भावविह्वल हो गए अशोक सिंहल
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भावविह्वल हो गए अशोक सिंहल

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Mar 5, 2009, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Mar 2009 00:00:00

आचार्य रामनाथ सुमन जी के गोलोकवासी होने का समाचार मिलते ही सर्वोदय नगर (पिलखुवा) स्थित उनके आवास स्थल पर श्रद्धालुजनों का सैलाब उमड़ पड़ा। विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल, राष्ट्रीय सचिव श्री राजेन्द्र सिंह पंकज तथा अपने कुछ अन्य सहयोगियों के साथ पिलखुवा पहुंचे। श्री सिंहल अपने अनन्य सहयोगी व श्रद्धेय विभूति को श्रद्धा सुमन अर्पित करते-करते रो पड़े। आचार्य सुमन को श्रद्धांजलि देते हुए श्री अशोक सिंहल ने कहा, “मैंने वर्षों तक उनके साथ रहकर यह अनुभूति की कि आचार्य जी जैसी विनयशीलता दुर्लभ है। वे जब भाषण करते थे तो लगता था कि जैसे साक्षात् सरस्वती उनकी जिह्वा पर विराजमान होकर भागीरथी की तरह प्रवाहित हो रही हैं। उनके अभाव की पूर्ति असंभव है।”संघ के प्रान्त प्रचारक श्री दिनेश, अ.भा. कार्यकारिणी सदस्य डा. दर्शनलाल अरोड़ा, वरिष्ठ प्रचारक श्री ज्योतिस्वरूप, श्री विजय कुमार जुनेजा, श्री राधाकृष्ण मनोडी, विश्व हिन्दू परिषद् के केन्द्रीय पदाधिकारी श्री ओमप्रकाश सिंहल, श्री सुभाष कपूर, श्री उमाशंकर शर्मा, श्री रामेश्वरदयाल, विद्या भारती के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष श्री राजकृपाल, भाजपा के संगठन मंत्री श्री राकेश जैन, श्रीराम कथाकार संत अतुलकृष्ण भारद्वाज, विश्व हिन्दू परिषद् के संगठन महासचिव श्री दिनेश जी, शिक्षाविद् डा. गणेशदत्त शर्मा, आचार्य शिवदत्त पाराशर आदि ने भी उपस्थित होकर श्रद्धासुमन अर्पित किये।उधर, 20 अप्रैल को नई दिल्ली स्थित विश्व हिन्दू परिषद् के केन्द्रीय कार्यालय में भी आचार्य सुमन को श्रद्धांजलि देने के लिए एक सभा आयोजित हुई। भारत संस्कृत परिषद् के तत्वावधान में आयोजित इस सभा में विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल, परामर्शक मंडल के सदस्य आचार्य गिरिराज किशोर, संयुक्त महामंत्री श्री चम्पत राय, हिन्दू विश्व के सम्पादक श्री ओंकार भावे, वरिष्ठ पत्रकार श्री तरुण विजय, भारत संस्कृत परिषद् के महामंत्री आचार्य राधाकृष्ण मनोड़ी सहित अनेक लोगों ने स्व. सुमन को श्रद्धांजलि दी। उल्लेखनीय है कि आचार्य सुमन भारत संस्कृत परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे।बदहाल बालिका शिक्षाद डा. अनीता मोदीमहिलाओं के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सशक्तिकरण का पहला और मूलभूत साधन शिक्षा है। शिक्षा के आधार पर ही महिलाओं को सशक्त, समान अधिकारों युक्त व देश के विकास की मुख्यधारा से जोड़ना संभव है। शिक्षित महिलाओं का सकारात्मक प्रभाव भावी पीढ़ी पर भी पड़ता है, जिसका लाभ सम्पूर्ण परिवार, समाज व देश को प्राप्त होता है।किन्तु विडम्बना का विषय है कि अभी भी शिक्षा जैसे मूलभूत क्षेत्र में लैंगिक भेद-भाव की दीवारें स्पष्ट परिलक्षित हो रही हैं। स्वतंत्रता के छह दशक से अधिक बीत जाने के बावजूद महिलाएं साक्षरता की दौड़ में पुरुषों की अपेक्षा काफी पीछे हैं। निश्चित रूप से, शिक्षा की दिशा में सतत प्रयत्नशील व कटिबद्ध होने के कारण महिला शिक्षा में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वर्ष 1951 में महिला साक्षरता दर मात्र 8.86 प्रतिशत थी जो बढ़कर वर्ष 1981 में 30 प्रतिशत तथा 2001 में 54.16 प्रतिशत हो गई। लेकिन अभी भी देश की लगभग 45 प्रतिशत महिलाएं निरक्षरता के कलंक से अभिशप्त हैं। पुरुष-महिला साक्षरता दर में 21.7 प्रतिशत का अन्तराल महिला शिक्षा की दिशा में प्रभावी कदम उठाये जाने की आवश्यकता को दर्शाता है। “विश्व में सर्वाधिक निरक्षर भारत में हैं और निरक्षरों में अधिकांश महिलाएं हैं” यह तथ्य भी देश में महिलाओं की साक्षरता के दृष्टिकोण से चिन्ताजनक स्थिति को प्रस्तुत कर रहा है।