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एस.आई.टी. की रपट के बाद यह साफ हो गया है कि गुजरात दंगों के बाद तीस्ता जावेद सीतलवाड़ ने नरेन्द्र मोदी, भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आदि को बदनाम करने की हरसंभव कोशिश की। सर्वोच्च न्यायालय के सामने उन्होंने झूठ तो बोला ही, साथ ही विदेशों में भी झूठी कहानियों के आधार पर देश की छवि खराब की। शायद इसके पुरस्कारस्वरूप ही संप्रग सरकार ने उन्हें 2007 में पद्मश्री से सम्मानित किया। विदेशों में भी उन्हें एस ए थामस मानवाधिकार पुरस्कार, न्यूरेनबर्ग ह्रूमन राइट्स पुरस्कार (2003), 2006 में ननी पालखीवाला पुरस्कार, डिफेंस आफ डेमोक्रेसी जैसे पुरस्कारों से नवाजा गया। तथाकथित मानवाधिकार की लड़ाई लड़ने के कारण ही तीस्ता को ये पुरस्कार मिले। अब सवाल उठता है कि झूठ के सहारे मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली तीस्ता जावेद सीतलवाड़ को मिले पुरस्कार क्या वापस होंगे? 5 फरवरी, 2009 को अंग्रेजी दैनिक “पायनियर” में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार तीस्ता जावेद सीतलवाड़ और माकपा ने गुजरात दंगों के गवाहों को बयान देने के लिए पैसे दिए थे। किसी को 1 लाख रुपए, तो किसी को 50 हजार रुपए दिए गए थे। पायनियर (20 दिसम्बर, 2008) के अनुसार गैर सरकारी संगठन “सिटीजन्स फार जस्टिस एण्ड पीस”, जिसकी अध्यक्ष तीस्ता जावेद सीतलवाड़ हैं, ने गुजरात दंगों के विभिन्न दस मामलों के गवाहों को एक-एक लाख रुपए दिलाने की व्यवस्था कराई थी। यह राशि माकपा राहत कोष से आई थी तथा दंगों के लगभग 5 साल बाद गवाहों को अदालत में पेश होने के पहले दी गई थी। धन बांटने के लिए एक समारोह 26 अगस्त, 2007 को अमदाबाद में हुआ था। इसमें माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य वृन्दा करात, तीस्ता जावेद सीतलवाड़ और “सिटीजन्स फार जस्टिस एण्ड पीस” के मुख्य समन्वयक रईस खान उपस्थित थे। प्राप्त विवरण के अनुसार 1 अगस्त, 2007 की तारीख में बने 567540 से लेकर 567554 नम्बर तक के 14 डी.डी. दंगा पीड़ितों को तीस्ता, वृन्दा एवं रईस खान द्वारा बांटे गए थे।8
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