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संस्कृत न केवल समृद्ध, अपितु भारतीय भाषाओं में प्रधान भाषा है। इसके जरिए हम अपने मूल प्राचीन ग्रन्थों में छिपे गूढ़ रहस्यों को उद्घाटित कर सकते हैं। यह विचार युवाचार्य महाश्रवण ने जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के संस्कृत एवं प्राकृत विभाग तथा संस्कृत भारती द्वारा लाडनूं (राजस्थान) में आयोजित दस दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर के उद्घाटन कार्यक्रम में व्यक्त किए। राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित श्री विश्वनाथ शर्मा ने इस अवसर पर अपने उद्बोधन में कहा कि संस्कृत बहुत ही सरल भाषा है। अभ्यास एवं प्रयोग के अभाव में प्राय: लोग इसे कठिन मान लेते हैं। उन्होंने कहा कि आज इस प्रकार का सम्भाषण शिविर लगाकर समाज को संस्कृत बोलने का अभ्यास कराया जाना बहुत आवश्यक है। उद्घाटन समारोह का संचालन डा. समणी संगीत प्रज्ञा ने किया।शिविर में संस्कृत विभाग के ही नहीं, अपितु सभी संकायों के शिक्षक और विद्यार्थी संस्कृत संभाषण कला सीखने पहुंचते थे। इसमें बहनों का भी एक गट बन गया था। शिविर में संस्कृत सम्भाषण सीखने वालों की अधिकता के कारण अलग-अलग समय पर तीन शिविरों की रचना की गई। शिविर में संस्कृत प्रेमियों की दिनोदिन बढ़ती उपस्थिति के कारण विश्व भारती विश्वविद्यालय मानो संस्कृतमय हो गया था।शिविर के समापन समारोह में अध्यक्ष के रूप में उपस्थित साध्वी प्रमुखा ने बहुत ही आग्रह के साथ कहा कि ज्ञान के बिना किसी भी राष्ट्र का विकास संभव नहीं है और ज्ञान की भाषा संस्कृत है। अत: हमें उसे आत्मसात करना चाहिए। द प्रतिनिधि24
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