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चुनौतियों को परास्त करेगा संगठित समाज-मोहनराव भागवत, सरकार्यवाह (निवर्तमान), रा.स्व.संघराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए सरकार्यवाह (तत्कालीन) श्री मोहनराव भागवत ने समाज से संगठित होकर अपने पराक्रम के बल पर भारत को परम वैभव तक ले जाने का आह्वान किया। यहां प्रस्तुत हैं प्रतिवेदन के सम्पादित अंश-अपनी परिपाटी के अनुसार इस वर्ष की प्रतिनिधि सभा की बैठक में हम नूतन सरकार्यवाह को निर्वाचित करने के साथ ही अब तक के अपने कार्य का सिंहावलोकन करते हुए उसे आगे बढ़ाने की योजनाएं बनाएंगे। सदैव अपने कार्य में तथा देश के क्रियाकलापों में सक्रिय रहकर हमारा साथ देने वाले सहयोगी कार्यकर्ता व अन्य सक्रिय व्यक्ति, जो जीवन की मरणधर्मा प्रकृति के कारण हमसे अब बिछुड़ गये हैं, ऐसे समय सहज ही हमारी स्मृति में जीवन्त हो जाते हैं।देश के जीवन में स्वनामधन्य इन नामों के साथ ही आंतकवाद के लम्बे व अभी भी चल रहे अध्याय में जुड़े मुंबई हमला कांड, असम में घटित बम विस्फोटों की मालिका, गढ़चिरोली के मर्के गाँव में नक्सलियों द्वारा की गई हिंसा जैसे नए कांडों में मृत्यु को प्राप्त निर्दोष देशवासी व ऐसी सब विभीषिकाओं में देश की सुरक्षा व सम्प्रभुता की रक्षा का कर्तव्य निभाते हुए वीरगति को प्राप्त सेना, पुलिस, सुरक्षा बलों तथा ए.टी.एस. जैसे प्रतिरोधी दस्तों के शौर्यवान, कर्तव्यदक्ष अधिकारी व जवानों को हम सब अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।अपने कार्य की जनवरी मास के अन्त तक की जो जानकारी यहां प्राप्त हो सकी उसके अनुसार देश के 30,015 स्थानों पर 43,905 शाखाएं चल रही हैं तथा 4,964 स्थानों पर साप्ताहिक मिलन का व 4,507 स्थानों पर मासिक संघ मंडली का कार्यक्रम चल रहा है। पिछले वर्ष कार्य की स्थिरता के वृत्त हमने पढ़े थे। इस वर्ष की संख्या यह बता रही है कि कार्य धीमी गति से आगे बढ़ रहा है। कार्य बढ़ाने की गति और तेज हो व सभी प्रांतों में इस सम्बन्ध में समान स्थिति उत्पन्न हो, इस ओर अब हमें ध्यान देना होगा।आंकड़े पुष्ट करते हैं कि इस वर्ष सभी प्रान्तों में हमारे नित्य व नैमित्तिक कार्यक्रमों की उत्कृष्ट योजना बनी व निर्वहन भी सफलता के साथ हुआ। उसके कारण एक वातावरण बना, कार्य के विस्तार व दृढ़ीकरण में तुरंत लाभ मिला। पिछले वर्ष से चले प्रयासों का परिणाम भी ध्यान में आता है।युगाब्द 5110 (सन् 2008) की वर्ष प्रतिपदा के बाद चंद्रयान का अंतिरक्ष में प्रक्षेपण, विश्वनाथन आनन्द का शतरंज में विश्व विजेता बनना, भारतीय सिनेमा का आस्कर विजेता बनना जैसी शुभ घटनाएं घटित होने के बावजूद सामान्य व्यक्ति के परिवेश की चिन्ताएं बढ़ी हैं। अमरीका के आर्थिक पतन की मार से फिर भी हम अपनी पुरानी आर्थिक आदतों के कारण कुछ-कुछ बचे हैं। परन्तु इस देश की भूगोलीय अखण्डता व वैशिष्ट्यपूर्ण हिन्दू अस्मिता को अपने स्वार्थसाधन की राह का रोड़ा मानने वाली देश व दुनिया की शक्तियां, उनके सामने शासन व प्रशासन की लचर व दब्बू नीतियां व वोट बैंक की राजनीति, इन तीनों के गठबंधन के कारण दिनोंदिन बिगड़ते जा रहे देश के परिदृश्य को हम पिछले वर्षों से अनुभव कर ही रहे हैं। समाज से अपेक्षित आत्मविश्वासयुक्त पौरुष-सम्पन्न प्रतिकार के अभाव में ये शक्तियां और उद्दण्ड होती जा रही हैं।