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स्वप्रचार में करोड़ों स्वाहा”स्लमरसिक”बड़ा धमाल मचा। खूब धमाचौकड़ी हुई। भारत के कीचड़ को विदेश में चन्दन बनाकर माथे पर लगा लिया गया, हालांकि मंशा थी भारत के हीन पक्ष को प्रदर्शित करने की। इसके लिए मूल कथा में परिवर्तन कर उसमें साम्प्रदायिक दुर्भावना, वर्ग भेद, प्रशासनिक अत्याचार और अव्यवस्था को “उजागर” किया गया। “स्लमरसिकों” ने इस कथा या पटकथा को “स्लमडॉग” की संज्ञा क्यों दी? क्या वे यह दर्शाना चाहते हैं कि “स्लम” में रहने वाले “डॉग” होते हैं? या इसलिए कि “स्लम” और “डॉग” उनकी चेतना पर समान रूप से हावी हैं? भारत के नगरों में “स्लम” के मुख्य आवासी हैं बंगलादेशी घुसपैठिए। भारत के स्लम उनके स्वर्ग हैं। रहने को घर नहीं, खाने को अन्न नहीं, करने को काम नहीं। इसके बावजूद शरियत के अनुसार, हर साल बच्चा पैदा करना जरूरी। भारत आने पर इस टिड्डी दल को रहने के लिए “स्लम”, करने को चोरी-चकारी और खाने को वह अन्न मिल जाता है जिसे भारत के किसान पसीना बहा कर पैदा करते हैं। इसके अलावा इनकी “औकात” में भी इजाफा हो जाता है। भारत के राष्ट्रविरोधी राजनीतिक दल इन्हें अपना वोट बैंक बना लेने को आतुर रहते हैं। चुनाव में प्रत्याशी बनकर खड़े भ्रष्ट राजनेताओं से क्षुब्ध भारतीय जनता जब मतदान से रूठकर घर बैठी रह जाती है, उस समय ये “स्लमडॉग” उन मक्कारों को जिताने में कतारबद्ध हो जाते हैं जो इन्हें गैरकानूनी रास्ते से, अनियमित रूप से “राशनकार्ड” या बैंक खाता या नौकरी या भारत की नागरिकता तक दिलाकर देश को रसातल में पहुंचाने की तैयारी कर चुके होते हैं। “स्लमरसिकों” को चाहिए कि अपने प्रिय “स्लमडॉगों” के जीवन के इन पक्षों पर भी दृष्टिपात करें। मेरा सुझाव है कि वे अपनी आगामी फिल्म पन्द्रहवीं लोकसभा चुनाव के बाद बनाएं। उन्हें बहुत मसाले मिल जायेंगे। वे यह चित्रित कर सकते हैं कि चुनाव में “स्लमडॉगों” की क्या भूमिका रही। हालांकि अगर उन्होंने सच चित्रण कर दिया, अगर उनकी फिल्म में इस यथार्थ का चित्रण हो गया कि भारत में “स्लम” संस्कृति के जनक कौन हैं, अगर उन्होंने यह दिखा दिया कि यहां के वोट संतुलन को बिगाड़ने में इन “स्लमडॉगों” का कितना हाथ था, अगर उनकी फिल्म में यह सच्ची बात प्रकट हो गयी कि इन “स्लमों” से इस्लामी आतंकवाद को भी मदद मिल रही है- अगर भारत के पक्ष में एक भी सच्ची बात उनकी फिल्म में आ गयी तो खतरा है। खतरा यह है कि उनकी वह फिल्म किसी आस्कर-फास्कर के लिए नामांकित होने के स्तर पर भी नहीं पहुंच पायेगी।-सुधा20, अम्बलत्ताडुअय्यर, स्ट्रीट, पांडिचेरी-605001मंथन में श्री देवेन्द्र स्वरूप ने अपने आलेख “इस देश का यारो क्या होगा” में देश की वर्तमान स्थिति को रेखांकित किया है। लोकसभा में जनता के पैसों की बर्बादी पर चिन्ता व्यक्त करने वाला कोई नहीं है। संसद में देश की विभिन्न समस्याओं- आतंकवाद, गरीबी, बेरोजगारी आदि पर चर्चा होनी चाहिए। किन्तु हमारे प्रतिनिधियों को सिर्फ अपने स्वार्थ दिख रहे हैं। अभी चुनावी मौसम है। लोग नेताओं से वचन लें कि चुनाव जीतने पर वे संसद में बेवजह हंगामा नहीं करेंगे।-मनोहर “मंजुल”पिपल्या-बुजुर्ग, पश्चिम-निमाड़ (म.प्र.)