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मानव जीवन अमूल्य है। और यही वह जीवन है जिसके माध्यम से आप सांसारिक जन्म-मरण से छुटकारा पा सकते हैं यानी आपको मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। यह उपदेश मैं बचपन से सुनती आ रही हूं। इसलिए जब मैं पढ़ती थी तो सोचती थी ऊंची शिक्षा प्राप्त कर कुछ ऐसा करूंगी जिससे कि जीवन भी ठीक से बीत जाए और कुछ सद्कर्म भी हो। किन्तु पढ़ाई के दौरान ही और लड़कियों की तरह मेरा विवाह माता-पिता ने करा दिया। वह वर्ष था सन् 1987। इसके बाद तो सांसारिक जीवन में कुछ ऐसी फंसी कि ऊंची शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकी। किन्तु विवाह के कुछ दिन बाद मैंने टाइपिंग सीखने का निर्णय लिया। अत: मेरे पति श्री रोहताश धालीवाल मुझे झण्डेवाला में सेवा भारती द्वारा संचालित टाइपिंग केन्द्र ले गए और मेरा दाखिला हो गया। उन्हीं दिनों मैंने सेवा भारती को नजदीक से समझा। मुझे लगा कि सेवा भारती से जुड़कर सचमुच में इस जीवन को सफल बनाया जा सकता है। फिर कुछ दिन बाद सेवा भारती के कार्यों में हाथ बंटाने लगी। घरेलू कार्यों से फुर्सत मिलते ही सेवा भारती के प्रकल्पों में जाने लगी। एक दिन पति ने कहा भी कि सेवा भारती छोड़ो या घर। किन्तु सेवा का रंग ऐसा चढ़ा था कि मैंने कहा, कुछ भी छोड़ना मुश्किल है। इसके बाद वे खुद ही मुझे सामाजिक कार्यों के लिए प्रेरित करने लगे। यही वजह है कि मैंने लगभग 10 साल तक सेवा भारती में रहकर सामाजिक कार्यों में हाथ बंटाया। अब तीन साल से राष्ट्र सेविका समिति का काम देख रही हूं। इस समय नई दिल्ली जिला कार्यवाहिका का दायित्व है। पति श्री रोहताश धालीवाल भी संघ के समर्पित कार्यकर्ता हैं। इन दिनों वे चांदनी चौक जिला के सेवा प्रमुख हैं। आजीविका के लिए हम दोनों प्रिÏन्टग का काम करते हैं। बिटिया गीतांजलि धालीवाल 12वीं में पढ़ती है और राष्ट्र सेविका समिति की सेविका भी है। पुत्र राहुल भी पढ़ाई कर रहा है। ईश्वर से प्रार्थना है कि वे आजीवन हम लोगों को स्वस्थ रखकर सामाजिक कार्यों में लगाए रखें।-सुनीता धालीवाल1293, बगीची रामचन्द्र, संगतराशन पहाड़गंज, नई दिल्ली-5518
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