दु:ख का विषय है कि वर्तमान सूचना-प्रौद्योगिकी के युग में भी समाज में प्रचलित परम्परागत, रूढ़िवादी व संकीर्ण मानसिकता महिला शिक्षा के मार्ग में रोड़े अटका रही है। पुरुष-प्रधान समाज की यह तुच्छ सोच “लड़की पराया धन है” बालिकाओं के लिए शिक्षा के द्वार बंद कर देती है। इसके अतिरिक्त, समाज में विद्यमान बाल विवाह, दहेज प्रथा व पर्दा प्रथा जैसी कुत्सित प्रवृत्तियां भी बालिका शिक्षा की राह में अवरोधक हैं। ग्रामीण बालिकाओं की स्थिति शिक्षा के दृष्टिकोण से और भी अधिक चिन्ताजनक व विचारणीय है। गौरतलब है कि ग्रामीण महिलाएं कृषि, पशुपालन व अन्य कार्यों में पुरुषों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर अनवरत कार्य करती हैं। ऐसी स्थिति में ग्रामीण बालिकाओं को पारिवारिक कार्यों व छोटे बहन-भाइयों के परवरिश का भार उठाना पड़ता है। इस बोझ के तले दबी बालिकाओं को शिक्षा जैसी बुनियादी आवश्यकता से वंचित होना पड़ता है। इस संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि देश में विद्यमान “गरीबी” जैसी भयावह समस्या का दंश भी बालिकाओं को “शिक्षा-वंचन” के रूप में झेलना पड़ता है। ऐसा अनुमान व्यक्त किया गया है कि देश में चौरासी करोड़ लोग प्रतिदिन 20 रुपए से भी कम पर जीवन-बसर करने के लिए मजबूर हैं। ऐसी निराशाजनक स्थिति में बालिका शिक्षा पर सवालिया निशान लग जाता है।ग्रामीण क्षेत्रों में बालिका विद्यालयों की अपर्याप्तता, महिला शिक्षकों की अनुपस्थिति, घर से विद्यालय की दूरी व विद्यालयों के लिए मूलभूत सुविधाओं का अभाव जैसे तत्व भी बालिका-शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। हमारे देश के अधिकांश स्कूलों के लिए न उचित शाला भवन हैं, न पूरे शिक्षक हैं और न ही मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं। स्पष्ट है कि ऐसी निराशाप्रद स्थिति में बालिका शिक्षा का स्वप्न कोरी कल्पना मात्र है। शालाओं में “संसाधनों के अभाव” का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि आज भी देश के केवल एक चौथाई स्कूलों में बिजली की सुविधा उपलब्ध है। यही नहीं, लगभग देश के 10 प्रतिशत स्कूलों में ब्लैक बोर्ड तक नहीं हैं। सूचना क्रांति के इस प्रतियोगी युग में केवल देश के 11 प्रतिशत स्कूलों में ही कम्प्यूटर जैसी सुविधा उपलब्ध है। आधारभूत सुविधाओं से वंचित इन विद्यालयों से “बालिका शिक्षा के विस्तार व सुधार” की अपेक्षा करना व्यर्थ है।इस सन्दर्भ में एक मुख्य मुद्दा यह भी है कि देश के विद्यालय “शिक्षकों की कमी” की समस्या से भी जूझ रहे हैं। गौरतलब है कि देश के लगभग 20 प्रतिशत प्राथमिक विद्यालयों में एक शिक्षक के कंधों पर ही सारा दायित्व है। यही नहीं, शिक्षकों में शिक्षण कार्य के प्रति उदासीनता व निष्क्रियता भी बालिका शिक्षा पर प्रश्न चिन्ह लगा देती है। ऐसा पाया गया है कि प्राथमिक विद्यालयों के करीब 25 प्रतिशत अध्यापक स्कूल से अक्सर नदारद पाये जाते हैं। यह सवाल भी विचारणीय है कि बालिकाओं में विद्यालय छोड़ने की दर भी उच्च है जिसको नियंत्रित करना अत्यावश्यक है। एक स्वयंसेवी संगठन ने सर्वेक्षण के आधार पर यह खुलासा किया है कि देश में प्राथमिक विद्यालय में नामांकित कुल 100 महिला छात्राओं में से केवल 40 छात्राएं कक्षा पांच तक, 18 छात्राएं कक्षा आठ तक, तथा केवल एक छात्रा बारहवीं कक्षा तक पहुंच पाती है। यही कारण है कि देश के लगभग 70,000 स्कूलों में बच्चों की संख्या पच्चीस से भी कम आकलित की गई है। मध्याह्न भोजन योजना, सर्वशिक्षा अभियान तथा बालिका शिक्षा के संवर्धन हेतु संचालित विविध योजनाओं के परिणामस्वरूप कुछ हद तक बालिकाओं के नामांकन दर में वृद्धि दर्ज की गई है। लेकिन इन योजनाओं के क्रियान्वयन पर भ्रष्टाचार रूपी काली छाया मंडराती रही है, जिसकी वजह से ये योजनाएं अभीष्ट सफलता हासिल नहीं कर पा रही हैं। द13

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