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साध्वी ऋतम्भरा को “वीरांगना सम्मान”मध्य प्रदेशप्रतिनिधिप्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की 151 वीं वर्षगांठ पर आयोजित बलिदान मेला में इस वर्ष का वीरांगना सम्मान प्रख्यात साध्वी ऋतंभरा जी को दिया गया। अपनी स्थापना का एक दशक पूरा कर रहे वीरांगना बलिदान मेला के दो दिवसीय विभिन्न आयोजनों में ग्वालियर एवं चंबल संभाग के हजारों देशभक्तों ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए।उल्लेखनीय है कि ग्वालियर स्थित रानी की समाधि के सामने उसी रणभूमि पर, जहां 18 जून, 1858 को रानी की सहेली वीरांगनाओं ने फिरंगियों सहयोगी सेना से लड़ते-लड़ते अपना बलिदान किया और लक्ष्मीबाई की रक्षा में गंगादास शाला के 745 संतों ने अपनी आहुति दी। उसी स्थान पर वीरांगना बलिदान मेला लगाने का संकल्प सन् 2000 में तत्कालीन सांसद जयभानसिंह पवैया ने लिया। गैर राजनीतिक मंच पर संस्थापक अध्यक्ष के नाते उनकी अगुआई में देश के सबसे बड़े शहीदी मेले का रूप ले चुके इस राष्ट्रीय आयोजन के प्रमुख समारोह में म.प्र. के संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने वात्सल्य ग्राम की संकल्पना एवं स्थापना के लिए दीदी मां साध्वी ऋतंभरा को वीरांगना सम्मान (2009) से सम्मानित किया। समारोह में कश्मीर में आतंकवाद के विरुद्ध हिन्दी और हिन्दुस्थान का अभियान चलाने वाली डा.दरक्षा आंद्रावी को भारत भक्त सम्मान प्रदान किया गया। पिछले वर्षों में खेल के क्षेत्र में पी.टी. उषा व संसदीय जनतंत्र में प्रभावी भूमिका के लिये श्रीमती नजमा हेपतुल्ला को वीरांगना सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।बलिदान मेला का सबसे बड़ा आकर्षण 18 जून को 118 पात्रों द्वारा मंचित “खूब लड़ी मर्दानी” नाट्य रहा, जिसमें जीवित घोड़ों पर सन् 57 के समर को जीवंत बना दिया गया। समारोह में सरहद के शहीदों के परिजनों और क्रांतिवीर तात्या टोपे के प्रपौत्र को भी अभिनंदित किया गया। मेले में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में देश के नामचीन कवियों सोम ठाकुर, विनीत चौहान, रामेन्द्र तिवारी, विष्णु सक्सेना, मनवीर मधुर, प्रवीण शुक्ल, शशिकांत “शशि” आदि के काव्य पाठ में हजारों श्रोताओं की उपस्थिति रही।17 जून को झांसी दुर्ग से स्वतंत्रता सेनानियों के नेतृत्व में आई शहीद ज्योति यात्रा की 101 संतों ने मशाल लेकर पैदल आगवानी की। वहीं रानी के हाथों चले मौलिक शस्त्रों को जनता के दर्शनार्थ प्रदर्शनी में रखा गया व स्वराज संस्थान ने “कलम के सिपाही” नाम की ऐतिहासिक प्रदर्शनी लगाई। पं. बिस्मिल कीशहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेलेवतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।द23
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