विधि सम्मत मार्ग, मंत्रिमंडल की सर्वसहमति व न्यायालय के आदेश से बाबा अमरनाथ के यात्रियों की व्यवस्था के लिए श्री अमरनाथ श्राइन समिति को कुछ भूमि दी गई थी। किंतु येन केन प्रकारेण अपनी सत्ता बनाए रखने की लालसा के शिकार राजनीतिज्ञों ने राष्ट्रविरोधी तत्वों के साथ जो गठजोड़ किया उसके परिणामस्वरूप वह भूमि जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन गठबंधन सरकार ने वापस ले ली। परंतु केन्द्र से राज्य सरकार तक- सबको जनता के ह्मद्गत भारत की आत्मा की बात को मानना ही पड़ा। अमरनाथ आंदोलन ने मानो देश की समस्त समस्याओं पर तथा हमारे राष्ट्र के प्रति शत्रुभाव रखने वाली वैश्विक शक्तियों पर विजय की राह दिखा दी। जम्मू व लद्दाख की देशभक्त जनता अभिनन्दन की ही नहीं, अनुकरण की भी पात्र है।जम्मू में यह आंदोलन जब चल रहा था तभी ऐसी ही शक्तियों ने उड़ीसा के कंधमाल क्षेत्र में गोहत्या व मतांतरण के अडिग प्रतिरोधक बने सेवामूर्ति, निर्मलशील पूज्य लक्ष्मणानन्द सरस्वती जी की षडयंत्रपूर्वक नृशंस हत्या कर दी गई। इसके बाद अपराधी-निरपराधी का भेद न करते हुए हिन्दू समाज पर निरकुंश दमन चक्र चलाया गया। स्वामी जी के हत्यारे व हत्या के षडयंत्रकारी अभी भी कानून की पकड़ से बाहर हैं व बारह सौ के अधिक निरपराध हिन्दुओं पर अभियोग लगाए गये हैं। इन कट्टरपंथी देशतोड़क शक्तियों ने मालेगांव विस्फोटों में कुछ हिन्दू तरुणों व साध्वी-संतों के नाम होने का बहाना लेकर “हिन्दू आतंकवाद” नामक एक विरोधाभासी, असत्य व निरर्थक कल्पना को उछालने का प्रयास किया। पकड़े गए अभियुक्तों के विरुद्ध कोई आरोप किसी भी न्यायालय में सिद्ध होने के पूर्व ही रहस्यमय ढंग से जांच की बातें प्रचार माध्यमों तक पहुँचती रहीं और न्यायालय में मामला जाने के पहले ही सबको संवाद माध्यमों द्वारा दोषी बता दिया गया। देश की सुरक्षा के प्रहरी भारत के सुरक्षा बलों पर अत्यंत हल्के ढंग से लांछन लगाए गये, हिन्दू संतों को, हिन्दू समाज को व हिन्दू संगठनों को इस मामले में लपेटकर बदनाम करने का निर्लज्ज व घृणित प्रयास किया गया। रा.स्व. संघ जैसे 83 वर्षों से केवल राष्ट्रहित के लिए समर्पित संगठन पर विदेशी गुप्तचर संस्था से धन प्राप्त करने का हास्यास्पद, अविश्वसनीय, निराधार व घृणित आरोप लगाया गया।परंतु स्वार्थी राजनीतिज्ञों की देश विघातक शक्तियों के साथ इस अपवित्र सांठगांठ का असली भंडाफोड़ किया मुंबई पर 26 नवम्बर को हुए दु:साहसी आतंकवादी हमले ने। हमारी सेना, पुलिस, उग्रवाद विरोधी दस्तों (ए.टी.