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अभिनंदनीय अनुष्ठानमुम्बई से श्री मुरलीधर पाण्डेय के सम्पादन में बारह वर्षों से निकल रही साहित्यिक त्रैमासिकी “संयोग साहित्य” (204/ए, चिंतामणि, आर.एन.पी.पार्क-काशी विश्वनाथ मंदिर के सामने, भायंदर पूर्व, मुम्बई-401105 मूल्य रु.15) ने सन् 2009 का अपना पहला अंक उत्तर प्रदेश काव्य विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया है। इसके अतिथि सम्पादक रहे डा. प्रतीक मिश्र पिछले दिनों एक साहित्यिक यात्रा में पड़े ह्मदयाघात से असमय ही काल कवलित होने से पूर्व अपने सम्पादकीय दायित्व को बाखूबी निभाते हुए लगभग समग्र सामग्री का संकलन कर चुके थे। सन् 1985 में “कानपुर के कवि” जैसी ऐतिहासिक महत्व की सुचर्चित काव्य कृति का सम्पादन करने वाले वरेण्य गीतकार, समर्थ गजलगो और सुवंदित शोध मनीषी डा.प्रतीक मिश्र के द्वारा प्रस्तुत यह अंतिम साहित्यिक कार्य वस्तुत: एक अभिनंदनीय सारस्वत अनुष्ठान है जो विविध विधाओं में सर्जनारत उत्तर प्रदेश के 252 रचनाकारों के प्रतिनिधि साहित्यिक कर्म को हमारे समक्ष रखकर एक प्रकार से युगवाणी को आकारित करता है।बहुत कुछ है जिसे कहनासहज संभव नहीं होता,कोई होगा नहीं जिसको कियह अनुभव नहीं होता।कभी हिमपात के मारेसुमन घायल नहीं खिलते,विहंगों का कभी दावाग्नि मेंकलरव नहीं होता।वरिष्ठ रचनाकार भारत भूषण का यह आत्मकथ्य हर सह्मदय को द्रवित करने में समर्थ है-गोधूलि मंडित सूर्य हूंखण्डित हुआ वैदूर्य हूंमेरा करेंगे अनुसरणकिसके चरण, किसके चरण।अब खोजनी है आमरणकोई शरण कोई शरणनवगीत की शक्तिमत्ता का एक रूप यश मालवीय में द्रष्टव्य है-मुद्राएं त्योरी वालीएक सांस सौ-सौ गाली,हमको तो आदत इसकीपेट बजाएं या ताली।हम तो सिर्फ नमस्ते हैं।और अंत में, डा.मधुर नज्मी के दो अशआर-मुझमें जबसे बुलंदियां आर्इं,मेरे लहजे में नर्मियां आर्इं,वक्त के तानसेन को सुनने,दूर जंगल से हिरनियां आर्इं।द21
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