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धर्म का अस्तित्व और उसकी संकल्पना लगभग उतनी ही पुरातन है जितना कि मानवीय इतिहास। इसका प्रादुर्भाव भी इसीलिए हुआ था जिससे मानव जीवन की सुख-शांति में वृद्धि हो सके। वह निरंतर नैतिकता का पालन करते हुए उत्तरोत्तर उत्कर्ष की ओर अग्रसर हो सके। महात्मा बुद्ध ने भी धर्म को परिभाषित करते हुए कहा था- “धर्म वही है जिसमें सभी प्राणियों का सुख और हित सम्मिलित हो।” पर इसे हमारी विडंबना ही कहना चाहिए कि हजारों वर्ष की सभ्यता विकसित होने के बाद भी धर्म की आत्मा में निहित “मानव मात्र के कल्याण” का भाव गौण हो चुका है। ऐसी विषम परिस्थितियों में यह बहुत आवश्यक हो जाता है कि समाज का बुद्धिजीवी वर्ग धर्म के मर्म को न केवल स्वयं समझे बल्कि उसकी महत्ता, प्रासंगिकता और समयानुसार उसके स्वरूप में आवश्यक परिवर्तन के विषय में आम जन को बताए। परमात्मा स्वरूप द्वारा रचित पुस्तक – “भारत का धार्मिक इतिहास” इस दिशा में किया गया एक सार्थक प्रयास कहा जा सकता है। यद्यपि पुस्तक में समाहित तथ्यों और आकड़ों में बहुत शोधपरक और लाभप्रद जानकारियां दी गई हैं तथापि यदि इनको व्यवस्थित और अच्छी तरह संपादित कर दिया जाता तो निश्चित रूप से यह पुस्तक और भी अधिक प्रभावशाली बन सकती थी।बहरहाल, लेखक ने पुस्तक के माध्यम से भारत की समृद्ध धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक सभ्यता की महत्ता को वैश्विक पटल पर सिद्ध करने का प्रयास किया है। पहले अध्याय में लेखक ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उपजे अनेक पंथों के संबंध में संक्षिप्त जानकारी देने के साथ ही विदेशी आक्रमणकारियों (जैसे- शक, हूण, कुशाण) के भारत भूमि पर आक्रमण और उसके प्रभाव को भी रेखांकित किया है। इसी अध्याय में यूनान के आदि कवि होमर के प्रसिद्ध ग्रंथ “इलियड” और महर्षि बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण की रोचक तुलना की गई है। पुस्तक के अगले अध्याय “भारत या हिंदुइज्म” में लेखक ने अपने गहन अध्ययन, चिंतन और मनन के फलस्वरूप हिन्दुत्व के मूल में संस्थापित उस तत्व को उभारने का प्रयास किया है जो समस्त मानव समाज की शांति, स्वतंत्रता और सुखमय जीवन बनाने को प्रेरित करता है। इसके अतिरिक्त पुस्तक में बौद्ध धर्म के उद्भव, उसके विकास के सोपान , उसकी प्रमुख शिक्षाओं , उसकी उन्नति के कारणों पर भी विस्तार से चर्चा की गई है। इसी तरह जैन धर्म के प्रवर्तन और बौद्ध धर्म के साथ उसका तुलनात्मक अध्ययन बहुत सी नई धारणाओं को जन्म देने वाला है। इस्लाम की प्रवृत्तियों और शिक्षाओं पर भी शोधपरक जानकारी पुस्तक को और भी महत्वपूर्ण बनाती है। कहना होगा लेखक ने इस पुस्तक के माध्यम से न केवल भारत में हुए धार्मिक विकास के इतिहास को सामने लाने का प्रयास किया है बल्कि धर्म को सर्वथा नए अर्थों में मूल्यांकित किया है। दपुस्तक – भारत का धार्मिक इतिहास लेखक – परमात्मा स्वरूप प्रकाशक – वैशाली प्रकाशन, सी-15/631, पाण्डव गली, मौजपुर, दिल्ली-53 मूल्य – 150 रु20
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