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मन में दृढ़ विश्वास को लेकर जब कोई व्यक्ति आगे बढ़ता है, तो उसे सफलता मिलती ही है। इसका मैंने अपने जीवन में प्रत्यक्ष अनुभव किया है। यदा-कदा मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला भी ऐसी बात कह जाती हैं, जिनसे मेरे जीवन में कई सकारात्मक परिवर्तन भी आए।एक बार मेरी पत्नी ने एक बड़ी अच्छी बात कही, जिसकी मैं यहां चर्चा करना चाहूंगा। दरअसल, हम कुछ मित्रों के साथ सालभर में कई धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते थे। इसके लिए नगर में घूम-घूमकर धन-संग्रह भी करते थे। सन् 1996 में माता आनन्दमयी एवं सुभाषचन्द्र बोस का शताब्दी उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। उत्सव के पूर्व अर्थ-संग्रह के निमित्त हम अपने कुछ सहयोगियों के साथ नगर के एक सज्जन के यहां गए। उन सज्जन ने उस समय अर्थ दिया तो नहीं पर दूसरे दिन देने का आश्वासन दिया। हम सभी यह सोचकर वापस आ गए कि अब कल ही अर्थ-संग्रह प्रारम्भ करेंगे। वापस लौटने पर मेरी पत्नी के पूछने पर मैंने उन्हें सारी बात बता दी। उन्होंने मुझसे कहा कि यदि आपके पास उत्सव के खर्च के लिए धन की व्यवस्था नहीं है तो मांगकर उत्सव करना जरूरी है क्या? यह बात मुझे जंच गई और मैंने अर्थ-संग्रह का विचार ही त्याग दिया। किन्तु प्रभु की ऐसी कृपा हुई कि बिना मांगे ही अर्थव्यवस्था हुई और कार्यक्रम सफल रहा। इसके बाद मैंने किसी भी उत्सव के लिए अर्थ-संग्रह करना छोड़ दिया, किन्तु आश्चर्य यह है कि सारे उत्सव अब भी धूमधाम से मना रहे हैं।-प्रभुदयाल झुनझुनवालाडा- चाकुलिया, पूर्वी सिंहभूम (झारखण्ड)17
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