एस.) एवं कमांडो इत्यादि के वीर अधिकारियों के बलिदान तथा जनता के धैर्यपूर्ण व्यवहार से 60 घंटों की सतत् लड़ाई के बाद संकट समाप्त हुआ। लेकिन वर्षों से इस विभीषिका के खतरे की छाया में जीने वाले सामान्य जनों के मानस में जो वेदना व क्रोध विद्यमान था, वह मुखर हो उठा। इस आतंकवादी हमले की घटना में देश के अन्दर से आतंकवादियों को मिलने वाली सहायता का मामला स्पष्ट रूप से उजागर हुआ। परंतु अपने राजनीतिक स्वार्थों के चलते शासन व प्रशासन आतंकवाद तथा घुसपैठ-दोनों के प्रतिकार में समान रूप से पंगु दिखाई देता है।इस, और ऐसे सभी प्रश्नों के संपूर्ण सफल व सुफल उत्तर का रास्ता श्री अमरनाथ आंदोलन ने आलोकित व प्रशस्त कर दिखाया है। अधूरे आकलन पर आधारित विदेशी व्यवस्थाओं का युग समाप्त होने का संकेत अमरीका के आर्थिक पतन ने दे दिया है। मन में “स्व” का गौरव लेकर, देश, धर्म, संस्कृति व समाज के लिए जीने-मरने का दृढ़ संकल्प लेकर जब समाज खड़ा होगा तभी प्रजातांत्रिक व्यवस्था में योग्य शासक व उत्तरदायी प्रशासन का निर्माण हो सकेगा।संकटों की यह घड़ी हम सबके लिए पराक्रम की वेला है, पुरुषार्थ से विजयश्री का वरण करने का सुअवसर है। आवश्यक है कि आसेतु हिमाचल फैले गांव-गांव में बसे हिन्दू समाज में यह पुरुषार्थ जागे, वीरवृत्ति व पराक्रम जागे। देशभर में फैले अपने कार्य को आधार बनाकर उसके विस्तार व दृढ़ीकरण के बल पर हम समाज को इन संकटो पर मात करने हेतु समुचित उपाय अपनाने के लिए तत्काल सिद्ध करें।अटल चुनौती अखिल विश्व कोभला-बुरा चाहे जो मानेडटे हुए हैं राष्ट्रधर्म परविपदाओं में सीना ताने ।ऐसा समाज ही सब कल्मष का परिहार है, संकटों का प्रतिकार है, विजय की जयकार है व राष्ट्र के परमवैभव का एकमात्र आधार है। ऐसा समाज निर्माण करने का कार्य ही संघ कर रहा है। दअ.भा. प्रतिनिधि सभा में घोषित अखिल भारतीय कार्यकारी मंडलसरकार्यवाह श्री सुरेश सदाशिव जोशी उपाख्य भैय्याजी जोशीसह सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनीसह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबलेप्रचारक प्रमुख श्री मदनदाससह प्रचारक प्रमुख श्री श्रीकृष्ण मोतलगशारीरिक प्रमुख श्री के.सी. कन्ननसह शारीरिक प्रमुख श्री जगदीशसह शारीरिक प्रमुख श्री अनिल ओकबौध्दिक प्रमुख श्री भागय्यासह बौध्दिक प्रमुख श्री महावीरसेवा प्रमुख श्री सीताराम केदिलायसह सेवा प्रमुख श्री सुहास हिरेमठसम्पर्क प्रमुख श्री हस्तीमलप्रचार प्रमुख श्री मनमोहन वैद्यव्यवस्था प्रमुख श्री साकलचंद बागरेचासह व्यवस्था प्रमुख श्री बालकृष्ण त्रिपाठीसदस्य :सर्वश्री इन्द्रेश कुमार, मधुभाई कुलकर्णी, शंकरलाल, श्रीकांत जोशी, राम माधव, डा. दिनेश, लक्ष्मणराव पार्डीकर, वन्नीयराजन, पर्वतराव, डॉ. अशोक कुकड़े, श्रीकृष्ण माहेश्वरी, पुरूषोत्तम परांजपे, डॉ. बजरंगलाल गुप्त, डॉ. दर्शन लाल, सिध्दनाथ, ज्योतिर्मय चक्रवर्ती, माणिक दास, शशिकान्त चौथाईवाले, मुकुन्दराव पणशीकर एवं श्री ईश्वरचंद्र गुप्त।निमंत्रित:श्री सुरेशराव केतकर, श्री कृष्णप्पा, श्री जयदेव, श्री सुरेन्द्रसिंह चौहान, श्री ओमप्रकाश, श्री दर्शनलाल एवं श्री राघवेन्द्र कुलकर्णीरा.स्व.संघ की अ.