द मंथन से पाठकों को मार्गदर्शन मिला है। आज स्थिति यह हो गई है कि राष्ट्र और समाज की ओर ध्यान किसी का भी नहीं है। यदि समाज जागरूक होता तो न आतंकवाद पनपता और न ही आर्थिक संकट आता। आज घर का भेदी लंका ढाह रहा है। परन्तु लोग उसे समझ नहीं पा रहे हैं। हमारे मतदाता अभी तक इतने सचेत नहीं हैं कि वे अच्छे-बुरे की पहचान कर सकें। हर व्यक्ति स्वार्थ को आधार मानकर राजनीतिज्ञों के हाथों कठपुतली बन जा रहा है।-लक्ष्मी चन्दगांव-बांध, डाक-भावगड़ी, जिला-सोलन (हि.प्र.)द मंथन बड़ा सामयिक लगा। नेताओं के शाही खर्चे का ब्योरा दिया गया है। अखबारों में विज्ञापन देकर सत्तारूढ़ गठबंधन के नेताओं ने स्वप्रचार में करोड़ों स्वाहा कर दिया। इससे जनता को क्या मिला? फिर यही नेता इन दिनों चुनाव मैदान में हैं। इसलिए स्वाभाविक रूप से सवाल उठता है कि इस देश का यारो क्या होगा?-महेन्द्र नागपाल1डी-58, एन.आई.टी., फरीदाबाद (हरियाणा)…सब जायज हैश्री बल्देव भाई शर्मा का सामयिक एवं विचारोत्तेजक आलेख “बस कुर्सी की कवायद” तथाकथित सेकुलर नेताओं के उस कलुष को पूर्णतया उजागर कर देता है जो पंथनिरपेक्षता के नाम पर अनैतिक गठबंधनों के सहारे अधिक से अधिक फायदा उठाने के लिए एक-दसूरे की टांग खिंचाई करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि देश के अन्दर गठजोड़ की राजनीति केवल सत्ता हथियाने के उद्देश्य से है। इसका जनता अथवा राष्ट्र के विकास से कोई संबंध नहीं है।-आर.सी.गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)हास्यास्पद उपक्रमआवरण पृष्ठ पर पूरे अंक का सार प्रभावी लगा। म.प्र. के राजगढ़ जिले के झिरी गांव के सन्दर्भ में श्री अनलि सौमित्र की रपट “जहां बच्चा-बच्चा संस्कृत बोलता है” अच्छी लगी। काश, अंग्रेजी के मोह में ग्रसित हमारे शिक्षाविद् एवं सरकारें इस पर गौर करें। चर्चा सत्र में अर्थशास्त्र-मर्मज्ञ डा. बजरंग लाल गुप्त का लेख “भ्रष्टाचार है राजनीति का घुन” व्यवस्था पर चोट करता है। वास्तव में हम समस्याओं की जड़ों को सींचकर डालियों को काटने का जो उपक्रम करते हैं, वह हास्यास्पद है।-गोकुलचन्द गोयल85, इन्द्रानगर, सवाई माधोपुर (राजस्थान)स्वाभिमान-शून्य सरकारसम्पादकीय “भारत एक सशक्त राष्ट्र बने” में संप्रग सरकार की कमजोरियों पर चर्चा की गई है। वास्तव में संप्रग सरकार पूरी तरह स्वाभिमान-शून्य थी। आतंकवाद के आगे यह सरकार नतमस्तक रही, इसने मुस्लिम तुष्टीकरण के सारे कीर्तिमान तोड़े। ऐसे में एक सशक्त नेतृत्व वाली और राष्ट्रवादी सरकार चाहिए।-मुकेश कुमार गुप्ताग्राम-सदाफल, जिला- बिजनौर (उ.प्र.)अंक-सन्दर्भ थ्1 मार्च,2009भस्मासुर बनता तालिबानआवरण कथा के अन्तर्गत श्री मुजफ्फर हुसैन का लेख “पाकिस्तान पर हावी तालिबान” पाकिस्तान की असलियत बताता है। अमरीकी मदद और पाकिस्तानी सहयोग से ही तालिबान भस्मासुर बनने की स्थिति में आ चुका है। एक ओर हमारे यहां भगवान महावीर का सन्देश है- “जियो और जीने दो।” दूसरी ओर तालिबानी हैं, जिनका सन्देश लगता है “न जियेंगे, न जीने देंगे।” पाकिस्तान की स्वात घाटी में तालिबान ने अपना आधिपत्य जमा लिया है। धीरे-धीरे ये इस्लामाबाद की ओर कूच करेंगे। फिर ये जम्मू-कश्मीर तक पहुंच सकते हैं।