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हमारे विवाह को 27 वर्ष हो चुके हैं। जब विवाह हुआ था उस समय हम संयुक्त परिवार में रहते थे। अच्छी-खासी जमीन होने के कारण परिवार में कहीं कोई दिक्कत नहीं थी। खेती-बाड़ी का काम मैं देखता था और हमारे अन्य तीन भाई अपना कुछ काम करते रहते थे। परिवार बड़ा हुआ तो हम भाइयों में बंटवारा हो गया। बंटवारे के बावजूद सब भाइयों के पास 40-40 बीघा जमीन रही। किन्तु आजकल खेती घाटे का सौदा रह गई है। इस कारण मुझे दिक्कतों का सामना करना पड़ा। अन्तत: एक दिन मैंने निर्णय लिया कि एक दुकान खोली जाए। पर सबसे बड़ी समस्या थी पैसे की। इसी चिन्ता में एक दिन डूबा हुआ था कि मेरी पत्नी शशिकला ने पूछा क्या हुआ? मैंने कहा, परिवार के भरण-पोषण के लिए एक दुकान खोलना चाहता हूं, पर पैसे नहीं हैं। उसने दुबारा पूछा, कितने पैसे चाहिए? मैंने कहा 50 हजार रु.। शशिकला ने कहा चलो तुम दुकान खोलने की तैयारी करो मैं 30 हजार रु. देती हूं। मैं अवाक् रह गया कि इतने पैसे उसके पास आए कहां से? पहले तो मैंने सोचा वह मजाक कर रही है, पर थोड़ी देर बाद सचमुच में वह 30 हजार रु. ले आई। मैंने पूछा तो उसने बताया कि यह वर्षों से कर रही बचत का परिणाम है। अपनी पत्नी की बचत प्रवृत्ति से मैं बड़ा प्रभावित हुआ। इसके बाद मेरी हिम्मत बढ़ गई। एकाध मित्रों से और 20 हजार रु. लेकर मैंने दुकान खोल ली। धंधा भी अच्छा चल पड़ा। दोनों बच्चे भी पढ़-लिखकर होशियार हो गए। अब दोनों अच्छा व्यवसाय कर रहे हैं। घर भी अच्छा बन गया है। परिवार में सुख-समृद्धि है। इन सबके लिए मैं प्रभु को बार-बार प्रणाम करता हूं। क्योंकि उनकी कृपा से ही पत्नी ने 30 हजार रु. बचाए थे, शायद इन्हीं दिनों के लिए। कभी मेरी पत्नी 30 हजार रु. वापस मांगती है तो मैं कहता हूं, “वह पैसा नहीं, प्रसाद है और दिया हुआ प्रसाद कभी वापस नहीं मांगा जाता। ऐसे तुम मुझसे लाख रु. मांग लो, पर वह 30 हजार रु. मत मांगना।”-सत्यनारायण बागलाबी-15, मधुबन कालोनी, बून्दी-323001 (राजस्थान17
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