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थ् यू.जी.सी., एन.सी.टी.ई., ए.आई.सी.टी.ई. भंग की जाएं। थ् इनकी जगह राष्ट्रीय उच्च शिक्षा व अनुसंधान आयोग बने। थ् मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया, बार काउंसिल आफ इंडिया आदि की शक्तियां नियंत्रित की जाएं। थ् आई.आई.टी., आई.आई.एम. को विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जाए। थ् डीम्ड विश्वविद्यालय के नाम पर कार्यरत संस्थानों पर नकेल कसी जाए। थ् करीब डेढ़ हजार कालेजों का स्तर सुधारा जाए । थ् देशभर में केवल एक स्नातक परीक्षा हो जिसके माध्यम से सभी प्रवेश हों। थ् पैसा कमाने के लिए चलने वाले प्रबंधन, इंजीनियरिंग कालेजों की नकेल कसी जाए। थ् विश्वविद्यालय की मान्यता मानक पूरे होने पर ही दी जाए।आयोग के सुझावों पर देश-व्यापी बहस हो-प्रो. मिलिंद मराठे, अध्यक्ष, अभाविपकेन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री को गत 23 जून, 2009 को सौंपी गई यशपाल समिति की रपट के सुझावों से शिक्षा क्षेत्र में दूरगामी असर पड़ने की संभावना है इसलिए आयोग के सुझावों पर अविलंब देशव्यापी बहस कराई जानी चाहिए। यह कहना है अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के अध्यक्ष प्रो. मिलिंद मराठे का। उनका कहना है कि राष्ट्रीय उच्च शिक्षा और अनुसंधान आयोग के स्वरूप, कार्यों, कार्य क्षेत्र और जिम्मेदारियों पर सभी संबंधित पक्षों के विचार जानने चाहिए। इस तरह के आयोग का विचार पहली बार 1968 में कोठारी आयोग की रिपोर्ट में आया था। वर्तमान में जिस तरह के आयोग का प्रस्ताव है वह कुछ ज्यादा ही केन्द्रीकृत है जो उच्च शिक्षा क्षेत्र में अत्यधिक नौकरशाही और लाल फीताशाही जैसी दिक्कतें पैदा कर सकता है। अभाविप मानव संसाधन विकास मंत्री के उस प्रस्ताव से भी पूरी तरह सहमत नहीं है कि दसवीं कक्षा की परीक्षा वैकल्पिक कर दी जाए और नौवीं और दसवीं में अंकों की बजाय ग्रेड दिए जाएं। परिषद का मानना है कि क्रांतिकारी सुधारों के नाम पर वर्तमान तंत्र से छेड़छाड़ न की जाए। शिक्षा मंत्री का बिना राज्य शिक्षा मंत्रियों से सलाह लिए इस तरह के निर्णयों की घोषणा करना गंभीर विषय है। इस तरह का काम हमारे देश के संघीय ढांचे को देखते हुए गैर कानूनी है और बेवजह की जल्दबाजी दिखाता है। द9
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