भा. प्रतिनिधि सभा का आह्वानआतंकवाद और तुष्टीकरण नीति पर प्रहार होप्रतिनिधि सभा में तीन प्रस्ताव पारित हुए जिनके संपादित अंश इस प्रकार हैं-प्रस्ताव क्र.-1आतंकी संजाल को कुचला जाएअखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए कायरतापूर्ण आतंकी हमले में सेना व पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों सहित भारी संख्या में मारे गए लोगों के प्रति गहरा शोक प्रकट करती है। प्रतिनिधि सभा आतंकरोधी अभिकरणों के सदस्यों के उस शौर्य की भी प्रशंसा करती है, जिसके कारण एक आतंकी को जीवित पकड़ लिया गया और अन्य बहुत से आतंकी मार गिराये गए। भारत दशकों से जिहादी आतंकवाद का शिकार बना हुआ है। मुंबई-हमले से यह बात एक बार फिर सिद्ध हो गई है कि पाकिस्तान वैश्विक आतंकवाद का केन्द्र है। प्रतिनिधि सभा का यह स्पष्ट मत है कि पाकिस्तान की अधोगति ने उसे एक दुष्ट देश के रूप में#े परिवर्तित कर दिया है। हाल ही में श्रीलंकाई क्रिकेट टीम पर हुए हमले एवं स्वात घाटी की राजनैतिक उथल-पुथल जैसे घटनाक्रम इंगित करते हैं कि पाकिस्तान शनै:-शनै: तालिबान के हाथों में खिसकता जा रहा है, जिसे पाकिस्तानी सेना के एक गुट व आई.एस.आई. का गुप्त समर्थन प्राप्त है। इसी प्रकार पेशावर जैसे शहरों पर तालिबानी नियंत्रण के समाचार और कराची जैसे नगरों में उसका बढ़ता हुआ प्रभाव भारत के लिए खतरे की घंटी है। अ.भा.प्र.सभा सरकार का आवाहन करती है कि वह देश की पश्चिमी सीमा के पार से आसन्न खतरों से प्रभावी ढंग से निपटने हेतु आंतरिक व बाह्र सुरक्षातंत्र की समुचित तैयारी करे। प्रतिनिधि सभा के लिए और भी अधिक चिन्ता का विषय है मुंबई-हमले जैसी बड़ी घटनाओं के बाद भी सशक्त व प्रभावी कदम उठाये जाने की राजनैतिक इच्छाशक्ति का अभाव। महीनों से देश यही देख रहा है कि सरकार कोई ठोस कारर्वाई करने के स्थान पर कोरी बयानबाजी कर रही है। मुंबई काण्ड के बाद जन-दबाव के कारण जल्दबाजी में लाये गए नये आंतकवाद-विरोधी कानून अत्यन्त लचर हैं क्योंकि उनमें वास्तविक कठोर प्रावधान हैं ही नहीं। किसी भी प्रकार के स्पष्ट आदेश के अभाव में एन.आई.ए. (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) भी निष्प्रभावी होकर रह गई है। वर्तमान केन्द्र सरकार किस प्रकार क्षुद्र राजनैतिक सोच से निर्देशित होती है यह उसके कुछ केंद्रीय मंत्रियों के उन धृष्टतापूर्ण वक्तव्यों से स्पष्ट होता है जिनमें पाकिस्तान को लगभग दोषमुक्त करते हुए यह इंगित किया गया है कि मुंबई-हमला किसी स्थानीय घटनाक्रम का परिणाम हो सकता है। प्रतिनिधि सभा हमारे शासक वर्ग द्वारा आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में सहायता हेतु अमरीका व अन्य देशों की ओर याचकभाव से दौड़ने की सतत बढ़ती मनोवृत्ति की भत्र्सना करती है। हमें यह सुस्पष्ट होना चाहिए कि राजनयिक पहल महत्त्वपूर्ण तो है, किन्तु हमारी समस्याओं का समाधान दूसरों के द्वारा नहीं होगा और अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखने हेतु हमें स्वयं ही सक्रिय भूमिका निभानी होगी। अ.भा.