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अर्थनीति में हो जन-जन की चिन्ताद डा. बजरंग लाल गुप्ताक्षेत्र संघचालक, उत्तर क्षेत्र, रा.स्व.संघअभी तक देश में जो अर्थनीति और आर्थिक व्यवहार चलता रहा है, उसमें कुछ दोष हैं। पहला, सरकार हमेशा से ही देश के सामने आंकड़ों और सकल घरेलू उत्पाद के औसत का चित्र प्रस्तुत करती रही है। औसत को बढ़ता हुआ दिखाकर यह मान लिया जाता है कि देश खुशहाल हो रहा है, राष्ट्रीय आय भी बढ़ती दिख रही है। लेकिन देश के निचले तबके का व्यक्ति खुशहाल नहीं है, उसकी आय नहीं बढ़ती। राष्ट्रीय आय तो बस संपन्न व अधिक आय वाले लोगों की आमदनी बढ़ने पर बढ़ती हुई दिखती है। यह केवल औसत और आंकड़ों के आधार पर निकाला गया निष्कर्ष होता और उसके आधार पर बनाई जाने वाली नीतियां देश के समग्र विकास का माध्यम नहीं बन पाती हैं।भारतजब भूमण्डलीकरण की चर्चाएं चलती थीं, उस समय यह बात कही गई थी कि भूमण्डलीकरण को पूर्णतया अपना लेना भारत की अर्थव्यवस्था के लिए हितकारी नहीं है। तब लोग इस बात से सहमत नहीं होते थे। लेकिन अभी जो वैश्विक मंदी आई है, उसके बाद भी भारत जैसी अर्थव्यवस्था बची रही। इसका एक कारण यह भी है कि हमने भारतीय अर्थव्यवस्था को भूमण्डलीकरण के साथ पूरी तरह नहीं जोड़ा। अगर जोड़ लिया होता तो भारतीय अर्थव्यवस्थायह सच है कि आज हम किसी भी तरह अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों को नकार नहीं सकते। दुनिया के देशों के साथ हमारे व्यापार भी चलेंगे और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध भी। लेकिन भूमण्डलीकरण का चेहरा बदलने की जरूरत है, जिससे एक न्यायसंगत वैश्वीकरण का रूप सामने आए। इसमें सभी देशों को बराबरी की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। वर्तमान में भूमण्डलीकरण विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से विकासशील देशों की स्वतंत्रता का हनन कर रहा है, यह हमारे देश के लिए ठीक नहीं है।आर्थिक क्षेत्र में एक और विषय पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। देश में जो ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना चली इसका भी पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। पिछले कई वर्षों से चल रही नरेगा योजना के द्वारा जिन परिवारों को 100 दिन का रोजगार दिया गया उनमें से कितने परिवार गरीबी रेखा से ऊपर उठे। उन परिवारों का आकलन सरकार को देश की जनता के सामने रखना चाहिए कि इसके लिए जितनी राशि व्यय की गई, उससे क्या नतीजे सामने आए। सरकार को यह बताना चाहिए कि जिन परिवारों को उसने सौ दिन का रोजगार दिया था क्या वे गरीबी रेखा से ऊपर उठ चुके हैं या फिर सौ दिन का रोजगार देना ही सरकार का उद्देश्य था। मुझे ऐसा लगता है कि इस सम्पूर्ण योजना के संबंध में भी पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। अन्यथा यह राष्ट्रीय धन का दुरुपयोग ही होगा। द5
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