|
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की निम्बाहेड़ा (चित्तौड़गढ़) इकाई द्वारा डा. भीमराव अंबेडकर की 119वीं जयंती की पूर्व संध्या पर गत 19 अप्रैल को स्थानीय आलोक विद्या मंदिर में एक विचार गोष्ठी एवं काव्य संध्या का कार्यक्रम आयोजित हुआ।कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री धर्म “अभिमन्यु” ने डा. अम्बेडकर के जीवन-दर्शन संबंधी विविध पहलुओं पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विषम परिस्थितियों के दौर से गुजरते हुए भी समाज एवं राजनीति में डा. अम्बेडकर ने जो आयाम स्थापित किए वे संकीर्ण मानसिकता व सोच के कारण संभव नहीं हो सकते थे। उनकी सार्वभौमिक सोच व विद्वता ही उन्हें इस मुकाम पर पहुंचा सकी।विशिष्ट अतिथि डा. नित्यानन्द द्विवेदी ने मनु, चाणक्य व डा. अम्बेडकर में समानता बताते हुए मनु स्मृति, चाणक्य नीति व अम्बेडकर के सूत्रों में साम्य स्थापित किया। उन्होंने बताया कि डा. अंबेडकर वर्ण व्यवस्था के खिलाफ नहीं थे, जैसा कि कुछ तथाकथित प्रगतिशील व जनवादी विचारकों द्वारा तुच्छ राजनीति करते हुए बताया जाता है। मुख्य अतिथि शिक्षाविद् श्री अरविन्द मूंदडा ने डा. अम्बेडकर की राजनीतिक व ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की जानकारी देते हुए वर्तमान में भी देश में अम्बेडकर जेसे व्यक्तित्व के अवतरण की कामना की, तो समाजसेवी व शिक्षाविद् श्री जानकी लाल जोशी ने डा. अम्बेडकर द्वारा संविधान में वर्णित विविध अधिकारों व कर्तव्यों की ओर उपस्थितजनों का ध्यान आकृष्ट किया।कार्यक्रम में काव्य की रसधारा बहाते हुए कवि श्री श्रीपाल सिसोदिया ने “एक तपस्वी ने सपना देखा, अभिनव भारत के निर्माण का” के माध्यम से डा. अम्बेडकर के मनोभावों को शब्दों के माध्यम से रेखांकित किया, तो कवि श्री गोपाल व्यास “वैभव” ने “भेदभाव की तोड़ श्रृंखला, समता सुमन खिलाओ” एवं “संविधान हमारा है, हम इसके पुजारी हैं” को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत कर श्रोताओं का मन मोह लिया।कार्यक्रम की अध्यक्षता परिषद् के इकाई अध्यक्ष श्री बी.सी. पाण्डेय “संतोष” ने की तथा संचालन परिषद् के सचिव श्री हीरालाल लुहार “हिन्द” ने बहुत ही प्रभावशाली ढंग से किया। द प्रतिनिधि32
टिप्पणियाँ