प्रतिनिधि सभा मुंबई-आतंकी हमले से मिली इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण सीख को रेखांकित करना चाहती है कि अपने देश में ऐसे कई जेहादी तत्त्व पैठ बनाये हुए हैं, जिनकी सीमापार स्थित जेहादी आतंकियों से गहरी सांठगांठ है । इस अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर सरकार का छलपूर्ण मौन यह गहरा संदेह पैदा करता है कि वह वोट बैंक की राजनीति को दृष्टि में रखकर अपराधियों को बचाने का प्रयास कर रही है। उपर्युक्त परिस्थिति के प्रकाश में अ.भा.प्रतिनिधि सभा सरकार का आवाहन करती है कि वह-सुरक्षा बलों की आतंकरोधी क्षमता इतनी बढ़ाए और उन्हें आवश्यक प्रत्याघात-क्षमता से इस तरह सुसज्ज करे कि भविष्य में कोई भी आतंकी आक्रमण न हो पाए।”पोटा” व “मकोका” जैसे कठोर कानून बनाए तथा गुजरात, राजस्थान-सहित विभिन्न राज्यों द्वारा निर्मित आंतक-विरोधी कानूनों को स्वीकृति प्रदान करे।”स्लीपर सेल” (समाज में छिपे पड़े देशी व विदेशी आतंकी तत्त्व) व “मॉडयूल” (अवसर आने पर निर्देश मिलते ही प्रकट होकर सक्रिय हो जाने वाले आतंकी) के रूप में जमकर बैठे स्थानीय समर्थक-तंत्र को नष्ट करे।खुफिया जानकारी एकत्रित करने का तंत्र मजबूत करे और आतंक से लड़ने हेतु एकीकृत कमान का गठन करे।संचार-माध्यमों व आम नागरिकों सहित विविध अभिकरणों को आतंकरोधी उपायों का प्रशिक्षण दे ।आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में राजनैतिक स्वार्थ को हावी न होने दे।प्रस्ताव क्र.-2पांथिक आधार पर विभेद की नीति राष्ट्रीय अखण्डता के लिए घातकअखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा इसे अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण मानती है कि अंग्रेजों द्वारा अपनाई गई मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति, जिसके परिणामस्वरूप मातृभूमि का विभाजन हुआ था, हमारी स्वाधीनता के 62 वर्ष बाद भी जारी है। यह खेदजनक है कि न्याय व समता के सिद्धान्तों पर एकात्म समाज का निर्माण करने के स्थान पर देश के नीति-निर्धारक राष्ट्रीय सुरक्षा व अखण्डता की अनदेखी करते हुए क्षुद्र राजनैतिक स्वार्थ के लिये समाज को बांटने में लगे हुए हैं। केंद्र सरकार की अल्पसंख्यक समुदाय के नाम पर मुसलमानों व ईसाइयों पर अनुग्रहों की उदारतापूर्वक वर्षा करने की भेदभावपूर्ण नीति से इनके कथित सशक्तीकरण के स्थान पर समाज के पांथिक आधार पर विखंडन का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। अ.भा. प्रतिनिधि सभा इस तथ्य की ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहती है कि विविध ऋणों के सम्बन्ध में अपने राष्ट्रीय समाज के अन्य सभी पंथों व समुदायों को भेदभाव व असमानता के वातावरण में स्पर्धा का सामना करना पड़ता है-जैसे उन्हें शिक्षा हेतु ऋणों पर 12-14 प्रतिशत व व्यवसाय हेतु ऋणों पर 15-18 प्रतिशत ब्याज देना पड़ता है, जबकि तथाकथित अल्पसंख्यकों को ये ऋण 3 प्रतिशत ब्याज पर ही मिल जाते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि शिक्षा क्षेत्र एवं छात्र समुदाय भी इस पांथिक विभेद