-वीरेन्द्र सिंह जरयाल28ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्ण नगर (दिल्ली)नागपुर के अनूठे संस्कृति संगम के विवरण ने एक अजीब सा सन्तोष दिया। इससे पूर्व 2003 का मुम्बई तथा 2006 का जयपुर संगम भी पाञ्चजन्य के माध्यम से हमारे अचेतन में मौजूद है। दुनिया के बत्तीस देशों से पधारे 300 से अधिक प्राचीन परम्परा के प्रतिनिधि और उनके सहयोगी सचमुच बधाई के पात्र हैं, जो सहस्राब्दियों से विरोधी वातावरण में भी अपने प्राचीन धर्म और संस्कृति को संजोए हुए हैं। लिथुएनिया और लाटविया में यज्ञ होता है यह जानकर सुखद लगा। वहां ब्रौड या पाव की जगह रोटी वह भी मिस्री प्रसाद में शहद के साथ मिलती है, अच्छा लगा। फ्रांस के द्रुईड लोगों के यज्ञ में ओम का उच्चारण स्वाभाविक रूप से उनका भारत से जुड़ाव जाहिर करता है।-डा. नारायण भास्कर50, अरुणानगर, एटा (उ.प्र.)गरिमा खत्म मत करोउपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के सन्दर्भ में श्री साकेन्द्र प्रताप वर्मा का लेख “सेकुलर परस्ती की हद” चिन्ताजनक है। हामिद अंसारी उपराष्ट्रपति पद की गरिमा खत्म कर रहे हैं। संवैधानिक रूप से देश के दूसरे सबसे बड़े पद पर बैठकर हामिद अंसारी सिर्फ तथाकथित अल्पसंख्यकों के विकास की बात कर रहे हैं। इससे उनकी नैतिकता और मानसिकता का भी पता चलता है।-सूर्यप्रताप सिंह सोनगराकांडरवासा, रतलाम (म.प्र.)द राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपप्रधानमंत्री के पद अति विशिष्ट माने जाते हैं। लेकिन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने अपने पद को कलंकित किया है। हामिद अंसारी के विचार वीर अब्दुल हमीद, अशफाक उल्ला खां के विचारों से मेल नहीं खाते।-प्रदीप सिंह राठौरसी-26 ब्लाक नं. 3, मेडिकल कालेज, कानुपर (उ.प्र.)दुखदायी उपेक्षाश्री देवदत्त का आलेख “किसे है चित्तौड़ की चिन्ता?” बताता है कि हिन्दू शौर्य से जुड़े किलों की उपेक्षा हम निरन्तर कर रहे हैं। आज पुरातत्व विभाग प्रवेश शुल्क वसूल करके ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझता है। ताजमहल में कुछ होता है तो शासन-प्रशासन सबमें हड़कम्प मच जाता है। किन्तु चित्तौड़ का किला मिट रहा है, किसी को परवाह नहीं।-कृष्णा सेठी(नई दिल्ली)द चित्तौड़ किले की उपेक्षा दुखदायी लगी। राष्ट्रवादी विचारधारा से जुड़े लोग भी जब सत्ता में आते हैं, तो उनका भी ध्यान इन पुराने गौरव स्तम्भों की ओर नहीं जाता। महाराणा प्रताप ने जो अपने जीवन काल में स्वाभिमान दिखाया था, वह हिन्दू समाज में पैदा नहीं हो पा रहा है।-देवेन्द्र पाल11/220, सिनेमा रोड, बटाला (पंजाब)सम्मान नहीं अपमानस्लमडाग के सन्दर्भ में श्री आलोक गोस्वामी की रपट “हंगामा है क्यों बरपा…” अच्छी लगी। यह भ्रम है कि गरीब दर्शक फिल्मों में बोली जाने वाली भाषा, जिसमें ज्यादा अंग्रेजी और थोड़ी हिन्दुस्थानी होती है, समझते हैं। रुश्दी, नयपाल, आर.के. नारायण आदि अंग्रेजी में लिखते हैं। अंग्रेजी के वास्तविक जातीय लेखक इनको नेटिव्स” ही मानते हैं। शिल्पा शेट्टी डॉग की गाली सुन चुकी हैं। जिस फिल्म को भारत में प्रतिबंधित होना चाहिए, वह गौरव मानी जा रही है। यह धुंध छंटेगी, लोगों को यह गाली”स्लमडांग”बिल्कुल नहीं पचेगी, यह आशा की जानी चाहिए।-परेशचंडीगढ़øपञ्चांगसंवत् 2066 वि. – वार ई. सन् 2009 चैत्र शुक्ल 11 रवि 5 अप्रैल, 09 ” 12 सोम 6 ” “(महावीर जयन्ती) 13 मंगल 7 ” ” 14 बुध 8 ” चैत्र पूर्णिमा(वैशाख स्नानारम्भ) गुरु – 9 ” वैशाख कृष्ण 1 शुक्र 10 ” ” 2 शनि 11 ” 15
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