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भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान सभी वर्गों का यथासंभव शोषण किया गया। उस शोषण के विरुद्ध अनेक आन्दोलनों के माध्यम से विरोध प्रकट किया जाता रहा कि उन आन्दोलन की तीव्रता कहीं ना कहीं अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ाती रही। रूप सिंह भील द्वारा रचित पुस्तक “अंग्रेजी शासन में सामंती शोषण एवं जनजातीय भगत आंदोलन” द्वारा अंग्रेजों के शोषण के विरुद्ध जनजातीय समाज को आंदोलित करने वाले गोविन्द गुरु का वर्णन किया गया है। गोविन्द गुरु ने 19वीं सदी के पूर्वाद्र्ध में जनजातीय समाज की अस्मिता की रक्षा व देश की स्वतंत्रता के लिए राजशाही व अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया। जिसका परिणाम 17 नवम्बर, 1913 को मानगढ़ नरसंहार के रूप में सामने आया। इसका उल्लेख पुस्तक के नवें अध्याय में विस्तृत रूप से किया गया है।गोविन्द गुरु ने भीलों को अंधविश्वास व रूढ़ियों, आर्थिक, राजनीतिक दासता तथा शोषण से मुक्त कराने के लिए बहुआयामी संघर्ष किया था। इस पुस्तक के द्वारा गोविन्द गुरु की जीवनी, भगतपंथ-एक समग्र आन्दोलन, मानगढ़ नरसंहार, इनके विरुद्ध अभियोग एक दुर्लभ पत्र सहित गोविन्द गुरु के जीवन के अनेक पहलुओं को जानने का अवसर मिलता है।पुस्तक के चौथे अध्याय “गोविन्द गुरु का जीवन परिचय” में गुरु की पारिवारिक पृष्ठभूमि, स्वामी दयानन्द से संपर्क, मेवाड़प्रवास, महात्मा गांधी से भेंट, धार्मिक दीक्षा, गोविन्द गुरु की गिरफ्तारी, गुरु को फांसी का दण्ड, स्वराज पक्ष से संबंध व पुन: गिरफ्तारी के बारे में उल्लेख किया गया है। पुस्तक के पांचवें अध्याय “भगत पंथ”: एक समग्र आन्दोलन के अन्तर्गत गोविन्द गुरु के धार्मिक विचारों और विश्वासों को उद्धृत किया गया है, जिसके अनुसार “गोविन्द गुरु ने कर्म के सिद्धान्त में अटूट विश्वास प्रकट किया है। वे कहते हैं कि उनके पूर्व कर्मो का फल उनको इसी तरह भुगतना पड़ेगा जैसा कि एक पिता को अपने पुत्र के लिए भुगतना पड़ता है। गुरु का तो परामर्श यही है कि जो कोई धर्म का पालन करता है उसे मोक्ष मिलेगा। वे कबीर को उद्धृत करते हुए कहते हैं कि जो कुछ कर्म हम करते हैं उसका फल कभी न कभी तो मिलेगा। हमारे कर्म हमारा पीछा नहीं छोड़ते भले ही हम सैकड़ों कोस दूर चलें जाएं।गोविन्द गुरु ने अपने भजनों के माध्यम से चार युगों- त्रेता, द्वापर, कलियुग व सतयुग और मिथक का उल्लेख किया है। वैदिक शास्त्रों में युगों की कालगणना के जो सिद्धान्त दिए गए हैं, उनके बारे में वे अनभिज्ञ थे। लेकिन उन्हें आध्यात्मिक अनुभूति थी। उन्होंने यह आभास दिया कि सतयुग आने वाला है जिसमें भील जनजाति का उद्धार होगा। (पृष्ठ संख्या-42, 43)गोविन्द गुरु के धार्मिक उपदेश सीधे-सादे थे। उनमें किसी तरह का तात्विक आडम्बर नहीं था। जैसे कि (1) प्रात: काल नियमित रूप से स्नान करना (2) सूर्य दर्शन करना, राम का नाम जपना व सत्संग करना (3) झूठ नहीं बोलना (4) व्यभिचार नहीं करना (5) शराब व मांस का सेवन नहीं करना, आदि (पृष्ठ संख्या-45, 46)सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध प्रहार उन्होंने कुछ इस प्रकार किया है:- उन्होंने तात्कालिक हिन्दू जाति-व्यवस्था विशेषकर राजपूत व ब्राह्मण समुदायों व मुसलमानों में व्याप्त सामाजिक जड़ता व बुराइयों की कटु आलोचना की। राजपूतों द्वारा लड़कियों की हत्या करना, विधवा हुई युवतियों के पुनर्विवाह की मनाही व बाल विधवा व्यवस्था को मान्यता प्रदान करना, गोविन्द गुरु के अनुसार यह सब जघन्य अपराध व पाप है। गोविन्द गुरु के अनुसार इन सामाजिक कुरीतियों के लिए अंग्रेज सरकार भी दोषी है क्योंकि सर्वभौम सत्ता उसमें निहित थी और वे इस तरह के अपराधों की उपेक्षा करते हैं। दपुस्तक का नाम : अंग्रेजी शासन में सामंती शोषण एवं जनजातीय भगत आंदोलन (गोविन्द गुरु का योगदान) लेखक रूपसिंह भील प्रकाशक : सुरुचि प्रकाशन केशव कुंज, झण्डेवाला नई दिल्ली-110055 पृष्ठ : 136 – मूल्य : 65 रुपए19
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