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प्राचीनकाल से ही भारत भूमि पर अवतरित होते रहे अनेक संतों और महात्माओं ने न केवल इस देश को बल्कि संपूर्ण विश्व को आध्यात्मिक चेतना से समृद्ध किया है। संतों की इस समृद्ध परम्परा ने संवेदना की संस्कृति को जन्म देने और उसे विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। स्वयं घोर कष्ट और अभावों को सहते हुए इन संतों ने संपूर्ण मानव समाज को सद्मार्ग दिखाने और उसके उत्थान के लिए अपना जीवन आहूत कर दिया। हाल में ही प्रकाशित पुस्तक “भारत के महान संत” के माध्यम से डा. बलदेव वंशी ने अनेक संतों के परोपकारी जीवन का सांगोपांग वर्णन किया है।इस पुस्तक में कुल 31 संतों के जीवन दर्शन, उनके द्वारा दी गई शिक्षा और उपदेशों को रोचक तरीके से संकलित किया गया है। पुस्तक की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें किसी संत विशेष के जीवन दर्शन में निहित मुख्य उपदेश को व्याख्यायित करने पर अधिक ध्यान दिया गया है। यानी लेखक का उद्देश्य अपने पाठकों को केवल किसी संत के जीवन से परिचित कराना मात्र नहीं है बल्कि उनके आध्यात्मिक संदेश के सारतत्व को पाठक तक पहुंचाना भी है। कहा जा सकता है कि लेखक ने सर्वथा नई शैली का प्रयोग करते हुए भारत के महान संतों की चेतनापूर्ण वाणी को लोगों तक संप्रेषित करने का सफल प्रयास किया है।पुस्तक के पहले ही अध्याय “बुद्ध की महाकरुणा: प्रकृति की अश्रुभरी आंख” में भगवान बुद्ध के महाकरुणामय संदेश के जरिए लेखक ने आज की भयावह समस्याओं के समाधान का रास्ता सुझाया है। वे लिखते हैं- “यदि हम मानव जाति का भला चाहते हैं तो समय रहते बुद्ध और उनकी महाकरुणामय, आंसुओं से भीगी हुई आंख को याद कर शांत, सहअस्तित्व, दया, प्रेम, अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए।”आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व तमिलनाडु में जन्में संत तिरुवल्लुवर के उपदेशों को सारगर्भित रूप से प्रस्तुत करते हुए लेखक कहते हैं कि “संत तिरुवल्लुवर ने मानवीय समानता और शील को महत्व दिया। सच्चे अर्थों में वे विश्व मानवता के उद्गाता थे।” हिंदी के प्रथम कवि कहे जाने वाले अमीर खुमरो के विषय में लेखक बताते हैं कि उन्होंने भारतीय लोक जीवन में अतल तक डूबकर यहां के रीति-रिवाज, रहन सहन ही नहीं, अध्यात्म और चेतना के रंगों को ग्रहण किया था। इस अध्याय में खुसरो के जीवन से जुड़ी कई रोचक घटनाओं का भी वर्णन किया गया है।कबीर, रैदास, नानक, दादू और मलूकदास की निर्गुण भक्ति धारा के प्रवर्तक संत नामदेव, को भारतीय संत परम्परा का अग्रगण्य पूज्य संत माना जाता है। उनकी लौकिक और आध्यात्मिक चेतना यात्रा का वर्णन भी पुस्तक में सुरुचिपूर्ण ढंग से किया गया है। इसी क्रम में सामाजिक समरसता का संदेश देने वाले संत रविदास, मुक्ति के बाद भक्ति का उपदेश देने वाले संत ज्ञानेश्वर, प्रेम-भावना-संवेदना और पवित्रता को मानव जीवन का परम लक्ष्य बताने वाले संत कबीरदास, मानव-धर्म के उन्नायक रहे गुरु नानक देव और प्रेम का संदेश देने वाली संत मीराबाई के जीवन चरित्रों और उपदेशों को भी पुस्तक में संकलित किया गया है।कहा जा सकता है कि आज के विध्वंसकारी माहौल में भौतिकता, बाजारवाद, एकांगी वैश्वीकरण की स्वार्थी व्यवस्था को नष्ट करके संवेदना संपन्न विश्व का निर्माण करने में संतों की अमूल्य वाणी पूरी तरह कारगर सिद्ध हो सकती है। जरूरत है उसके लिए ईमानदारी से प्रयास करने की। इस दिशा में विचार करने के लिए यह पुस्तक प्रेरक सिद्ध होगी, इसमें संदेह नहीं। दपुस्तक का नाम – भारत के महान संत अनुवाद – डा. बल्देव वंशी प्रकाशक – प्रतिभा प्रतिष्ठान, नेता जी सुभाष मार्ग, नई दिल्ली मूल्य – 200 रु., पृष्ठ संख्या – 158, द विज्ञान भूषण23
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