की राजनीति से बच नहीं पाए हैं। विवादास्पद सच्चर समिति की अनुशंसाओं को राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान व प्रशिक्षण परिषद् की आठवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर उन मासूम छात्रों के मस्तिष्कों को विखण्डनकारी विचारों से विषाक्त किया जा रहा है। केन्द्रीय विद्यालय संगठन भी इसी विभाजनकारी नीति का शिकार हुआ है। इसके प्रतीक चिह्न सूर्य व कमल को क्रॉस व तारा युक्त अर्धचन्द्र में बदल दिया जाना इसी विकृत मानसिकता का परिचायक है। राजस्थान में मात्र अभिभावकों के शपथपत्र पर अल्पसंख्यक छात्रों को दी जा रही पूर्व-माध्यमिक छात्रवृत्तियां मतान्तरण को बढ़ावा दे रही हैं। यह सर्वथा निन्दनीय है कि मदरसों को, जो किसी भी औपचारिक शिक्षण व्यवस्था के घटक नहीं हैं, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा मण्डल की संस्थाओं के समान स्तर प्रदान कर दिया गया है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को भोपाल, पुणे, किशनगंज, मुर्शिदाबाद व मलप्पुरम् में क्षेत्रीय केन्द्र खोलने हेतु 2000 करोड़ रुपयों का अनुदान दिया गया है। जिन राज्यों में ये केन्द्र खुल रहे हैं, उन्हें इनके लिये 500 एकड़ भूमि नि:शुल्क देने को कहा जा रहा है। पांथिक आधार पर आरक्षण को संस्थागत स्वरूप देने के लिए किये जा रहे प्रयत्न और भी गंभीर हैं। आंध्रप्रदेश सरकार द्वारा शिक्षण संस्थाओं में मुसलमानों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण किया गया है एवं समाज कल्याण विद्यालयों में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित स्थानों में से 12 प्रतिशत स्थान मतान्तरितों के लिए निर्धारित कर उन जातियों को वंचित किया गया है। तमिलनाडु सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में कटौती कर 7 प्रतिशत स्थानों को अल्पसंख्यकों के लिए आवंटित किया गया है। पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा प्रत्येक विभाग के बजट में से 30 प्रतिशत का आवंटन मुसलमानों के लिए और सारी खाली पड़ी सरकारी भूमि मुसलमानों को आवंटित करने जैसे प्रस्ताव घोर पक्षपात को प्रकट करते हैं। अल्पसंख्यकवाद के लिए चल पड़ी स्पर्धा का ज्वलन्त उदाहरण बिहार सरकार द्वारा 4 जिलों- पूर्णिया, अररिया, कटिहार व किशनगंज- के 10वीं व 12वीं के मुसलमान छात्रों को शुल्क मुक्ति देने का है, जबकि बाढ़ग्रस्त जिलों के सामान्य छात्रों के लिए बार-बार मांग करने पर भी ऐसी शुल्क मुक्ति का प्रावधान नहीं किया गया। इसी प्रकार उस प्रदेश में प्रत्येक 10वीं कक्षा उत्तीर्ण करने वाले मुसलमान छात्र को दिया जाने वाला 10,000 रुपयों का उपहार तुष्टीकरण की इस नीति का एक और उदाहरण है। केरल सरकार द्वारा मदरसा शिक्षकों को पेन्शन देने का निर्णय भी इसी श्रेणी में आता है। अ.भा.प्र.सभा मांग करती है कि केवल पांथिक आधार पर दिये जाने वाले सभी आरक्षण, छूटें और विशेषाधिकार समाप्त किए जाएं।प्रस्ताव क्र.