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देश में 14वीं लोकसभा का सत्रावसान हो गया है 15वीं लोकसभा के रूप में देश का नेतृत्व निर्वाचित किए जाने की तैयारी है। लेकिन भारत के राष्ट्रीय नेतृत्व की कसौटी क्या हो, यह विचार किया जाना बहुत आवश्यक है। क्या एक स्वाभिमानशून्य और सत्तालोलुप नेतृत्व देश को एक सशक्त और स्वाभिमानी राष्ट्र के रूप में खड़ा कर सकता है? मनमोहन सिंह की सरकार ने बीते 5 वर्षों में यही छाप छोड़ी है, चाहे देश की आंतरिक सुरक्षा का प्रश्न हो या भारत की संप्रभुता और एकता-अखंडता का, संप्रग सरकार के खाते में नकारात्म अंकन ही आएगा। राष्ट्रीय नेतृत्व की स्वाभिमानशून्यता का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि जब उड़ीसा में चर्च के गुण्डों ने स्वामी लक्ष्मणानंद जी की हत्या कर दी तो सरकार की संवेदनाएं सुप्त रहीं और जब प्रतिक्रियास्वरूप इसके विरुद्ध भड़के जनाक्रोश की चपेट में चर्च और ईसाई आने लगे तो इसके विरुद्ध इटली, फ्रांस जैसे कई यूरोपीय देशों ने भारत पर दबाव बनाया। उस समय फ्रांस यात्रा पर गए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सार्वजनिक रूप से इस पर शर्मिंदगी जताई। निश्चिय ही प्रधानमंत्री की उस हरकत से देश का सिर शर्म से झुक गया कि उन्होंने न केवल विदेशी शक्तियों को देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की छूट दे दी, बल्कि चर्च की गुण्डागर्दी के लिए उन्हें लताड़ने की बजाय माफी मांगने लगे।वास्तव में संप्रग सरकार ने अपने कार्यकाल में भारत की छवि एक अशक्त राष्ट्र की बना दी, जिससे पाकिस्तान पोषित जिहादी आतंकवादियों को तो भारत एक कमजोर निशाना दिखने ही लगा और वे हमारे घर में आकर हम पर वार पर वार करते रहे, दूसरी ओर हमारे पड़ोसी देशों में भी हम पर हावी होने की प्रवृत्ति बढ़ती गई। चीन अरुणाचल तक घुस आया, उसे अपना क्षेत्र बता रहा है, लेकिन भारत का नेतृत्व बेखबर है। नेपाल, पाकिस्तान और अब श्रीलंका में भारत को घेरने की नीयत से चीन ने मोर्चेबंदी कर दी है, उन्हें हथियार और आर्थिक मदद देकर भारत के खिलाफ उन्हें उकसा रहा है। लेकिन भारत कूटनीतिक स्तर पर पूरी तरह विफल दिख रहा है, पाकिस्तान तो जन्म से ही भारतद्रोही है, लेकिन नेपाल और श्रीलंका का सुर भी तेजी से बदला है। बंगलादेश तो उसी पाकिस्तान का अंश है, उसने कृतघ्नतापूर्वक भारत के अवदान को भुला दिया और वहां हूजी व उल्फा जैसे तत्व प्रश्रय पाकर भारत पर चोट कर रहे हैं। पाकिस्तान इसमें उसकी सब प्रकार की मदद कर रहा है। भारत के पड़ोस का विरोधी परिदृश्य भविष्य में कितना संकटपूर्ण हो सकता है, इसे समझना और इसका सम्यक समाधान निकालना 15वीं लोकसभा से निकले राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। लेकिन राष्ट्र के प्रति उद्दाम भावनाओं से आपूरित नेतृत्व ही इसमें सफल हो सकता है। जब उसके प्रयासों से भारत एक सशक्त व स्वाभिमानी राष्ट्र के रूप में खड़ा होगा तभी उसका कूटनीतिक चातुर्य भी प्रतिष्ठा पाएगा। एक कमजोर और याचक राष्ट्र की कूटनीति तिरस्कृत ही होती है, यह मुम्बई हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सबूत लेकर घूम रहे भारत के मौजूदा नेतृत्व की विफलता ने जता दिया है।5
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