौड़ाकर संकेत देते हैं कि उन्होंने ऐसा अपनी नाक बचाने के लिए किया। मीडिया ने इसे “ऑनर किलिंग” का नाम दिया है, लेकिन यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि जातिगत आधार पर कोई भी नृशंस हत्या सम्मान की प्रतीक नहीं हो सकती, वह एक सामाजिक बुराई है और किसी भी सभ्य व सुसंस्कृत समाज के माथे पर एक कलंक। किसी युवक-युवती के विवाह को लेकर कोई सहमत-असहमत हो सकता है, लेकिन बेरहमी से इस आधार पर उनकी हत्या कर देना कि इसकी जाति ऊंची है, उसकी नीची, इसलिए दोनों का विवाह करना किसी व्यक्ति विशेष या परिवार विशेष के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला है। यह जातिगत आधार का सबसे घृणास्पद रूप है। कई बार पुलिस और प्रशासन को भी इसकी ओर से उदासीन देखा जाता है, यह बेहद चिंताजनक है। इस संबंध में कानून को पूरी सतर्कता और कड़ाई से अपनी भूमिका निभानी चाहिए। सरकार का भी दायित्व है कि इसमें यदि कानून की कोई कमजोरी आड़े आती है तो उसे दूर कर कानून को सशक्त बनाए। और उसका सही क्रियान्वयन सुनिश्चित करे।जातिगत आधार पर ऊंच-नीच का आकलन कभी भारतीय जीवन पद्धति का अमीष्ट नहीं रहा। परकीय शासकों ने इन बुराइयों का समावेश कर हमारे समाज व देश को बांटने का जो षड्यंत्र किया उसे समझने व उसके परिष्कार के बजाय स्वतंत्रता के बाद देश की बागडोर संभालने वाले नेताओं ने वोट के लालच में जाति-पंथ के विभेद को कटुता की सीमा तक और बढ़ाया। इस तरह उन्होंने राष्ट्रीय व सामाजिक हितों को अपनी सत्तालोलुप राजनीति की भेंट चढ़ा दिया। पिछले दिनों कई दलों व नेताओं ने वर्तमान में चल रही जनगणना प्रक्रिया में जाति का आधार शामिल कराए जाने के लिए खूब हो-हल्ला मचाया, प्रधानमंत्री भी दृढ़तापूर्वक उसका विरोध नहीं कर पाए। स्पष्ट है कि इसके पीछे वोट की राजनीति काम कर रही है। नेताओं को यह ध्यान देना चाहिए कि सामाजिक सरोकारों को जाति-मत-पंथ के विभेदों की आग में नहीं झोंका जा सकता, बल्कि सामाजिक समरसता के माध्यम से इन विभेदों से ऊपर उठकर सामाजिक ऐक्य व राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया जाना ही देश के हित में है। कितने दुर्भाग्य की बात है कि आज सत्ताभिमुख राजनीति ठीक इसके विपरीत आचरण कर रही है और इन विभेदों को बढ़ावा मिल रहा है। राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में तो यह बुराई इस कदर है कि वहां जातिगत आधार पर जलस्रोतों का भी निर्धारण कर लिया गया है और जातियों के अपने-अपने कुएं हैं उन पर ताला रहता है कि दूसरी जाति के लोग वहां से पानी न ले सकें। कथित “ऑनर किलिंग” इस दुष्प्रवृत्ति का सबसे ज्यादा विकृत रूप है। समय रहते इस पर रोक लगानी जरूरी है, अन्यथा यह प्रवृत्ति और ज्यादा ध्वंसकारी साबित होगी। सामाजिक समरसता का भाव ही इस बुराई को परास्त कर सकता है, इसलिए उस भाव को और ज्यादा दृढ़ करने के उपक्रम होने चाहिए।5

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