-3सम्राट श्री कृष्णदेव राय के राज्याभिषेक की 500वीं वर्षगांठअखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा विजयनगर साम्राज्य के विश्वविख्यात सम्राट श्री कृष्णदेव राय के ईस्वी सन् 1510 में हुए राज्याभिषेक को भारतीय इतिहास की एक निर्णायक घड़ी मानती है। विजयनगर साम्राज्य की स्थापना ई. सन् 1336 में हिन्दू धर्म व संस्कृति की रक्षा के घोषित लक्ष्य के साथ उस समय की गई थी जब मुस्लिम आक्रांताओं के बर्बर हमले के कारण हिन्दू धर्म व संस्कृति का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया था। इस साम्राज्य की स्थापना संत विद्यारण्य की आध्यात्मिक शक्ति तथा हरिहर व बुक्क राय के शौर्य का संयुक्त प्रतिफल थी। शांति व स्थिरता, आर्थिक समृद्धि, उन्नत कला-साहित्य व स्थापत्य, अन्तरराष्ट्रीय व्यापार और कूटनीति तथा सौहार्दपूर्ण एवं आनंदप्रद सामाजिक जीवन के कारण विजयनगर साम्राज्य को विश्व इतिहास में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है। देशी व विदेशी इतिहासकारों ने इसे भारत के इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय तथा अविस्मरणीय साम्राज्य कहा है।शालिवाहन शक संवत् 1431 की माघ शुक्ल चतुर्दशी (24 जनवरी सन् 1510 ई.) के दिन श्री कृष्णदेव राय का राज्याभिषेक सम्पन्न हुआ। वे एक वीर योद्धा, दूरदर्शी राजनीतिज्ञ, कलाविद् व विद्वान होने के साथ-साथ दयालु शासक भी थे। उन्होंने दूरगामी प्रशासनिक, न्यायिक व कृषि सुधार किये। उनके शासन में जल प्रबन्धन प्रणाली को सर्वाधिक वैज्ञानिक माना जाता है। उनके शासन में साम्राज्य का विस्तार सम्पूर्ण दक्षिण भारत में हुआ और गौरव के उच्च शिखर पर पहुंचा।”हिन्दूराय सुरत्राण” की उपाधि से विभूषित श्री कृष्णदेव राय यदि एक आदर्श हिन्दू सम्राट के प्रतीक थे तो विजयनगर साम्राज्य एक आदर्श हिन्दू राज्य का उदाहरण था। भविष्य में होने वाले हिन्दू सुदॄढ़ीकरण के सभी प्रयासों के लिए यह प्रेरणा का स्थाई स्रोत रहा है। अ.भा.प्रतिनिधि सभा का मत है कि सम्राट श्री कृष्णदेव राय के राज्याभिषेक की 500 वीं वर्षगांठ समारोह के आयोजन से भारतवर्ष के इतिहास के एक स्वर्णिम अध्याय की स्मृतियां उजागर होंगी और इससे हमारे देशवासियों, विशेषकर युवाओं के मन में आत्मगौरव व विश्वास की भावना बढ़ेगी। अत: वह समस्त देशवासियों का आवाहन करती है कि वे विजयनगर साम्राज्य के गौरव पर प्रकाश डालने वाले विविध कार्यक्रमों का आयोजन करें।अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा केन्द्र व राज्य सरकारों से मांग करती है कि:विजयनगर साम्राज्य की राजधानी स्थल हम्पी (कर्नाटक) में सभी अतिक्रमणों को तत्काल हटाया जाए।इस ऐतिहासिक स्थल के पवित्र स्थानों व स्मारकों को सुरक्षित व संरक्षित किया जाए।इस स्थान को इस प्रकार विकसित किया जाए कि इससे प्रेरणादायी स्मृतियां पुन: जागृत होने के साथ-साथ देशी व विदेशी पर्यटकों के समक्ष इतिहास के इस स्वर्णिम अध्याय का सही चित्रण प्रस्तुत किया जा सके।इस अवसर की स्मृति में डाक टिकट जारी किया जाए। द8
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